मृदा एवं जल उत्पादकता(वार्षिक रिपोर्ट्स-2019-20)

मृदा एवं जल उत्पादकता,PC-DB
मृदा एवं जल उत्पादकता,PC-DB

चुनिंदा जिलों के लिए भूमि उपयोग नियोजन ब्लॉक स्तर पर भूमि उपयोग नियोजन पर कार्य करने हेतु भारत के 27 इच्छुक जिलों के लिए 1 :10,000 स्केल पर भूमि संसाधन इनवेन्ट्री (LRI) तैयार की गई असोम के बरपेटा दरांग, धुबरी, गोलपारा एवं बक्सा जिलों उत्तर प्रदेश के बहराइच, बलरामपुर, चित्रकूट श्रावस्ती तथा सोनभद्र जिलों बिहार के अररिया, बेगुसराय, कटिहार, सीतामडी तथा शेखपुरा जिलों ओडिशा के कालाहाण्डी एवं रायगढ़ जिलों: झारखण्ड के साहिबगंज एवं पाकुड़ जिलों; महाराष्ट्र के नन्दुरवर जिले मध्य प्रदेश के बरवानी, दमोह, खण्डवा, विदिशा एवं सिंगरौली जिलों तथा राजस्थान के बारन एवं जैसलमेर जिलों के लिए वैकल्पिक फसल एवं फसलचक्र पैटर्न को अपनाने का सुझाव दिया गया। इसके साथ ही गोआ राज्य त्रिपुरा के सिपाहीजला जिले के चैरीलम ब्लॉक: पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के मयनागुडी ब्लॉक, बीरभूम जिले के राजनगर ब्लॉक: उत्तर प्रदेश में वाराणसी जिले के बड़ागांव ब्लॉक हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में नगरोटा भगवान ब्लॉक: कर्नाटक में मैसूर जिले के एच.डी. कोटे ब्लॉक: हरियाणा में सिरसा जिले के ओधन ब्लॉक पश्चिम बंगाल में 24 परगना दक्षिण के तटवर्ती क्षेत्र एवं कुलटली ब्लॉक तथा राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों के लिए भूमि संसाधन इनवेन्ट्री (LRI) का उपयोग करके वैकल्पिक भूमि उपयोग नियोजन और सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन रीतियों को अपनाने का सुझाव दिया गया।

कृषि पारिस्थितिकीय प्रणाली (इकोलॉजिकल) क्षेत्र आधारित भूमि नियोजन


टिकाव  कृषि के लिए जलवायु के संशोधक के तौर पर प्राकृतिक भूगोल का उपयोग करते हुए जैव जलवायु एवं फसल बढ़वार अवधि की लंबाई (LGP) के आधार पर 200 इकाइयों के साथ देश का कृषि पारिस्थितिकी क्षेत्र (AER) मानचित्र तैयार किया गया। कृषि पारिस्थितिकी इकाइयों को एक बार पुनः संशोधक के तौर पर उप-प्राकृतिक भूगोल का उपयोग करते हुए जैव जलवायु एवं फसल बढ़वार अवधि (LGP) के आधार पर कुल 62 इकाइयों के साथ कृषि पारिस्थितिकी उप क्षेत्र (ABSR) में बांटा गया।

मृदा एवं जल उत्पादकता

मृदा, भूमि स्वरूप, वर्षा, तापमान, फसल बढ़वार अवधि की लंबाई तथा सिंचाई क्षमता के आधार पर क्षेत्र विशिष्ट प्रभावी एवं लाभकारी फसलों एवं फसलचक्र अनुक्रमों का निरूपण किया गया। क्षमताशील फसल जोन में शामिल हैं भूमि प्रबंध इकाइयों (I.MUS) का विकास, जैव-भौतिकी उपयुक्तता मूल्यांकन, संदर्भ फसलों तथा फसलचक्र अनुक्रमों के आपेक्षिक विस्तार एवं उत्पादकता के जैव भौतिकी उपयुक्त मानचित्रों को जोड़ना।

आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना एवं पश्चिम बंगाल में तिल के लिए क्षमताशील क्षेत्र की पहचान की गई। आन्ध्र प्रदेश में तेल ताड़ की खेती और कर्नाटक एवं मध्य प्रदेश में अनार की खेती की उपयुक्तता का मूल्यांकन किया गया। हरियाणा में सिरसा जिले के ओधन ब्लॉक के लिए कपास, गेहूं, सरसों और ग्वार हेतु मृदा की उपयुक्तता का मूल्यांकन किया गया जबकि व्यावसायिक फसलों यथा कर्नाटक राज्य में चिकमंगलूर जिले के बिलालगोड सूक्ष्म जलसंभर क्षेत्र में कॉफी एवं नारियल इडुक्की जिले के इलडेसम में रबर: चित्रदुर्ग जिले के सिद्धलहनाकोटे गांव के जलसंभर क्षेत्र के लिए सात प्रमुख फसलों के लिए मृदा उपयुक्तता मानचित्रों का निरूपण किया गया।

एचडीपीई अंतः स्थापित गैवियन संरचनाएं 

अपवाह जल का संचयन करने, आधार प्रवाह को बनाये रखने तथा तलछट नुकसान में कमी लाने के लिए जल निकासी नालियों में एचडीपीई गैवियन अंतः स्थापित अथवा इम्बेडिड गैवियन संरचनाओं का उपयोग करते हुए एक प्रौद्योगिकीय हस्तक्षेप किया गया। जलसंभरा में ढीली शिलाखंड संरचनाओं अथवा गैबियन चैक बांध का निर्माण ऊपरी पहुंच में किया जाता हैं ताकि जलधारा को स्थिर किया जा सके और प्रवाह के वेग को कम किया जा सके जिसके परिणामस्वरूप मृदा कटाव को न्यूनतम किया जा सके। गैवियन संरचनाओं की संरचना के मध्य में 1मिमी. एचडीपीई फिल्म के साथ अंतः स्थापन किया गया। इन प्लास्टिक अंत:स्थापन संरचनाओं का निर्माण किया गया और किसानों के खेतों अथवा परियोजना कलस्टर के जलसंभर क्षेत्रों में इनका मूल्यांकन किया गया। इन प्लास्टिक फिल्म अंतःस्थापित गैबियन संरचनाओं द्वारा पारम्परिक गैबियन बांधो , जिनमें प्लास्टिक फिल्मों का उपयोग नहीं किया जाता के मुकाबले में तलछट की मात्रा में 70 प्रतिशत तक की कमी आई। यह संरचना 9000 से 15000 घन मीटर की सीमा में जल का भण्डारण करने, कुओं में 0.6 मीटर तक जल स्तर को बढ़ाने और एक हेक्टर क्षेत्र में सिंचाई के प्रावधान के लिए प्रभावी थी।

गन्ने की खेती के लिए उप सतह ड्रिप सिंचाई 
कृषि अनुसंधान केन्द्र गंगावथी में लवणीय वर्टिसोल में लवण सहिष्णु गन्ना की उपज पर उपसतह हिप सिंचाई का मूल्यांकन किया गया जिसमें उपसतह ड्रिप सिंचाई के अंतर्गत उच्चतर गन्ना उपज ( 131 टन है.) एवं तदुपरान्त सतह डिप सिंचाई विधि ( 124.4 टन/ है) में और सबसे कम खांचा सिंचाई विधि (105 टन/है.) में उपज दर्ज की गई। सिचाई स्तरों के बीच 1.2 ईटी में उल्लेखनीय रूप से कहीं उच्चतर उपज (124.7 टन/है.) एवं तदुपरान्त 1 ईटी (ET) के तहत (121 टन /है.) एवं सबसे कम उपज 0.8 ईटी (114.7 टन/ है.) के तहत दर्ज की गई। सिंचाई की विधियों और स्तरों के बीच परस्पर प्रभाव गैर उल्लेखनीय पाया गया। सिंचाई की विधियों के बीच उपसतह ड्रिप सिंचाई के अंतर्गत उल्लेखनीय रूप से 83 किग्रा./ है. / मिमी. को उच्चतर जल उपयोग दक्षता (WUE) एवं तदुपरान्त सतहो ड्रिप सिंचाई के तहत 78.6 किग्रा./है/मिमी. की जल उपयोग दक्षता

