सिंचाई

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A farmer uses a hosepipe to irrigate crops at her farm in the Nilgiris mountains, Tamil Nadu (Image: IWMI Flickr Photos; CC BY-NC-ND 2.0 DEED)
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Use of micro irrigation technology does not automatically result in a reduction in water consumption (Image: Anton: Wikimedia Commons)
नहर के अंतिम छोर पर सिंचाई जल की कम उपलब्धता की स्थिति में अरहर के साथ उड़द / धान की उन्नत खेती
पूर्वी उत्तरप्रदेश में किसान प्रायः धान-गेहूँ फसल चक्र को अपनाते है लेकिन नहर के अंतिम छोर पर सिंचाई जल की कम उपलब्धता के कारण कृषकों को पारंपरिक फसलोत्पादन से समुचित लाभ नहीं मिल पाता है। इस क्षेत्र की शारदा सहायक नहरी कमांड की चाँदपुर रजबहा एवं उसकी छ अल्पिकाओं के अधीन कुल 4551 कृषि क्षेत्र फल/ हेक्टेयर आता है जिसका मात्र 27.7 प्रतिशत क्षेत्रफल ही इस उपलब्ध जल से सिंचित हो पाता है जिसका अधिकांश भाग अल्पिकाओं के शीर्ष एवं मध्यम छोर तक ही सीमित होता है Posted on 08 Jun, 2023 05:45 PM

प्रस्तावना

यह सर्वविदित है कि जिस प्रकार से मनुष्य को अपनी शारीरिक आवश्यकता के हेतु जल की आवश्यकता पड़ती है वैसे ही पौधों को भी अपनी जरूरतें पूरी करने के लिये जल की आवश्यकता पड़ती है। पौधों के लिये कई प्रकार के खनिज तत्व एवं रासायनिक यौगिक मृदा में मौजूद रहते हैं। लेकिन पौधे उन्हें ठीक तरह से ग्रहण नहीं कर सकते हैं मृदा में उपस्थित जल इन तत्वों को घोल कर जड़ों

नहर के अंतिम छोर पर सिंचाई,Pc-MID
मृदा एवं जल उत्पादकता(वार्षिक रिपोर्ट्स-2019-20)
वैकल्पिक फसल एवं फसलचक्र पैटर्न को अपनाने का सुझाव दिया गया। इसके साथ ही गोआ राज्य त्रिपुरा के सिपाहीजला जिले के चैरीलम ब्लॉक: पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के मयनागुडी ब्लॉक, बीरभूम जिले के राजनगर ब्लॉक: उत्तर प्रदेश में वाराणसी जिले के बड़ागांव ब्लॉक हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में नगरोटा भगवान ब्लॉक: कर्नाटक में मैसूर जिले के एच.डी. कोटे ब्लॉक: हरियाणा में सिरसा जिले के ओधन ब्लॉक पश्चिम बंगाल में 24 परगना दक्षिण के तटवर्ती क्षेत्र एवं कुलटली ब्लॉक तथा राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों के लिए भूमि संसाधन इनवेन्ट्री (LRI) का उपयोग करके वैकल्पिक भूमि उपयोग नियोजन और सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन रीतियों को अपनाने का सुझाव दिया गया। Posted on 07 Jun, 2023 12:12 PM

चुनिंदा जिलों के लिए भूमि उपयोग नियोजन ब्लॉक स्तर पर भूमि उपयोग नियोजन पर कार्य करने हेतु भारत के 27 इच्छुक जिलों के लिए 1 :10,000 स्केल पर भूमि संसाधन इनवेन्ट्री (LRI) तैयार की गई असोम के बरपेटा दरांग, धुबरी, गोलपारा एवं बक्सा जिलों उत्तर प्रदेश के बहराइच, बलरामपुर, चित्रकूट श्रावस्ती तथा सोनभद्र जिलों बिहार के अररिया, बेगुसराय, कटिहार, सीतामडी तथा शेखपुरा जिलों ओडिशा के कालाहाण्डी एवं रायगढ़

