पृष्ठभूमि
सूरजमुखी एक उभरती हुई तिलहन फसल है जिसमें खरीफ धान की फसल के बाद एक आपातकालीन (Contingent ) फसल के रूप में समायोजित होने की अनुकूलन क्षमता है या यूं कह सकते हैं कि यह फसल नीची भूमि के पारिस्थितिक तंत्र में अधिक जल आवश्यकता वाली धान की फसल का एक बहुत ही अच्छा विकल्प है। किसी भी फसल की उपज की क्षमता और लाभप्रदता उचित सिंचाई की पद्धतियों और समय पर बुवाई की विधि को अपनाने पर निर्भर करती है। पूर्वी भारत के निचले इंडो गंगा मैदानी क्षेत्रों में खरीफ धान की फसल के बाद अवशिष्ट नमी का उपयोग करते हुये संसाधन गरीब किसान आम तौर पर रबी मौसम में दूसरी फसलों को उगाते है लेकिन यहाँ अनुचित सिंचाई पद्धतियों और सस्य विधियों के कारण इन फसलों की उत्पादकता काफी कम प्राप्त होती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुये उचित सिंचाई योजना के साथ सूरजमुखी की फसल के लिये शीघ्र बुआई की रणनीति एक व्यवहार्य विकल्प साबित हो सकता है जो इस फसल की अधिकतम उपज जल उत्पादकता और उच्च लाभप्रदता को बनाए रखता है।।
तकनीक का सुझाव
- खेत में लगभग 4-5 बार जुताईयों के साथ हर जुताई के बाद मृदा को पाटा लगाकर समतल कर देना चाहिये
- दिसंबर के दूसरे सप्ताह के दौरान 60 सेमी x 30 सेमी की दूरी पर रोग मुक्त स्वस्थ किस्म PAC 36 की बुआई करनी चाहिए।
- खेत को अंतिम भूमि तैयारी के दौरान 10 टन/ हेक्टेयर की दर से अच्छी तरहविघटित गोबर की खाद को मृदा के साथ मिलायें।
- बुआई के बाद अच्छे बीज अंकुरण और एक समान पौधों के स्थापन के लिये 20 मिमी की गहराई को एक बुआई पूर्व सिंचाई लागू करें।
- उर्वरकों को सुझाई गई खुराक 60:40:40 किग्रा / हेक्टेयर की दर से नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटाशियम का प्रयोग करें।
- बुवाई से ठीक पहले फॉस्फोरस एवं पोटाशियम उर्वरकों को पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा का बेसल खुराक के रूप में प्रयोग करें और शेष बच्ची नाइट्रोजन की आधी मात्रा को बुआई के 300 दिन बाद टॉप ड्रेस्सिंग के रूप में प्रयोग करें।
- खेती के दौरान लगभग 50 मिलीमीटर की गहराई की सिंचाई के साथ बुआई के 45 और 90 दिनों पर कम सिंचाई जल से दो सिंचाइयाँ करें।
- अच्छी उपज प्राप्त करने के लिये अप्रैल के दूसरे सप्ताह में फसल की कटाई कर लेनी चाहिये।
उपज एवं लाभ
रबी के मौसम में सूरजमुखी की फसल की शीघ्र बुवाई (14 दिसंबर) करने पर तथा बुआई के 45 और 90 दिनों बाद दो सिंचाइयां (प्रत्येक 100 मिलीमीटर) करने पर 5.48 टन/ हेक्टेयर) की दाना उपज प्राप्त होती है यह उपज देर से बुबाई (28 जनवरी) करने तथा 15-18 दिन के अंतराल पर चार सिचाईयाँ प्रदान करने (3.33 टन/हेक्टेयर) की तुलना में 64.6% अधिक थी जो समान्यतया किसानों द्वारा अपनायी गई थी। देर से बुवाई और अधिक सिचाई की स्थिति में जल उपयोग दक्षता केवल 14.2 किलो/हे-मिमी) ही प्राप्त होती है जो शीघ्र बुवाई एवं दी सिंचाइयों के साथ बढ़कर 46.7किलोग्राम / हेक्टेयर - मिमी तक हो गई इस फसल को शीघ्र बुवाई करने के कारण के कम से कम दो सिंचाइयों के जल यानि 100 मिलीमीटर सिंचाई जल को बचाया जा सकता है। किसानों द्वारा अपनायी गई परंपरागत विधि (शुद्ध लाभ ₹22930 / व लाभ: लागत अनुपात 1.85) के मुकाबले शीघ्र बुवाई एवं दो सिंचाइयाँ देने पर अधिकतम शुद्ध लाभ ₹56680/ हेक्टेयर और 3.22 लाभ: लागत अनुपात प्राप्त किया जा सकता है। इन क्षेत्रों के लिये यह सबसे अच्छा वैकल्पिक व्यवहार्य दृष्टिकोण है जो सूरजमुखी की फसल से अधिकतम दाना उपज देता है और साथ ही साथ पूर्वी भारत के किसानों को अधिक लाभांश भी देता है। इस प्रकार खरीफ धान की पैदावार के बाद रवी मौसम में सूरजमुखी की फसल की बुवाई करना इसके अनुकूलन को दर्शाता है। अतः खरीफ धान के बाद शीघ्र बुआई तथा कम से कम सिचाई के साथ सूरजमुखी की खेती किसानों के लिये बहुत ही लाभकारी साबित हो सकती है जो किसानों को कृषि से दोगुनी आय प्राप्त करने के लक्ष्य को साकार कर सकती है।
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