पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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जो न बरसे पुनर्वसु स्वाती
Posted on 18 Mar, 2010 11:53 AM
जो न बरसे पुनर्वसु स्वाती।
चरखा चले न बोले ताँती।


भावार्थ- यदि पुनर्वसु और स्वाति नक्षत्र में वर्षा नहीं हुई तो न चरखा चल पायेगा और नही ताँत बजेगी अर्थात् रुई धुनी नहीं जाएगी क्योंकि कपास की फसल नष्ट हो जायेगी।

जो बदरी बादर मां खमसै
Posted on 18 Mar, 2010 11:49 AM
जो बदरी बादर मां खमसै
कहै भड्डरी पानी बरसै।


भावार्थ- भड्डरी का मानना है कि जब बादल दूसरे बादल में मिल जायें तो अधिक वर्षा होने के आसार होते हैं।

जो कहुँ मग्घा बरसै जल
Posted on 18 Mar, 2010 11:45 AM
जो कहुँ मग्घा बरसै जल।
सब नाजों में होगा फल।


भावार्थ- यदि मघा नक्षत्र में वर्षा हुई तो समझो सभी अनाजों में दाने लग जायेंगे।

जब बरसेगा उत्तरा
Posted on 18 Mar, 2010 11:37 AM
जब बरसेगा उत्तरा।
नाज न खावै कुत्तरा।।


भावार्थ- यदि उत्तरा नक्षत्र में वर्षा हो गई तो पैदावार इतनी अधिक होगी कि कुत्ते भी अनाज से ऊब जायेंगे।

जै दिन भादौं बहैं पछार
Posted on 18 Mar, 2010 11:32 AM
जै दिन भादौं बहैं पछार।
तै दन पूस में पड़ै तुसार।


भावार्थ- भाद्र मास में जितने दिन पछिवाँ बहेगी पौष मास में उतने दिन पाला पड़ेगा।

जेठ उँजारे पच्छ में
Posted on 18 Mar, 2010 11:23 AM
जेठ उँजारे पच्छ में, आद्रादिक दस रिच्छ।
सजल होय निरजल कह्यो, निरजल सजल प्रतच्छ।।


भावार्थ- ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में यदि आर्द्रा आदि नक्षत्र में वर्षा हो जाये तो चौमासे में सूखा पड़ेगा किन्तु यदि वर्षा न हुई तो चौमासे में पानी बरसेगा।

जेठ मास जो तपै निरासा
Posted on 18 Mar, 2010 11:18 AM
जेठ मास जो तपै निरासा।
तो जानौ बरखा की आसा।।


भावार्थ- यदि ज्येष्ठ मास में गर्मी खूब पड़े तो वर्षा निश्चित होगी।

जब बहै हड़हवा कोन
Posted on 18 Mar, 2010 11:12 AM
जब बहै हड़हवा कोन।
तब बनजारा लादै नोन।


शब्दार्थ- हड़हवा-नैऋत्य कोण (पश्चिम दक्षिण कोण)।

भावार्थ- यदि पश्चिम दक्षिण के कोने की हवा बहे तो बनजारों को नमक लादने से नहीं डरना चाहिए क्योंकि पानी बरसने के आसार नहीं है और नमक गलने का भय नहीं रहेगा।

जब बरखा चित्रा में होय
Posted on 18 Mar, 2010 09:08 AM
जब बरखा चित्रा में होय।
सगरी खेती जावै खोय।


भावार्थ- यदि चित्रा नक्षत्र में वर्षा होती है तो सम्पूर्ण खेती नष्ट हो जाती है, इसलिए कहा जाता है कि चित्रा नक्षत्र की वर्षा ठीक नहीं होती।

जब पुरवा पुरवाई पावै
Posted on 18 Mar, 2010 09:03 AM
जब पुरवा पुरवाई पावै।
झूरी नदिया नाव चलावै।।


भावार्थ- पूर्वा नक्षत्र में यदि पुरवैया हवा चले तो सूखी नदी भी नाव चलाने की स्थिति में पहुँच जाती है अर्थात् वर्षा खूब होती है और नदी में इतना अधिक पानी भर जाता है कि उस में नाव चलाई जा सकती है।

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