मृदा एवं जल उत्पादकता,PC-DB
घटते जल संसाधनों में फसलोत्पादन में वृद्धि के लिए वाषोत्सर्जन आधारित जल प्रबंधन एक उचित प्रौद्योगिकी
पानी सबसे कीमती प्राकृतिक संसाधन है जो धीरे-धीरे दुनिया भर में सीमित संसाधन बनता जा रहा है। दुनिया की एक तिहाई से अधिक आबादी को वर्ष 2025 तक पूर्ण रूप से पानी की कमी का सामना करना पड़ेगा। दुनिया के वर्षावन क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होते हैं जो पहले से ही जनसंख्या का भारी सकेंद्रण कर रहे हैं। Posted on 02 Jun, 2023 01:42 PM

पानी सबसे कीमती प्राकृतिक संसाधन है जो धीरे-धीरे दुनिया भर में सीमित संसाधन बनता जा रहा है। दुनिया की एक तिहाई से अधिक आबादी को वर्ष 2025 तक पूर्ण रूप से पानी की कमी का सामना करना पड़ेगा। दुनिया के वर्षावन क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होते हैं जो पहले से ही जनसंख्या का भारी सकेंद्रण कर रहे हैं। भारत में भी स्थिति गंभीर है, जहां पानी की कमी पहले से ही अधिकांश आबादी को प्रभावित कर रही है। कृषि, भारत

घटते जल संसाधनों में फसलोत्पादन,PC-JAGARN
कम वर्षा वाले क्षेत्रों में नहरी कमांड के तहत ड्रिप सिंचाई पद्धति द्वारा कपास (सफेद सोना) की खेती से किसान के चेहरे पर मुस्कुराहट
नहरों में वार्षिक सिंचाई  की तीव्रता 110% है। इस प्रकार, सिंचाई  के जल की आपूर्ति पूरे  खेती क्षेत्र की सिंचाई करने के लिए पर्याप्त नहीं है इसके परिणामस्वरूप वहाँ दबाव सिंचाई प्रणाली को अपनाने का बहुत अधिक महत्त्व है। इसके अलावा, इस क्षेत्र के किसानों द्वारा भी दबावयुक्त सिंचाई प्रणाली को मान्यता भी मिल रही है। इस क्षेत्र के एक किसान जिनका नाम श्री विनोद कुमार है वो पद्धति के लोकप्रियता के प्रारंभिक चरण में कपास की फसल में दबाव सिंचाई प्रणाली को अपनाने वालों में से एक है। Posted on 01 Jun, 2023 12:45 PM

राजस्थान के अर्द्ध शुष्क इलाकों में गंग भाखड़ा और इंदिरा गांधी नहर परियोजना (IGNP) के नहरी कमांड क्षेत्रों में कपास की फसल अपने अधिक वाणिज्यिक मूल्य के कारण प्रचलित है जिसको वहाँ उसके लोकप्रिय नाम सफेद सोने के रूप में जाना जाता है। इस क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा केवल 300 मिमी और इससे भी कम हो सकती  हैं। वहाँ भूजल लवणीय है और सामान्य तौर पर सिंचाई के लिए उपयुक्त नहीं है। अतः फसल उत्पादन के लिए

कम वर्षा वाले क्षेत्रों में नहरी कमांड के तहत ड्रिप सिंचाई,Pc-Jagarn
खरीफ धान के बाद फसल की उत्पादकता को बढाने और आय में वृद्धि के लिये कम से कम सिंचाई के साथ सूरजमुखी की खेती
सूरजमुखी एक उभरती हुई तिलहन फसल है जिसमें खरीफ धान की फसल के बाद एक आपातकालीन (Contingent ) फसल के रूप में समायोजित होने की अनुकूलन क्षमता है या यूं कह सकते हैं कि यह फसल नीची भूमि के पारिस्थितिक तंत्र में अधिक जल आवश्यकता वाली धान की फसल का एक बहुत ही अच्छा विकल्प है। Posted on 22 May, 2023 12:28 PM

