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जल प्रदूषण मानवता के सबसे बड़े संकटों में से एक है खासतौर पर प्रदूषित पेयजल। पूरी दुनिया के लोग पेय की कमी और दूषित पेयजल की समस्या से जूझ रहे हैं। आज पूरे विश्व की 85 प्रतिशत आबादी सूखे के हालात में रह रही है और कुल 78.3 करोड़ लोगों की पहुँच में साफ पानी नहीं है।
भारत की बात करें तो पानी से सम्बन्धित कुछ आँकड़ों पर नजर डालना बेहद जरूरी है जैसे दुनिया की 16 प्रतिशत आबादी भारत में बसती है लेकिन विश्व के कुल जल संसाधन का केवल 4 प्रतिशत ही भारत के पास है। जबकि भारत में भूजल का दोहन पूरे विश्व में सबसे ज्यादा होता है यहाँ तक कि चीन भी इस मामले में हमसे पीछे है।
हाल के आँकड़ों के मुताबिक भारत की कुल एक चौथाई यानी लगभग 33 करोड़ आबादी पीने के पानी की कमी से जूझ रही है।
आदिवासियों को फ्लोराइडयुक्त पानी से निजात दिलाने के लिये गाँव में कुछ और अन्य स्थानों पर
सरकार जब अपने दायित्वों से मुँह मोड़ लेती है तो निजी कम्पनियाँ उसका फायदा उठाती हैं। पेयजल के मामले में भी यही हो रहा है। जिन क्षेत्रों में साफ पेयजल उपलब्ध नहीं है वहाँ सरकार की तरफ से शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नहीं की गई है लिहाजा निजी कम्पनियाँ इन क्षेत्रों में अपने पाँव फैलाने लगी हैं।
बेहतर कल गढ़ने का दारोमदार बच्चों के कन्धों पर होता है लेकिन बचपन ही अगर विकलांगता की जद में आ जाये तो आने वाले कल की तस्वीर निश्चित तौर पर बेहद बदरंग और धुँधली होगी।
आगरा जिले के बरौली अहिर ब्लॉक के कई गाँवों में नौनिहाल फ्लोरोसिस जैसी बीमारी के चंगुल में आहिस्ता-आहिस्ता फँसे जा रहे हैं।
बरौली अहिर ब्लॉक के पचगाँय खेड़ा ग्राम पंचायत के अन्तर्गत आने वाले सभी तीन गाँवों में रहने वाले अधिकांश बच्चों में फ्लोरोसिस के संकेत देखने को मिल रहे हैं।
बच्चों में फ्लोरोसिस का प्राथमिक लक्षण दाँतों में दिखता है। दाँतों में पीले और सफेद दाग पड़ जाते हैं। इन गाँवों के बच्चों में ये दाग साफ देखे जा सकते हैं। इक्का-दुक्का बच्चों पर तो फ्लोरोसिस ने इतना असर डाल दिया है कि उनके पैरों की हडि्डयों में टेढ़ापन आ गया है।
पानी में खारापन, आयरन व फ्लोराइड की समस्या
वसुंधरा दाश प्राइम मिनिस्टर रूरल डेवलपमेंट फेलोशिप (अध्येतावृत्ति) के तहत मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के गाँवों में काम कर रही हैं। प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास फेलोशिप तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन सरकार के समय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश की पहल पर शुरू हुई थी। सम्प्रति 226 युवा इस फेलोशिप के तहत 18 राज्यों के 111 जिलों में काम कर रहे हैं। ये लोग स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर काम करते हैं। वसुंधरा दाश वर्ष 2014 से काम कर रही हैं।
छिंदवाड़ा में काम करते हुए उन्होंने कई ऐसे गाँवों के बारे में पता लगाया जो फ्लोराइड से प्रभावित हैं। इन गाँवों में वे स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर कई तरह के काम कर रही हैं।
फ्लोरोसिस जैसे घातक बीमारी से ग्रसित लोग
गाँव बरेवा के मजरा दन्नापुरवा में 40 प्रतिशत आबादी फ्लोरोसिस की शिकार
अधिकतर बच्चों के दाँतों पर फ्लोरोसिस का प्रभाव
फ्लोराइड से बुरी तरह प्रभावित नलगोंडा में सरकार सुरक्षित पेयजल मुहैया कराने में सफल रही है, लेकिन स्थानीय भूजल में फ्लोराइड का स्तर इतना अधिक है कि उससे पूरी निजात सम्भव नहीं। खेती के लिये भी यह चिन्ता का विषय बना हुआ है।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आँकड़ों के मुताबिक नव-निर्मित राज्य तेलंगाना की करीब 1200 बस्तियाँ फ्लोरोसिस की समस्या से ग्रस्त हैं। इसमें भी सबसे बुरी स्थिति नलगोंडा जिले की है।
जिले के 17 मण्डल फ्लोराइड की अधिकता के कारण फ्लोरोसिस से बुरी तरह जूझ रहे हैं। फ्लोरोसिस वह स्थिति है जो शरीर में फ्लोराइड की अधिकता से उत्पन्न होती है। यह फ्लोराइड पेयजल तथा अन्य माध्यमों से हमारे शरीर में जाता है। इसकी वजह से लोगों के शरीर में अस्थि विकृतियाँ तथा अन्य समस्याएँ उत्पन्न होने लगती हैं।
फ्लोरोसिस प्रभावित लोगों के लिये औषधियों के बनिस्बत आँवला, सहजन, केसिया तोरा जैसे फल-फूल और दूध