ओडिशा राज्य के तटीय क्षेत्रों में मीठे जल की उपलब्धता में वृद्धि हेतु तकनीकी विकल्प

स्लूइस गेट तकनीक, PC- Wikimedia Commons
स्लूइस गेट तकनीक, PC- Wikimedia Commons
प्रस्तावना

ओडिशा राज्य के तटीय क्षेत्रों में मानसून अवधि के दौरान अतिरिक्त जल का भराव और मानसून अवधि के बाद ताजा जल की अनुपलब्धता आदि जैसी दोहरी समस्याओं का सामना करना पड़ता है या करना पड़ रहा है। मौजूदा जल संसाधनों के लिये लवणीय जल का प्रवेश इस स्थिति को और भी अधिक गंभीर बना देता है और यह आमतौर पर मानवता और विशेष रूप से कृषि, मीठे जल के संसाधन, मछली पालन और जलीय कृषि के लिये बहुत बड़ी चुनौती है। ओडिशा राज्य की तटीय रेखा बंगाल की खाड़ी के किनारे 480 किलोमीटर तक फैली हुई है और इस तट रेखा से 0 से 10 किमी की दूरी के तहत स्थित क्षेत्रों में भूजल को अधिक पम्पिंग के कारण लवणता की समस्या अधिक पायी जाती है। इसलिये वहाँ फसली क्षेत्र को बढ़ाने हेतु जल संसाधन विकसित करने के लिये बहुत ही सीमित विकल्प मौजूद है। इन क्षेत्रों में सिचाई सुविधाओं के बुनियादी ढांचे में कमी के कारण अधिकतम ताजा जल समुद्र में बह जाता है अतः इस पारिस्थितिकी तंत्र में भूमि और जल को उत्पादकता बढाने के लिये पूरे वर्ष भर अधिक मीठे (ताजे) जल को उपलब्धता को सुविधाजनक बनाने हेतु उपयुक्त तकनीकी विकल्पों को विकसित और परिष्कृत करने पर पर्याप्त ध्यान देने की बहुत ही आवश्यकता है।

अनुसंधान क्षेत्र

इस अनुसंधान को भाकृअनुप-भारतीय जल प्रबंधन संस्थान, भुवनेश्वर द्वारा ओडिशा राज्य के केन्द्रापड़ा जिले के महाकालपा ब्लॉक में आयोजित किया गया। यह क्षेत्र क्रमशः 20.40 से 20.50° उत्तरी अक्षांश और 86.45 से 86.75° पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। इस तट रेखा के किनारे औसत समुद्र का स्तर केवल 0-3 मीटर ही है। केन्द्रापड़ा जिले के सभी ब्लॉकों में से महाकालपड़ा ब्लॉक अपने कुल 4905.57 वर्ग किसी के भौगोलिक क्षेत्र के साथ सबसे अधिक आबादी वाला और सबसे बड़ा है। ओडिशा राज्य के केन्द्रापड़ा जिले में सभी ब्लाकों में औसत वार्षिक वर्षा (1994-2013) 1409.58 मिलीमीटर होती है जिसमें से 1236.78 मिमी (87.73%) मानसून मौसम (जून-अक्टूबर) के दौरान प्राप्त होती हैं। अधिकतम और न्यूनतम तापमान मई में 38:60°C तक और जनवरी में 11.20°C तक रहता है। फरवरी से मई तक भूजल स्तर की गहराई 1.2 मीटर से 3.5 मीटर के बीच बदलती रहती है जबकि मानसून के दौरान और मानसून के बाद भूमि की सतह से भूजल का स्तर 0.5 से 1 मीटर ऊपर रहता है। उच्च ज्वार के दौरान सुनिटी क्रीक के माध्यम से लवणीय जल के प्रवेश के कारण सिचाई जल की विद्युत चालकता 1.5 से 27.3 डेसी सिमन्स / मीटर के बीच बदलती रहती है। इसलिये रबी और ग्रीष्म ऋतु में क्रीक द्वारा भरे गये जल निकाय एवं क्रीक का जल सिचाई के लिये उपयुक्त नहीं पाया गया।

ओडिशा राज्य में केन्द्रापड़ा जिले के महाकालपड़ा ब्लॉक में स्थित सुनिटी ग्राम पंचायत के 3900 हेक्टेयर क्षेत्र को मानकर विस्तृत सर्वेक्षण किया गया। वहाँ का हाइड्रोलोजी क्षेत्र अपनी सीमा के साथ प्राकृतिक क्रीक्स (खाड़ियों) से घिरा हुआ है। लैडसेट ईटीएम प्लस उपग्रह छवि और क्षेत्र सर्वेक्षण का उपयोग करके भूमि उपयोग वर्गीकरण का पता लगाया गया जिससे पता चला कि लगभग 1322 हेक्टेयर क्षेत्र फसलों के अंतर्गत 1300 हेक्टेयर क्षेत्र जंगल और प्राकृतिक झाड़ियों के अंतर्गत आता है। क्रीक, जल निकाय, परती भूमि और आवासीय भूमि के अंतर्गत क्रमश: 684 हेक्टेयर ,11.73 हेक्टेयर, 281 हेक्टेयर और 280 हेक्टेयर क्षेत्र शामिल है। रबी मौसम के दौरान केवल 565 हेक्टेयर क्षेत्र ही  दलहन और सब्जी वाली फसलों के अधीन है क्योंकि वहाँ फसलों की जल की माँग को पूरा करने के लिए उपयुक्त और पर्याप्त मात्रा में सिंचाई जल की उपलब्धता नहीं है।

