पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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नर्मदा के जीव-जन्तु खतरे में
Posted on 14 Feb, 2010 04:51 PM जबलपुर। करीब 50 सालों से किए जा रहे शोध ने यह स्पष्ट कर दिया कि नर्मदा नदी में पाए जाने वाले मेंढक और मछलियों सहित अन्य जीव-जंतुओं की कई प्रजातियों का अस्तित्व ही नहीं बचेगा। नदी पर बांध, प्रदूषण, बसाहट, जंगलों की कटाई का सिलसिला यदि नहीं थमा तो अगले 25 सालों में इस नदी की जैव विविधता पूरी तरह खत्म हो जाएगी। इसमें 200 से ज्यादा प्रजातियां लुप्तप्राय कगार पर पहुंच चुकी हैं। जूलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया
बूंदें, नर्मदा घाटी और विस्थापन
Posted on 14 Feb, 2010 03:00 PM


नर्मदे हर......!

मध्यप्रदेश की जीवनरेखा है नर्मदा। इसका प्रवाह यानी जीवन का प्रवाह। इसके मिजाज का बिगड़ना यानी जीवन से चैन का बिछुड़ना। नदी से समाज के सम्बन्ध केवल नहाने, सिंचाई, पानी की भरी गागर घर के चौके-चूल्हे तक लाने में ही सिमट नहीं जाते हैं। नदियों की धड़कन के साथ-साथ धड़कती है उसके आंचल में रहने वाले समाज की धड़कन। पीढ़ियां नदी के प्रवाह की साक्षी रहती हैं। और नदी भी तो बहते-बहते देखती है-........

Narmada
जल प्रबंधन है मॉनसून की समस्या का समाधान
Posted on 14 Feb, 2010 02:24 PM
मॉनसून और आने वाले जल संकट से निबटने के लिए सबसे जरूरी यह है कि बारिश के पानी की हर बूंद का संरक्षण किया जाए। इसका भंडारण ताल-तलैया और यहां तक कि हर घर की छत पर किया जाए। इस बारे में विस्तार से बता रही हैं

आखिर 2009 का मॉनसून आ ही गया। पर प्रतिशोध की भावना के साथ। कई जगहों पर बाढ़ आ गई और लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा।
वनों का प्रबंध
Posted on 13 Feb, 2010 09:35 AM 1946 में ईस्टर्न स्टेट्स एजेंसी के वन सलाहकार डॉ.
वृक्षारोपण के विचार
Posted on 13 Feb, 2010 08:34 AM पश्चिम बंगाल की साम्यवादी सरकार सामाजिक वानिकी योजना को भी लुगदी वाले पेड़ लगाने की ही योजना बनाना चाहती है। टीटागर पेपर मिल्स और पश्चिम बंगाल लुगदी-काष्ठ विकास निगम दोनों कमजोर जमीन में व्यापारिक लुगदी वाले पेंड़ और बांस के जंगल लगाने वाले हैं। निगम के अध्यक्ष श्री एके बनर्जी पहले टीटागर पेपर मिल्स के कच्चा माल विभाग के मैनेजर थे। निगम ‘भीतरी’ तथा ‘छीदा’ वृक्षारोपण वाली नीति अपनाने वाला है। भीतर
जंगल खतरे में
Posted on 12 Feb, 2010 07:07 PM कच्चे माल के ऐसे संकट की हालत में सभी कंपनियां, चाहे निजी हों या सरकारी, बचे हुए घने जंगल के – बस्तर, उत्तर पूर्वी क्षेत्र और अंडमान जैसे-भंडारों में घुसने की होड़ लगा रही हैं। उन्हीं भंडारों के बल पर सरकार भी अपेक्षा रखती है कि नागालैंड के तुली तथा असम के (नवगांव) और कछार में स्थित हिंदुस्तान पेपर कार्पोरेशन की सरकारी मिलें कागज और गत्ते का उत्पादन बढ़ाकर 2,33,000 टन कर देंगी। ये मिलें कच्चे माल
न रहेगा बांस...
Posted on 12 Feb, 2010 06:51 PM जैसे-जैसे बांस की कमी बढ़ती जा रही है, बांसखोर मिलें छटपटाने लगी हैं, समस्याएं बढ़ रही हैं। वर्तमान वनों का अतिदोहन हो रहा है और सुदूरवर्ती जंगलों का शोषण बढ़ रहा है। भारतीय कागज निर्माता संघ के अध्यक्ष के अनुसार, “गिरे हुए वर्तमान उत्पादन के बावजूद वन-उपजों की मात्रा सीमित होती जाने के कारण कागज के कारखानों में आये दिन हड़बड़ देखने में आती है। मुख्य समस्या
सरकारी वन भूमि
Posted on 12 Feb, 2010 06:38 PM कहावत है-आंख से दूर, मन से दूर। पिछले चार-पांच सालों में सारा ध्यान आंखों के सामने चले समाजिक वानिकी कार्यक्रमों पर केंद्रित रहा है। इसमें भी खेतों और पंचायती जमीनों में पेड़ लगाने के काम पर ज्यादा बस चली है। लेकिन जो 7.5 करोड़ हेक्टेयर जंगल आंखों से दूर वन विभाग के नियंत्रण में है, उसकी हालत पर लोगों का ध्यान बिलकुल नहीं गया। बुरा हो उस उपग्रह का, जिसकी पैनी निगाह ने इन वनों की खस्ता हालत उघाड़कर
फिर भी दबदबा जारी है
Posted on 12 Feb, 2010 04:45 PM नई दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के श्री दिनेश कुमार का कहना है कि देश की कृषि-वन संवर्धन योजना में सफेदे के पेड़ों की प्रमुख भूमिका है। खेतों के बीच सफेदा लगाइए, वह तेज हवा को रोक लेता है, मिट्टी में नमी बढ़ाता है और तपन कम करके आसपास की फसलों को बल देता है। इन्हीं कारणों से गुजरात में गेहूं की पैदावार में 23 प्रतिशत और सरसों की पैदावार में 24 प्रतिशत वृद्धि हुई है। आंध्रप्रदेश में मूंगफ
मिट्टी का सत्व
Posted on 12 Feb, 2010 02:46 PM यह लुटेरा पानी के साथ-साथ मिट्टी को भी लूट रहा है पर मामले में भी बहस जारी है। कर्नाटक सरकार की सलाहकार समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि संकर सफेदे के कारण मिट्टी का सत्व बढ़ता है या नहीं, इस बात पर निर्भर है कि संकर सफेदा कैसी मिट्टी में बोया जाता है और कितना घना बोया जाता है। उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों को हटाकर लगाया गया सफेदा वर्षावनों की तुलना में कम पोषक तत्व लौटाता है। लेकिन अगर वह कमजोर खेतो
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