पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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पुनोबा, एक विश्वविद्यालय
Posted on 11 Feb, 2010 03:52 PM


माही नदी के किनारे बसा है गांव नरसिंहपुरा। 75 झोपड़ों की इस बस्ती में अलग फूल की एक छोटी –सी झोपड़ी है, जिसमें 60 वर्षीय आदिवासी बुजुर्ग पुना-खीमा डामर रहते हैं। पुनोबा की दिनचर्या का 80 प्रतिशत समय इलाके में प्राकृतिक रूप से पनपे जामुन, सालर, कड़वा, मोजाल, हील, कड़ेन्गी, मुणी, तमच आदि किस्म के हजारों पेड़ों की सुरक्षा में बीतता है।

mahi river
आधी करोड़पति बूंदें
Posted on 11 Feb, 2010 09:39 AM


मांडव यानी रानी रूपमती और राजा बाजबहादुर की प्रेम गाथाओं के स्मारक। जहाज महल, हिंडोला महल, तवेली महल और रूपमती महल का जर्रा-जर्रा आपको इतिहास की इस अमर प्रेम कथा को सुनाने के लिए तैयार है। रूपमती महल की छत पर खड़े होइए तो दूर, दूज के चाँद की शक्ल में नर्मदा नदी दिख जायेगी। रानी रूपमती स्नान के बाद हर रोज यहीं से तो नर्मदा मैया के दर्शन के बाद अपनी दिनचर्या शुरू करती थीं।

jahajmahal
दलदल भरो, दलदल में फंसो
Posted on 10 Feb, 2010 11:06 AM नदी, झील और तालाबों की तरह ही देश के प्राकृतिक दलदलों पर भी संकट छाया हुआ है। हर चीज को आर्थिक लाभ के तराजू पर तोलने वाली आज की निगाह में दलदल एक ऐसी बेकार, बेमतलब जगह है जो बस कीड़े-मकोड़े, सांपों का घर है। इसलिए पहली कोशिश यही रहती है कि दलदल कैसे भर दिया जाए और उस जगह का कोई उपयोग कर लिया जाए। पश्चिम के ही विशेषज्ञ बता रहे हैं कि दलदल बहुत जरूरी है और उन्हीं के सरकारें दलदलों को पाटने के लिए हम
झीलों में मछलीपालन
Posted on 10 Feb, 2010 10:55 AM देश में झील, तालाब और कृत्रिम जलाशय काफी संख्या में हैं। झील लगभग 2 लाख हेक्टेयर में फैले हुए हैं। बांधों के जलाशय 50-60 साल से ज्यादा पुराने नहीं हैं। ऐसे जलाशयों के लाभ गिनाते समय मत्स्य पालन को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है। पर इनमें मछली पालने का रिवाज अभी हाल में शुरू हुआ है और उसका ज्ञान भी बहुत सीमित है।
महसीर
Posted on 10 Feb, 2010 10:51 AM लगता है महसीर नाम की मछली भी अब मिटने को है। उत्तरभारत में उसे ‘राजा’ कहते हैं। यह बहुत पवित्र मानी जाती है। महसीर प्रायः हिमालय के नदियों और झरनों में पाई जाती है। इसकी सात किस्में हैं और ये 2.75 मीटर तक लंबी होती हैं। गंगा की ऊपरी धाराओं में उनका वजन 10 किलोग्राम तक होता है। 1858 में कुमाऊं के भीमताल, नकुचिया ताल, सत्ताल और नैनीताल की झीलों में छोड़ी गई थीं। भीमताल के सिवा बाकी सब जगह ये अच्छी त
हिलसा के लिए खतरा
Posted on 10 Feb, 2010 10:43 AM हालांकि हिलसा मछलियों की हड्डियां पहाड़ी मीठे पानी के ट्राउट्स की ही तरह बड़ी तेज और बारीक होती हैं, फिर भी वे सदियों से स्वाद के पारखियों के लिए, खासकर पश्चिम बंगाल और बंगला देश के लोगों के लिए बड़ी ही आकर्षण और स्वादिष्ट खाद्य रही हैं।
नदी जल में मछलीपालन
Posted on 10 Feb, 2010 10:32 AM अप्रैल 1984 में लखनऊ के पास गोमती में गंदगी के भर जाने से हजारों मछलियां खत्म हो गईं। लखनऊ शहर के एक दैनिक पत्र ‘पायोनियर’ ने लिखा था, “हर गरमी में गोमती मछलियों के लिए मौत का कुंआ बन जाती है क्योंकि धारा धीमी हो जाती है और बगल में लगे कारखानों से होने वाला प्रदूषण बढ़ जाता है।” केरल की समुद्रतटीय झीलें धीरे-धीरे मिट रही हैं क्योंकि उन्हें नारियल उद्योगों ने नारियल के छिलके फेंकने का कूड़ा घर बना
मीठा पानी और मछली
Posted on 10 Feb, 2010 10:24 AM अथाह समुद्र के खारे पानी में और धरती पर बहने रुकने वाले मीठे पानी में रहने वाली मछलियों का अपना एक अद्भुत संसार है। यह संसार हमारे संसार के लिए कितना जरूरी है, अभी इसका भी कोई ठीक अंदाज नहीं लग पाया है। सागर से लेकर एक छोटे-से पोखरे तक की मछली केवल मछली होने के नाते भी संरक्षणीय है, पर जब वह समाज के एक हिस्से के जीवन, उनकी थाली का भी अंग हो तो उसकी चिंता करने का दृष्टिकोण बिलकुल दूसरा हो जाता है।
तालाब सिंचाई
Posted on 10 Feb, 2010 10:16 AM डा. भूंबला का कहना है कि ऐसी परिस्थितियों में तालाब की सिंचाई सर्वोत्तम है। अनुसंधानों ने सिद्ध किया है कि फसलों को तालाबों से अगर अतिरिक्त पानी मिल जाता है तो प्रति हेक्टेयर एक टन से ज्यादा पैदावार बढ़ती है। बाढ़ो को रोकने में भी तालाब बड़े मददगार होते हैं। उनसे कुओं में पानी आ जाता है और ज्यादा बारिश के दिनों में अतिरिक्त पानी की निकासी की भी सुविधा हो जाती है।
जमींदारी उन्मूलन
Posted on 10 Feb, 2010 10:05 AM समाजवादी माने गए दौर में जमींदारी प्रथा के खत्म होने के बाद तालाबों की देखरेख, पानी का बंटवारा और तालाबों की मरम्मत आदि की जिम्मेदारी सार्वजनिक प्रशासन संस्थाओं पर आ गई। पर सबसे खर्चीली व्यवस्था के इन ढांचों के पास ‘धन की कमी’ थी। आंध्र प्रदेश के एक अध्ययन के अनुसार देख-रेख का खर्च तालाब बनवावे का लागत से एक प्रतिशत का भी तिहाई आता था। लेकिन धीरे-धीरे सिंचाई वाले तालाबों का आधार ही खत्म हो गया। पर
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