Posted on 24 Mar, 2010 04:50 PM ओछो मंत्री राजै नासै, ताल बिनासै काई। सान साहिबी फूट बिनासै, घग्घा पैर बिवाई।।
शब्दार्थ- ओछो-नीच प्रकृति।
भावार्थ- घाघ का कहना है कि नीच प्रकृति का मंत्री राजा का नाश करता है, काई तालाब का नाश करती है, आपसी बैर-भाव (फूट) शान शौकत का नाश करती है तथा पैर की बिवाई पैर का नाश करती है।
Posted on 24 Mar, 2010 04:46 PM आठ कठौती माठा पीवै, सोरह मकुनी खाइ। उसके मरे न रोइये, घर के दलिद्दर जाय।।
भावार्थ- जो व्यक्ति आठ कठौता (काठ की परात) मट्ठा पीता हो, सोलह मकुनी (सत्तू भरी रोटी) खाता हो उसके मरने पर कभी भी रोना नहीं चाहिए क्योंकि उसके मरने से घर का दरिद्र ही चला जाता है।
Posted on 24 Mar, 2010 04:43 PM ओछे बैठक ओछे काम, ओछी बातें आठो याम। घाघ बतायें तीन निकाम, भूलि न लीजौ इनकै नाम।।
शब्दार्थ- ओछे-नीच। आठोयाम- आठों पहर।
भावार्थ- घाघ का कहना है कि जो व्यक्ति आठों पहर ओछे अर्थात् बुरे लोगों की संगत में रहते हैं, नीच काम करते हैं, छोटी बातें करते हैं वे बिल्कुल बेकार होते हैं। भूल कर भी उनका नाम न लीजिए।
Posted on 24 Mar, 2010 12:27 PM उदन्त बरदे उदन्त ब्याये। आप जायँ या खसमै खाये।।
भावार्थ- जो गाय उदन्त (जिसके दूध के दाँत न गिर चुके हों) अवस्था में साँढ़ से जोड़ा खाय और उदन्त ही बच्चा दे, वह यो तो स्वयं मर जाती है या मालिक को मार डालती है।
Posted on 24 Mar, 2010 12:17 PM समथर जोते पूत चरावै। लगते जेठ भुसौला छावै।। भादों मास उठे जो गरदा। बीस बरस तक जोतो बरदा।।
भावार्थ- यदि बैल को समथर (बराबर जमीन वाले) खेत में जोते; किसान का बेटा उसे चरावें; जेठ लगते ही भूसा रखने का घर छा दे, बैल के बैठने की जगह ऐसी सूखी हो कि भादों में वहाँ धूल उड़े, तो उस बैल को बीस साल तक हल में जोता जा सकता है।