पृष्ठभूमि 

सूरजमुखी एक उभरती हुई तिलहन फसल है जिसमें खरीफ धान की फसल के बाद एक आपातकालीन (Contingent ) फसल के रूप में समायोजित होने की अनुकूलन क्षमता है या यूं कह सकते हैं कि यह फसल नीची भूमि के पारिस्थितिक तंत्र में अधिक जल आवश्यकता वाली धान की फसल का एक बहुत ही अच्छा विकल्प है। किसी भी फसल की उपज की क्षमता और लाभप्रदता उचित सिंचाई की पद्धतियों और समय पर बुवाई

सूरजमुखी एक उभरती हुई तिलहन फसल,Pc-Jagran
पैन वाष्पीकरण मीटर: सिंचाई के उपयुक्त समय के निर्धारण हेतु एक उपयोगी उपकरण
सिंचाई के जल की कमी पौधों में जल और पोषक तत्व तनाव के द्वारा उपन पर प्रभाव डालती है। इस संदर्भ में उपलब्ध जल संसाधनों का प्रभावी उपयोग करने के लिये वैज्ञानिक सिचाई के समय का निर्धारण किसानों को बहुत सहायता कर सकता है एक ऐसा उपकरण जो वाष्पीकरण को मापने के साथ-साथ मौसम के कारकों के प्रभाव को भी एकीकृत करता हो सिंचाई समय के निर्धारण के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है। Posted on 19 May, 2023 02:40 PM
प्रस्तावना

जब वर्षा और मृदा में संचित नमी फसलों की पैदावार बढ़ाने स्थिर करने के लिये पर्याप्त नहीं होती है तब फसलों की जल की माँग को पूरा करने के लिये सिंचाई बहुत ही आवश्यक है। कृषि उद्देश्यों के लिये जल संसाधनों की उपलब्धता तेजी से घट रही है क्योंकि अन्य क्षेत्रों में प्रतिस्पधायें दिन-प्रतिदिन बढ़ती हो जा रही है। हमारे देश में वर्ष 20025 और वर्ष 2050 तक सतह ज

पैन वाष्पीकरण मीटर, Pc-constructor
गुजरात के जल संसाधनों पर सिंचाई  विधियों का प्रभाव
गुजरात राज्य में जल संसाधन बहुत ही सीमित है। वहाँ की प्रमुख नदियां जैसे तापी (उकाई काकरापार), माही (माहौ कदाना), साबरमती (घरोई) आदि के जल का उपयोग करने के लिये पहले से ही पर्याप्त कदम उठाए गए हैं। आगे भी नर्मदा नदी के जल संसाधनों का उपयोग करने के लिये प्रयास पूरी गति से उठाए जा रहे हैं। राज्य के प्रमुख हिस्सों में कम वर्षा और मुख्य रूप से मृदा की जलोड़ प्रकृति के कारण यहाँ अन्य छोटी छोटी नदियों की जल क्षमता सीमित ही नहीं है Posted on 19 May, 2023 01:52 PM
प्रस्तावना

गुजरात राज्य भारत के पश्चिमी भाग में स्थित है। यह पश्चिम में अरब सागर, पूर्वोत्तर में राजस्थान राज्य, उत्तर में पाकिस्तान के साथ अंतराष्ट्रीय सीमा, पूर्व मैं मध्य प्रदेश राज्य और दक्षिण-पूर्व व दक्षिण में महाराष्ट्र राज्य की सीमाओं से  घिरा हुआ है। भारत में इस राज्य का 1600 किलोमीटर की लंबाई के साथ सबसे लंबा समुद्र तट है यह 20°01' से 24° उत्तरी अक्षा

गुजरात के जल संसाधनों पर सिंचाई  विधियों का प्रभाव,Pc-vivacepanorama
जम्मू व कश्मीर के नहरी कमांड क्षेत्रों में धान-गेहूँ फसल अनुक्रम की जल उत्पादकता में सुधार हेतु किसानों के खेतों में लेजर लेवलर तकनीक का प्रसार
कृषि के लिये जल उपलब्धता में कमी के साथ साथ फसलों की पैदावार और इनपुट दक्षता में कमी मुख्य चिंता का विषय बनता जा रहा है। इसलिये जल की कमी को देखते जम्मू के विभिन्न नहरी कमांड क्षेत्रों में चान गेहूँ फसल अनुक्रम के तहत कुल क्षेत्र 1.10 लाख हैक्टेयर आता है। Posted on 18 May, 2023 03:09 PM
प्रासंगिकता