WUE) पाई गई, वहीं 66.4 किग्रा./है/मिमी. की सबसे कम जल उपयोग दक्षता (WUE) खांचा सिंचाई विधि के अंतर्गत दर्ज की गई। विभिन्न सिंचाई स्तरों के बीच 0.8 ईटो पर उल्लेखनीय रूप से उच्चतर जल उपयोग दक्षता (WUE) (75.9 किग्रा./ है. / मिमी) एवं तदुपरान्त 1 ईटी स्तर पर (75.9 किग्रा./ है. / मिमी.) दर्ज की गई। वहीं 1.2 ईटी  के स्तर पर सबसे कम जल उपयोग दक्षता (68.9 किग्रा है./ मिमी.) दर्ज की गई। ब्रिक्स प्रतिशत उपज तथा प्रयोग किए गए कुल जल के आधार पर शर्करा जल उपयोग दक्षता (S- WUE) की गणना की गई। सिंचाई की विधियों के मामले में उल्लेखनीय रूप से उच्चतर शर्करा जल उपयोग दक्षता (S- WUE) उप-सतह द्दिप सिंचाई (1.72 किग्रा. प्रति घन मीटर) में एवं तदुपरान्त सतह डिप सिंचाई (1.59 किग्रा. प्रति घन मीटर) अंतर्गत दर्ज की गई जबकि सबसे कम शर्करा जल उपयोग दक्षता (S- WUE) खांचा सिंचाई विधि (1.34 किग्रा. प्रति घन मीटर) के तहत दर्ज की गई। सिंचाई के भिन्न स्तरों के बीच 0.8 ईटी पर उल्लेखनीय रूप से उच्चतर शर्करा जल उपयोग दक्षता (S- WUE) 1.66 किग्रा. प्रति घन मीटर) एवं तदुपरान्त ईटी स्तर पर (1.57 किग्रा. प्रति घन मीटर) तथा सबसे कम शर्करा जल उपयोग दक्षता (S-WUE) 1.2 ईटी स्तर पर (1.43 किग्रा. प्रति घन मीटर) दर्ज की गई।

लवणीय जल के साथ कम सिंचाई-

 शुष्क एवं अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में सिंचाई प्रयोजन के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले जल की सीमित उपलब्धता के कारण सूखे की समस्या से बचने और फसल उपज को बढ़ाने के लिए लवणीय जल का साथ-साथ उपयोग करना जरूरी हो जाता है। ऐसी परिस्थितियों के लिए समुचित मुदा जल फसल प्रबंधन- रीतियों का विकास करने के लिए एक अध्ययन किया गया जिसके तहत प्रणाली उत्पादकता और लाभप्रदता को बढ़ाने के लिए अंतरा/ अंतर मौसमी जड़ क्षेत्र लवणता का प्रबंधन करने हेतु संरक्षित कृषि (CA) के साथ लवणीय जल सिंचाई को शामिल किया गया। जुताई उपचारों यथा शून्य जुताई न्यून जुताई (ZT-RT), पारम्परिक जुताई पारम्परिक जुताई (CT- CT) तथा शून्य जुताई शून्य जुताई (ZTZT) का मूल्यांकन ज्वार गेहूं फसलचक्र प्रणाली के तहत चावल पुआल पलवार (0 एवं 5 टन / है. ) के अंतर्गत गेहूं की फसल में 100 80 तथा 60 प्रतिशत की जल आवश्यकता (WR) पर लवणीय जल सिंचाई (EC 8ds/m) के साथ संयोजन में किया गया। पांच वर्षीय अध्ययन से यह प्रमाणित हुआ कि लवणीय जल सिंचाई (EC Sds/m) के साथ संरक्षित कृषि (CA) का शुष्क सामग्री मात्रा पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं था। धान पुआल को पलवार के रूप में बिछाने पर सिंचाई की आवश्यकता में 40 प्रतिशत तक की कमी आई और पलवार का प्रयोग नहीं करने के साथ 100 प्रतिशत सिंचाई का प्रयोग करने (5.39 टन/ है.) के मुकाबले में गेहूं की उल्लेखनीय रूप से कहीं उच्चतर उपज (5.9 टन/ है.) दर्ज की गई। लवणीय जल सिंचाई के साथ संरक्षित कृषि आधारित प्रबंधन द्वारा भिन्न वर्षों में उपज वृद्धि 8 से 10 प्रतिशत के बीच थी। 60 प्रतिशत जल आवश्यकता (WR) पर कम लवणीय सिंचाई द्वारा ज्वार में अधिकत्तम नाइट्रोजन और प्रोटीन मात्रा को बनाये रखा गया। इसलिए लवण प्रभावित मृदा में सीमित सिंचाई परिस्थितियों के अंतर्गत, संरक्षित कृषि आधारित प्रबंधन (शून्य जुताई अपशिष्ट को बनाये रखना) उपज, पोषक तत्वों की मात्रा और प्रणाली उत्पादकता को बढ़ाने में प्रभावी है। 100 प्रतिशत जल आवश्यकता की तुलना में 60 प्रतिशत जल आवश्यकता फसल प्रबंधन (WR) लवणीय सिंचाई में ज्वार और गेहूं की कटाई के उपरान्त मृदा गुणवत्ता सूचकांक (SQI) के बेहतर मान प्रदर्शित हुए। ज्वार और गेहूं की खेती के उपरान्त पलवार का प्रयोग करने पर भी मुदा गुणवत्ता सूचकांक (SQI) में सुधार देखने को मिला।

