कहानी गोड्डा जिले के बोदरा गांव की
समारोहों में पीने के पानी का टैंकर बुलाते हैं और रिश्तेदारों को आश्वस्त करते हैं। मगर गाँव के हर तबके के लोगों के लिए इतना खर्च कर पाना मुमकिन नहीं। कई परिवार तो गाँव छोड़कर बाहर बस गए हैं। इन परेशानियों के बीच गाँव के लोगों की एकमात्र उम्मीद ईसीएल के वाटर ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट से लगी है। मगर दो साल बाद भी प्लाण्ट के लिए ईंट का एक टुकड़ा जमीन पर नहीं नजर आया है, यह देखकर लोगों का हौसला टूटने लगा है। झारखंड के गोड्डा जिला का बोदरा गाँव। जहाँ सैकड़ों परिवार गम्भीर स्केलेटल फ्लोरोसिस के शिकार हैं। महज ढाई साल पहले तक तो उन्हें यह भी मालूम नहीं था कि उन्हें कौन-सी बीमारी है। क्यों गाँव के अधिकतर लोग उम्र से पहले बिस्तर पकड़ लेते हैं और हिल-डुल भी नहीं पाते। खाट पर बैठते हैं तो उठने में कलेजा मुँह को आ जाता है। पूरा परिवार लाठियों के सहारे चलता फिरता है।
जब गाँव-पंचायत की पत्रिका पंचायतनामा में बोदरा के हालात की खबर छपी तब न सिर्फ गाँव के लोगों को उनके असली मर्ज का पता चला बल्कि राज्य का पीएचइडी विभाग भी सजग हुआ। अचानक गाँव में नेता और अफसर पहुँचने लगे। लगा कि एक झटके में गाँव की तमाम समस्याओं का अन्त हो जाएगा। राज्य के तत्कालीन स्वास्थ्य मन्त्री और स्थानीय नेता हेमलाल मुर्मू सजग हुए।
जिले में कोयला खनन् के काम से जुड़ी कम्पनी ईस्टर्न कोल फील्ड लिमिटेड ने घोषणा कर दी कि बहुत जल्द इस इलाके में वाटर ट्रीटमेंट प्लाण्ट लगेगा। मगर एक वह दिन है और एक आज का दिन। ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट की योजना फाइलों में भटक रही है और गाँव के लोग उम्मीद की डोर थामे इन्तजार किए जा रहे हैं।
ईसीएल की ओर से लगना है वाटर ट्रीटमेंट प्लांट
बोदरा पंचायत के मुखिया जनार्दन मण्डल कहते हैं कि यह सच है कि दो साल पहले यह बात उठी थी। हमें बताया गया था कि ललमटिया कोलियरी में खनन करने वाली कम्पनी ईसीएल जलमीनार बनाने जा रही है। यह जलमीनार बोदरा गाँव से 500 मीटर दूर बनेगा और पाइप लाइन से पूरे गाँव को साफ पानी सप्लाई किया जाएगा। मगर यह योजना आज तक धरातल पर उतर नहीं पाई है। इसकी क्या वजह है हम नहीं बता सकते।
वे आगे बताते हैं कि मीडिया में खबर आने से फायदा यही हुआ है कि अचानक इस गाँव में बहुत सारे लोग आने लगे हैं। सिर्फ पीएचइडी विभाग के अधिकारियों के 25-30 दौरे हो चुके हैं। हर दौरे में मुझे उनके साथ भटकना पड़ता है। उतनी ही बातें होती हैं, वही वादे किए जाते हैं। मगर काम एक पैसे का नहीं हो रहा। इधर खबर मिली है कि टेण्डर हो गया है।
स्थानीय भागीदारी का अभाव
इस योजना में क्या गाँव के लोगों से भी बातचीत की गई है, क्या उन्हें भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जा रहा है। इस सवाल के जवाब में मुखिया जी कहते हैं, हमें तो बस बताया जा रहा है कि ऐसा होने वाला है। हमसे कोई राय नहीं मांगी जा रही। मुखिया जी का यह जवाब इस प्रयास की गम्भीरता पर सवाल खड़े करता है, क्योंकि अब तक देश भर में फ्लोरोसिस मुक्तीकरण के प्रयासों में सरकारों से यही चूक होती आई है।
गाँव के लोगों को कभी निर्णय प्रक्रिया में भागीदार नहीं बनाया जाता है। यही वजह है कि जगह-जगह लगे ट्रीटमेंट प्लाण्ट थोड़े ही दिन में खराब हो जाते हैं और लोग फिर वही दूषित जल पीने को विवश हो जाते हैं।
गाँव के ही संजय कुमार झा और हरदेव यादव मुखिया जी की बातों की तस्दीक करते हैं। वे कहते हैं कि खाली बातें हुई हैं, काम नहीं हो पाया है। लिहाजा हम लोगों की मजबूरी बरकरार है। संजय कुमार झा कहते हैं हम लोग कर ही क्या सकते हैं, करना तो सरकार को है। हमारी हैसियत नहीं है इतना बड़ा प्लाण्ट लगाने की। हां, लोगों में जागरूकता आई है और लोगों ने गाँव का पानी पीना छोड़ दिया है। गाँव से डेढ़ किमी दूर महेशपुर से अब लोग पीने का पानी लाते हैं। गाँव के पानी का इस्तेमाल नहाने-धोने के लिए किया जाता है।
हरदेव यादव कहते हैं कि जो लोग बीमार हैं उनकी सेहत में कोई फर्क नहीं आया है। हाँ, यह कहा जा सकता है कि अब नए लोग बीमार कम हो रहे हैं। यह लोगों की सजगता की वजह से हुआ है।
लोग नहीं चाहते गाँव का नाम उछले
गाँव के लोग अपनी समस्या का समाधान तो चाहते हैं मगर वे यह भी चाहते हैं कि मीडिया में गाँव का नाम ज्यादा उछले नहीं। मुखिया जनार्दन मण्डल इसकी वजह बताते हुए कहते हैं कि जब से बोदरा गाँव खराब पानी की वजह से जाना जाने लगा है तो बाहर के लोग गाँव आने से कतराने लगे हैं। रिश्तेदार भी हिचकते हैं। लोगों को शादी-ब्याह में परेशानी होने लगी है। कोई इस गाँव में बेटी नहीं देना चाहता। बहू ले जाने में भी हिचक रहती है। यहाँ तक कि लोग गाँव में होने वाले समारोहों में भी भाग लेने से हिचकते हैं।
संजय झा कहते हैं कि हमलोग समारोहों में पीने के पानी का टैंकर बुलाते हैं और रिश्तेदारों को आश्वस्त करते हैं। मगर गाँव के हर तबके के लोगों के लिए इतना खर्च कर पाना मुमकिन नहीं। कई परिवार तो गाँव छोड़कर बाहर बस गए हैं।
इन परेशानियों के बीच गाँव के लोगों की एकमात्र उम्मीद ईसीएल के वाटर ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट से लगी है। हरदेव यादव कहते हैं कि एक बार प्लाण्ट बैठ जाए और पानी साफ आने लगे तो सब ठीक हो जाएगा। मगर दो साल बाद भी प्लाण्ट के लिए ईंट का एक टुकड़ा जमीन पर नहीं नजर आया है, यह देखकर लोगों का हौसला टूटने लगा है।
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Post By: Shivendra