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यह देखकर अच्छा लगता है कि बिहार की राजधानी पटना के अनुग्रह नारायण सिंह कॉलेज में पयार्वरण एवं जल प्रबंधन विभाग भी है। इस विभाग में मिलते हैं डॉ. अशोक कुमार घोष, जो पिछले तेरह-चौहद सालों से बिहार के विभिन्न इलाकों में पेयजल में मौजूद रासायनिक तत्वों और उनकी वजह से यहां के लोगों को होने वाली परेशानियों पर लगातार न सिर्फ शोध कर रहे हैं, बल्कि लोगों को जागरूक कर रहे हैं और इस समस्या का बेहतर समाधान निकालने की दिशा में भी अग्रसर हैं।
राज्य की गंगा पट्टी के इर्द-गिर्द बसे इलाकों में पानी में आर्सेनिक की उपलब्धता और आम लोगों पर पड़ने वाले इसके असर पर इन्होंने सफलतापूर्वक सरकार और आमजन का ध्यान आकृष्ट कराया है। पिछले तीन-चार साल से वे पानी में मौजूद एक अन्य खतरनाक रसायन फ्लोराइड की मौजूदगी और उसके कुप्रभावों पर काम कर रहे हैं। उनके प्रयासों का नतीजा है कि बिहार की सरकार भी इन मसलों पर काम करने की दिशा में सक्रिय हुई है और पूरे राज्य के जलस्रोतों का परीक्षण कराया गया है।
38 जिलों वाले बिहार राज्य के आठ जिलों का पानी ही प्राकृतिक रूप से पीने लायक है, शेष 30 जिलों के इलाके आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन से प्रभावित हैं। इन्हें बिना स्वच्छ किए नहीं पिया जा सकता। बिहार सरकार के लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग ने राज्य के 2,70,318 जल स्रोतों के पानी का परीक्षण कराया है।
इस परीक्षण के बाद ये आंकड़े सामने आए हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक बिहार के उत्तर-पूर्वी भाग के 9 जिले के पानी में आयरन की अधिक मात्रा पाई गई है, जबकि गंगा के दोनों किनारे बसे 13 जिलों में आर्सेनिक की मात्रा और दक्षिणी बिहार के 11 जिलों में फ्लोराइड की अधिकता पाई गई है। सिर्फ पश्चिमोत्तर बिहार के आठ जिले ऐसे हैं जहां इनमें से किसी खनिज की अधिकता नहीं है। पानी प्राकृतिक रूप से पीने लायक है।