पशुधन के लिए बाजरा नेपियर संकर -

पशुधन के लिए हरे चारे की उपलब्धता को बढ़ाने के लिए बाजरा नेपियर संकर (BN संकर किस्मों को प्रोत्साहित करने के प्रयोजन से एक अभियान चलाया गया। इसमें किसानों कृषिरत महिलाओं और ग्रामीण युवाओं को लक्षित किया गया जिसके लिए संस्थान के फार्म पर बाजरा नेपियर संकर का प्रदर्शन किया गया। कार्यशाला, किसान इन्टरफेस बैठक एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। बाजरा नेपियर की खेती करने वालों का वाट्सअप  ग्रुप बनाया गया, यू-ट्यूब वीडियो (https://www.youtube.com/ watch?v=Ro_10b2UGGci=42) तैयार की गई नेपियर की खेती पर एक मोबाइल ऐप विकसित किया गया. आकाशवाणी डीडी न्यूज पर बी एन संकर की सफलता गाथाओं को प्रसारित किया गया और समाचार पत्रों आदि में इसका प्रकाशन किया गया। बी एन संकर पर तैयार किए गए यू ट्यूब वीडियो को देशभर में कुल 24.585 दर्शकों ने देखा और बी एन संकर कटिंग की खरीद के लिए देश के 11 राज्यों के 162 किसानों से फोन आए। किसानों से मिली प्रतिक्रिया से पता चला कि नेपियर की खेती करने वाले किसानों द्वारा अन्य किसानों को भी तना कटिंग का आगे वितरण किया जा रहा है और बी एन संकर के तहत कृषि रकबे में बढ़ोतरी हुई है जबकि इससे पहले बरेली जिले में इसकी खेती नहीं की जा रही थी। किसानों ने बताया कि पशुधन को हरे चारे की नियमित उपलब्धता बने रहने से दुधारू पशुओं के दुग्धकाल में बढ़ोतरी हुई जिससे उनको पारिवारिक आय में वृद्धि हो रही है।

भारतीय मुदाओं में सूक्ष्म पोषक तत्वों के लिए ई-एटलस:

 भारतीय मुदाओं में सूक्ष्म पोषक तत्वों पर एक ई-एटलस तैयार की गई ताकि देश की विभिन्न मृदाओं में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी की समस्या का समाधान किया जा सके और फसल उत्पादन एवं फसल गुणवत्ता पर इनके प्रभाव का पता लगाया जा सके। इस एटलस में देश के कुल 23 राज्यों के 536 जिलों की तालुकावार मृदा की सूक्ष्म पोषक तत्व स्थिति का शामिल किया गया है और साथ ही विभिन्न हितधारकों द्वारा उपयोग करने के लिए विविध फसलों व फसल चक्र प्रणालियों के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों की दर समय एवं स्रोत के संबंध में की गई सिफारिश भी शामिल हैं।

अरहर के राइजोस्फेयर में राइजोबियल विविधता : 