जम्मू के विभिन्न नहरी कमांड क्षेत्रों में चान गेहूँ फसल अनुक्रम के तहत कुल क्षेत्र 1.10 लाख हैक्टेयर आता है। इस क्षेत्र के कमांड क्षेत्रों में कृषि के लिये जल उपलब्धता में कमी के साथ साथ फसलों की पैदावार और इनपुट दक्षता में कमी मुख्य चिंता का विषय बनता जा रहा है। इसलिये जल की कमी को देखते जम्मू के विभिन्न नहरी कमांड क्षेत्रों में चान गेहूँ फसल अनुक्

जम्मू व कश्मीर के नहरी कमांड क्षेत्रों में धान-गेहूँ फसल,PC-AT
पूर्वी भारत के वर्षा आधारित क्षेत्रों में अनानास की खेती
ओडिसा राज्य एवं पूर्वी भारत के अन्य क्षेत्रों में सिचाई जल की कम आवश्यकता के कारण अनानास की खेती की अनुकूलनशीलता बहुत अधिक प्रचलित है। यह फसल कम से कम सिचाई जल पर भी जीवित रह सकती है या यूं कह सकते है कि इसमें सिचाई जल देना या प्रयोग करना भी जरूरी नहीं है। यह केवल वर्षा जल से ही अपनी सिंचाई की आवश्यकता को पूरी कर सकती है। अतः खरीफ धान के बाद रबी के मौसम में जो भूमि परती रहती है उसमें इस 12 महीने से अधिक अवधि वाली अनानास की फसल को विभिन्न उचित सस्य प्रबंधन विधियों के साथ अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में मध्यम एवं ऊँची भूमि परिस्थितियों के तहत बहुत अच्छी तरह से उगाया जा सकता है। Posted on 18 May, 2023 02:14 PM
प्रस्तावना

पूर्वी भारत में 12.5 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र वर्षा आधारित धान की खेती के अंतर्गत है। इन वर्षा आधारित क्षेत्रों में अधिकांशतः भूमि वर्षा के बाद रबी मौसम में सिंचाई सुविधाओं की कमी के कारण मुख्य रूप से परती खंड दी जाती है। इस कारण इस भूमि का खेती के लिए उचित उपयोग नहीं हो पाता है। इसी प्रकार की समान परिस्थिति ओडिशा राज्य में भी मौजूद है। दूसरी तरफ धान

पूर्वी भारत के वर्षा आधारित क्षेत्रों में अनानास की खेती,Pc-Advance Agriculture
ओडिशा राज्य के तटीय क्षेत्रों में मीठे जल की उपलब्धता में वृद्धि हेतु तकनीकी विकल्प
ओडिशा राज्य की तटीय रेखा बंगाल की खाड़ी के किनारे 480 किलोमीटर तक फैली हुई है और इस तट रेखा से 0 से 10 किमी की दूरी के तहत स्थित क्षेत्रों में भूजल को अधिक पम्पिंग के कारण लवणता की समस्या अधिक पायी जाती है। इसलिये वहाँ फसली क्षेत्र को बढ़ाने हेतु जल संसाधन विकसित करने के लिये बहुत ही सीमित विकल्प मौजूद है। Posted on 18 May, 2023 12:40 PM
प्रस्तावना

ओडिशा राज्य के तटीय क्षेत्रों में मानसून अवधि के दौरान अतिरिक्त जल का भराव और मानसून अवधि के बाद ताजा जल की अनुपलब्धता आदि जैसी दोहरी समस्याओं का सामना करना पड़ता है या करना पड़ रहा है। मौजूदा जल संसाधनों के लिये लवणीय जल का प्रवेश इस स्थिति को और भी अधिक गंभीर बना देता है और यह आमतौर पर मानवता और विशेष रूप से कृषि, मीठे जल के संसाधन, मछली पालन और जल

स्लूइस गेट तकनीक, PC- Wikimedia Commons
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