सफलता की कहानियां और केस स्टडी

Term Path Alias

/sub-categories/success-stories-and-case-studies

वेल्लौर, तमिलनाडु में शून्य अपशिष्ट प्रबंधन
Posted on 01 Oct, 2009 09:20 AM शहरीकरण से संपन्नता तो आती है, पर यह अपने साथ पर्यावरणीय समस्यांए भी लाता है, यथा- प्रदूषण, ठोस अपशिष्ट का जमाव और सफाई एवं स्वच्छता का अभाव। टेट्रापैक, प्लास्टिक के प्लेट, कप और थैले, टिन-कनस्तर और ऐसी ही फेंक दी जाने वाली चीजों का उपयोग पिछले दशक में काफी बढ़ा है। इसी तरह जैविक अपशिष्ट में भी काफी बढ़ोतरी हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी शहरी क्षेत्रों की तरह ठोस अपशिष्ट का सृजन बढ़ रहा है। शहरी
किसान 100 तालाब 110
Posted on 27 Sep, 2009 12:12 PM
यह मिसाल प्रदेश के देवास जिले के धतूरिया गांव के किसानों ने पेश की है। यहां छोटे-बड़े करीब सौ किसान हैं। इन सबने पानीदार बनने की धुन में अपनी निजी जमीन पर बरसात के पहले तक 110 तालाब बना लिए हैं। इस काम को पूरा होने में दो साल लग गए।भोपाल। मध्य प्रदेश के देवास जिले की एक पंचायत के किसानों ने निजी जमीन पर 110 तालाब बनाकर एक अनूठा कीर्तिमान बनाया है। पंचायत के सौ किसानों में से कुछ ने तो दो या अधिक तालाब भी बना दिए हैं। इन्हें उम्मीद है कि जलसंकट और पानी के खारेपन से निजात मिलने के साथ खेती में अच्छी उपज भी मिलेगी। इनका उत्साह देख केन्द्रीय भूमि जल बोर्ड ने पंचायत को पुरस्कृत कराने राष्ट्रपति को प्रस्ताव भेजा है।

यह मिसाल प्रदेश के देवास जिले के धतूरिया गांव के किसानों ने पेश की है। यहां छोटे-बड़े करीब सौ किसान हैं।
इटारसी में उपेक्षित तालाब की गंदगी हटाने, जुड़े सैकडों हाथ
Posted on 27 Sep, 2009 11:30 AM

इटारसी. एसडीएम सत्येंद्र अग्रवाल की पहल पर नपा के सहयोग से पिछले 25 वर्षों से उपेक्षित इटारसी का एकमात्र तालाब का आज जनभागीदारी से श्रमदान कर सफाई अभियान प्रारंभ हुआ.भोपाल के ‘अपना सरोवर अपनी धरोहर अभियान बडा ताल संरक्षण’ की तर्ज पर ही आज शहरवासी श्रमदान करने तालाब पर एकत्र हुए.
निजामुद्दीन की बावड़ी का हुआ जीर्णोद्धार
Posted on 03 Sep, 2009 10:17 AM

एक जमाना था जब दिल्ली बावड़ियों का शहर था। हालाँकि अब चारों ओर उगे कंक्रीट के जगलों को देखकर इस बात का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। ऐतिहासिक महत्व की इन बावड़ियों में महाराजा अग्रसेन की बावड़ी, हजरत निजामुद्दीन द्वारा बनाई गई बावड़ी, महरौली स्थित बावड़ी शामिल हैं।
लिख रहे हैं लेखनी अकाल के कपाल पर
Posted on 20 Aug, 2009 03:16 PM
लापोड़िया गांव, जयपुर से 80 किलोमीटर दूर है। ‘ग्राम विकास नवयुवक मंडल’ के लक्ष्मणसिंह और उनके साथियों ने चौका व्यवस्था को यही तैयार किया था। इसके बाद इन्होंने जयपुर से दिल्ली तक बहुत से सम्मान पाए। लेकिन दूसरा पहलू यह है कि इस इलाके में सैकड़ों गांवों के अनगिनत समूह आज यहां से बनाए रास्ते से गुजरकर सालभर का चारा-पानी बचाना चाहते हैं।
पसीना बहाकर बूंदों की मनुहार
Posted on 26 Jul, 2009 07:48 AM

पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी के मार्गदर्शन में अभियान की शुरूआत 16 फरवरी को हुई थी। अभियान को केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने भू-जल संवर्द्धन पुरस्कार 2008 के लिए चुना है। इंदौर में भी शहरी क्षेत्र के 107 कुएं, बावडियों की चिंता की जा रही है और हुक्माखेडी में चल रहा अभियान इसकी महत्वपूर्ण कडी है।इंदौर। 'अमृतम जलम्' के तहत हुक्माखेडी (बिजलपुर) में चल रहे तालाब गहरीकरण में रविवार को सैकडों लोग जुडे। विश्व जल दिवस पर प्यासी धरती को तरबतर करने के लिए कई भागीरथों ने पसीना बहाकर बूंदों की मनुहार की। इनमें उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, विधायक जीतू जिराती, बडी संख्या में ग्र्रामीणों के साथ शहरी नागरिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व खेल संगठनों के नुमाइंदे भी शामिल हुए।

पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी के मार्गदर्शन में अभियान की शुरूआत 16 फरवरी को हुई थी। अभियान को केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने भू-जल संवर्द्धन पुरस्कार 2008 के लिए चुना है। इंदौर में भी शहरी क्षेत्र के 107 कुएं, बावडियों की चिंता की जा रही है और हुक्माखेडी में चल रहा अभियान इसकी महत्वपूर्ण कडी है।

जनता ने उतारी गंगा
Posted on 14 Jul, 2009 01:02 PM
कानपुर देहात। शिवली स्थित शोभन आश्रम की अगुवाई में जनता के भगीरथ प्रयास से गंगा उतरने की घटना मूर्त रूप ले रही है। कर्मकांड से अलग हट कर इस आश्रम के स्वामीजी ने इहलोक सुधारने को वरीयता दी और दर्जनों गांवों की हजारों हेक्टेयर असिंचित भूमि की प्यास बुझाने के लिए जनसहयोग से नहर का निर्माण करा दिया। यह महत्वाकांक्षी पब्लिक कैनाल परियोजना अब पूरी होने की ओर है।
एक नई हरित क्रांति
Posted on 13 Jul, 2009 11:58 AM
मात्र 52 परिवारों वाला एक छोटा सा गांव एनाबावी आजकल चर्चा का विषय बना हुआ है। इन दिनों यहां पास के गांव कालेम के किसान लाभदायक कृषि के तौर-तरीके सीखने के लिए जुटे रहते हैं. जिन लोगों ने 1960 के दशक में हरित क्रांति के उत्साह को नहीं देखा था, वे उस जोश की झलक यहां देख सकते हैं. हरित क्रांति और इस क्रांति में फर्क इतना ही है कि अब के किसान सिंथेटिक रसायनों का इस्तेमाल किए बिना ही उत्पादन में जुटे हैं.

हैदराबाद में एयर इंडिया कर्मी अजीत कुमार रोजाना कृषि सहकारी भंडार से सब्जियां खरीदने जाते हैं जो उसके दफ्तर के बगल में ही है. कुमार की पत्नी उसे रोज समय से ऑफिस छोड़ने सहकारी स्टोर पर जाने की याद दिलाती रहती है, क्योंकि वहां मिलने वाली ताजा और कीटनाशक मुक्त सब्जियां दो घंटे के अंदर ही बिक जाती हैं. इसीलिए जैसे ही स्टोर पर सब्जी पहुंचती है,
एक गांव जहां पानी ही पानी
Posted on 10 Jul, 2009 05:08 PM नई दिल्ली। बूंद-बूंद आंसू टपकाते नल भारत के लगभग हर शहर की समस्या हैं। ऐसे में सरकारी आश्वासनों से मन बहलाने के बजाय देश के कुछ इलाके अपने लिए पानी की व्यवस्था करने में जुट गए हैं। हरियाणा के मेवात जिले का करहेड़ा गांव इसकी जीती-जागती मिसाल है। जल संरक्षण प्रणाली को लेकर करहेड़ा को मिली छोटी सी सफलता कई मायनों में महत्वपूर्ण है।
अकोलनेर में फिर फूल खिले
Posted on 18 Jun, 2009 12:44 PM
तीन साल तक सूखे की मार झेलने के बाद अकोलनेर गांव के लोगों ने 2005 में फिर से आकर्षक फूलों की खेती शुरू कर दी है. एक किसान रघु थांगे ने इस वित्तीय वर्ष में क्रयसेंथेमम्स से 5 लाख रुपए कमाए हैं. अपनी 5 हेक्टेयर जमीन वाली प्लॉट पर उसने 15 मीटर गहरा कुआं खुदवा लिया है, जिसमें 6-8 मीटर पानी भरा रहता है.
×