मध्य प्रदेश राज्य में छह जिलों के 18 भिन्न स्थानों से संकलित किए गए अरहर के राइजोस्फेयर मृदा नमूनों में सूक्ष्मजीवों को विविधता का आकलन किया गया जिसमें 16 SrRNA जीन अनुक्रमण का उपयोग किया गया। अधिकांश स्ट्रेन अथवा प्रभेद ब्रेडोराइजोबिया प्रजाति से संबंधित थे। मृदा में राइजोबिया की उपस्थिति को सुनिश्चित करने के लिए एमपीएन द्वारा राइजोबियल स्ट्रेन की प्रचुरता की गणना की गई। रेत संवर्धन तकनीक का उपयोग करते हुए पृथक्कों की पादप नोडुलेशन तथा सहजीवों प्रभावशीलता की जांच की गई। राइजोबिया के लगभग 700 स्ट्रेन को अलग किया गया और इनमें से 127 पृथक्क नोडुलेशन के लिए दक्ष थे। जैव रासायनिक विशेषताओं और पीजीपीआर गुणों के आधार पर सर्वश्रेष्ठ 56 स्ट्रेन का पुनः मूल्यांकन किया गया। इन स्ट्रेन के डीएनए को एल्कली लाइसिस विधि द्वारा पृथक्क किया गया और बैण्डिंग पैटर्न के आधार पर समान स्ट्रेन की जांच करने हेतु BOX - PCR को आजमाया गया। 16 SrRNA मिलती है। अनुक्रमण एसिटीलिन कम आमाप और सम्पूर्ण जीनोम अनुक्रमण के लिए 32 स्ट्रेन का चयन किया गया। इन स्ट्रेनों में ज्ञात स्ट्रेनों की तुलना में उच्च नाइट्रोजन निर्धारण क्षमता और नोडुलेशन दक्षता प्रदर्शित हुई।

सूक्ष्मजीव मध्यस्थ स्व: स्थाने फसल अपशिष्ट अपघटन  चावल गेहूं फसलचक्र प्रणाली में फसल की कटाई के - उपरान्त धान पुआल की बड़ी मात्रा निपटान के लिए शेष रह जाती है और इसमें से अधिकांश का खेत में कोई उपयोग नहीं किया जाता जिससे विशेषकर ऐसे क्षेत्रों में जहां आगामी फसल को कुछ दिन उपरान्त ही बोया जाता है, वहां किसान इसे जला देते हैं। पौधों की बढ़वार को बढ़ावा देने वाले गुणों के साथ दो प्रभावी तथा सुसंगत हैलोफिलिक जीवाण्विक लिंगो सेलुलोलाइटिक स्ट्रेन के सूक्ष्मजीव संघ अथवा कशोर्सिया को फसल अपशिष्ट के लिए एक डिकम्पोजर के तौर पर जैव फार्मुलेशन "Halo CRD" के रूप में उपयुक्त मानकीकृत मीडिया में तैयार किया गया । प्रभावी अपघटन करने वाले इन सूक्ष्मजीवों द्वारा फसल अपशिष्ट का अपघटन किया जा सकता है और मृदा कार्बन के निर्माण में मदद की जा सकती है जिससे क्षारीय तथा लवणीय क्षारीय मृदाओं में सुधार किया जा सकता है।

छाछ के साथ सीडीएम के कशोर्सिया का टीकाकरण करने पर ठूंठ के प्रारंभिक भार की तुलना में 59.8 प्रतिशत की अधिकतम कमी के साथ ठूंठ के भार में 46.7 प्रतिशत तक की कमी आई। छाछ के साथ कशोर्सिया का टीकाकरण करने के 35 दिनों बाद अपशिष्ट सामग्री (टूट एवं पुआल ) के कार्बन नाइट्रोजन अनुपात में 66.5:1 से 24:1 तक की कमी आई धान पुआल के स्वः स्थाने अपघटन से भी आगामी अथवा अनुवर्ती गेहूं फसल की उपज में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई। तीन सीजन के डाटा से पता चला कि छाछ के साथ अपघटित करने वाले सूक्ष्मजीवों के कंशोसिया के साथ अपशिष्ट का टीकाकरण करने पर धान पुआल के त्वरित स्व: स्थाने अपघटन में मदद मिलती है। अध्ययन के परिणामों से ऊर्जा की बचत करने के साथ-साथ जैव सुधार को प्रोन्नत करने हेतु पोषक तत्वों की रिसाइक्लिंग करने, मृदा की सूक्ष्मजीव सक्रियता में सुधार करने और कार्बन समृद्धि हेतु अपशिष्ट उपयोगिता की सुविधा मिलेगी जिससे लवण प्रभावित मृदाओं के द्वारा फसल उत्पादन एवं मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन के वांछित स्तर को हासिल करने में मदद मिलती है 