ताजे जल की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिये स्लूइस गेट संरचना का प्रभाव 

इस क्षेत्र का विस्तार से अध्ययन करने के बाद,तट रेखा से 15 किमी दूरी के भीतर तटीय क्षेत्रों में स्थित प्राकृतिक क्रीक्स (खाड़ी) और जल निकायों से सिंचाई जल का उपयोग करने के लिये एक तकनीकी विकल्प विकसित किया गया। इसमें क्रीक के मुहाने पर स्लूइस गेट संरचनाओं के निर्माण के माध्यम से 25 घनमीटर / सेकंड की दर से अपवाहित वर्षा जल का निकास करके इन क्षेत्रों को भूमि और कृषि उत्पादकता में सुधार किया गया। स्लूइस गेट सरंचना के उपयुक्त स्थान की पहचान करने के लिए  हाइड्रोलॉजिकल और हाइड्रोलिक अध्ययन आयोजित किया गया।

इस सरंचना के माध्यम से क्रीक द्वारा लवणीय जल के प्रवेश को रोकने और मॉनसून मौसम के दौरान बाढ़ के पानी का निकास करने में मदद प्राप्त हुई। स्लुइस गेट संरचना के संचालन के बाद, ग्रीष्म ऋतु के दौरान लवणीय जल का प्रवेश कुल 16  डेसी सिमन्स / मीटर से लेकर < 2 डेसी सिमन्स/मीटर तक रोका गया (तालिका 3) कीक और जल निकायों में ताजा जल की उपलब्धता के कारण, रबी मौसम में कुल फसल क्षेत्र 565 हेक्टेयर से बढ़कर 720 हेक्टेयर तक बढ़ गया और गर्मी के मौसम में कुल फसल क्षेत्र में 200 से 274 हेक्टेयर तक वृद्धि हुई (तालिका 4) मॉनसून मौसम के दौरान लगभग 2,000 हेक्टेयर के फसल वाले क्षेत्रों को जल निकास सुविधा प्रदान करके जलाक्रांत या जल भराव की स्थिति से बचाया गया क्योंकि स्लूइस गेट संरचना के माध्यम से अतिरिक्त बाढ़ के पानी का निकास हो गया था। इस प्रकार पूरे वर्ष भर ताजे जल की उपलब्धता सुनिश्चित की गई जिसके परिणामस्वरूप रबी और गर्मी के मौसम में फसलों की उत्पादकता में क्रमश: 36% और 26% तक की वृद्धि हुई।

तालिका 3. तकनीक के स्थापन से पहले और बाद में सुनिटी क्रीक के विभिन्न सेक्सन्स में जल गुणवत्ता में बदलाव
तालिका 3-तकनीक के स्थापन से पहले और बाद में सुनिटी क्रीक के विभिन्न सेक्सन्स में जल गुणवत्ता में बदलाव
तालिका 4. स्लूइस गेट तकनीक के हसाक्षेप से पूर्व में और बाद में अनुसंधान क्षेत्र के तहत कुल फसल क्षेत्र
तालिका 4. स्लूइस गेट तकनीक के हसाक्षेप से पूर्व में और बाद में अनुसंधान क्षेत्र के तहत कुल फसल क्षेत्र
निष्कर्ष

बंगाल की खाड़ी की तट रेखा से 15 किमी के अंतर्गत स्थित ओडिशा राज्य के केन्द्रापड़ा जिले की सुनिटी ग्राम पंचायत में एक क्रीक के मुहाने पर स्लूइस गेट संरचनाओं के निर्माण के माध्यम से वहाँ की भूमि और जल उत्पादकता में सुधार किया गया। इस तकनीक के कारण मॉनसून मौसम के दौरान लगभग 2000 हेक्टेयर फसलीय क्षेत्र से बाढ़ के जल का निकास किया गया। इस तकनीक से वहाँ पूरे वर्ष भर मीठे जल की उपलब्धता सुनिश्चित की गई जिसके परिणामस्वरूप रबी और गर्मी के मौसम में फसलों की उत्पादकता में क्रमश: 36% और 25% तक की वृद्धि हुई तटीय क्षेत्रों में इन नियंत्रित उपायों के निर्माण के बाद जल संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर खेत की आय को बढ़ाने के लिये इष्टतम फसल योजना विकसित की जा सकती है। इस तकनीक से हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री जी के द्वारा परिकल्पित दोगुनी कृषि आय के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।
 

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Post By: Shivendra
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