चारा- 

चाइनीज बंदगोभी, रबी मौसम की एक अल्पावधि चारा फसल है और इसमें अंतरवर्ती फसल के रूप में खेती करने और अभाव अथवा कमी वाली अवधि के दौरान हरा चारा उपलब्ध करवाने की क्षमता है। चाइनीज बंदगोभी पर किए गए परीक्षणों में पता चला कि ऊंट को खाद और रासायनिक उर्वरीकरण का प्रयोग करने पर चारा उपज में उल्लेखनीय सुधार हुआ।

बुंदेलखंड क्षेत्र में सूखे से निपटने के लिए हवेली प्रणाली का पुनरुद्धार

चंदेलों एवं बुन्देलों (लगभग 400 वर्ष पूर्व) के शासन काल के दौरान मानसून के दौरान वर्षाजल एकत्रित करने के लिए जलधारा के चारों ओर 'हवेली प्रणाली' मिट्टी का बांध बनाया जाता था ताकि जल की कमी को पूरा किया जा सके। मानसून अवधि के दौरान संचित किए गए जल से जहां खुले कुएं रिचार्ज होते हैं और साथ ही हवेली के चारों ओर के इलाके में खरीफ फसलों को क्रांतिक अवस्था के दौरान सिंचाई के एक स्रोत के रूप में भी यह प्रणाली कार्य करती है। एकत्रित किए गए जल को अक्तूबर माह के दौरान बाहर निकाल दिया जाता है और की क्यारी का उपयोग रवि  फसलों की खेती के लिए किया जाता है। हवेली प्रणाली से निकले जल का उपयोग कम ऊंचाई पर खेती करने वाले किसानों द्वारा बुआई से पूर्व सिंचाई के लिए भी किया जाता है। अपशिष्ट मृदा नमी का उपयोग करके हवली प्रणाली में आमतौर पर गेहूं और चने की खेती की जाती है। समय के साथ नुकसानग्रस्त निकासी बांध में रिसाव, अत्यधिक गाद का जमा होना तथा बांध का टूटना आदि के कारण हवेली निष्क्रिय हो गई हैं। बुन्देलखण्ड क्षेत्र के झांसी  जिले में पारासह सिंध जलसंभर में मौजूद हवेली प्रणाली का सामुदायिक भागीदारी की मदद से पुनरूद्धार किया गया। वर्षाकाल के दौरान अत्यधिक जल अपवाह को बाहर निकालने के लिए एक ड्राप स्पिलवे (आयताकार बांध अथवा मेड़) का निर्माण किया गया। मेड़ अथवा बांध को हवेली में क्यारी स्तर से 1.45 मीटर की ऊंचाई पर बनाया गया। 50 मीटर टूटे हुए क्षेत्र में मुख्य अथवा केन्द्रीय दीवार के साथ मिट्टी का बांध बनाया गया। रिसाव को रोकने के लिए, हवेली के साथ के साथ-साथ 147 मीटर पत्थर की दीवार बनाई गई। संरचना का जलमग्न  क्षेत्र लगभग 8.0 हेक्टर है जिसकी जल संचयन क्षमता 73,000 घन मीटर है। बहू भराव के कारण लगभग 1.5 से 2.5  लाख घन मीटर जल अपवाद को अब सामान्य मानसून मौसम के दौरान एकत्रित किया जा रहा है जिससे पारास गांव में जल की कमी वाले मुद्दे का पूरी तरह से समाधान किया गया। हवेली में वर्षा  संचयन की लागत लगभग प्रति घन मीटर जल भण्डारण रुपये 4.53 है। अल्पकालिक जल धाराओं में बाघों की मुखला से मिले जल के कारण पुनरुद्धार की गई हवेली के परिणामस्वरूप जलसंभर में हवा-पानी से नष्ट हुए जॉन को संतृप्तता के साथ साथ 1,15,000 घन मीटर सतह जल भण्डारण हुआ । भूजल स्तर (2 से 5 मीटर) और आधार प्रवाह (2 से 3 गुना) में बढ़ोतरी और जलधारा के प्रवाह में कमी होने से यह प्रणाली 25 से 30 प्रतिशत कम वर्षा के साथ शीघ्र ही सूखा अनुकूल बन गई। इससे लगभग 176 हेक्टर रवी परती भूमि को खेती के अंतर्गत लाया गया। विभिन्न फसलों की उत्पादकता में 20 से 70 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई।
 

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Post By: Shivendra
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