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पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा
ताकलाकोट से टोला तक
Posted on 20 Mar, 2019 03:06 PMजीवन के उत्तरार्द्ध में मैंने पथारोहण के साथ ही यात्रा संस्मरण लिखना, फोटोग्राफी करना और पर्वतारोहण सम्बन्धी साहित्य का अध्ययन करना आरम्भ किया है। कैलास पर्वत एण्ड टू पासेज ऑफ द कुमाऊँ हिमालय ह्यू रटलेज ने रालम पास और ट्रेल पास अभियान का वर्णन किया गया है। ह्यू रटलेज ने अपनी पत्नी और लेखक विल्सन के साथ जून 1926 में मरतोली से ब्रिजिगांग, सिपाल (रालम)प्राकृतिक रंगाईः परम्परा एवं वर्तमान
Posted on 20 Mar, 2019 12:02 PMरंग का विचार मन में आते ही अनुभूति होती है हर्ष एवं उल्लास की अभिव्यक्ति की। हो भी क्यों नहीं क्योंकि रंग एवं रंगाई सदियों से हमारे जीवन का अतंरंग हिस्सा होेने के साथ हमारी रचनात्मक सोच की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम भी रहे हैं।
जल विद्युत परिदृश्य
Posted on 20 Mar, 2019 11:00 AMपिछले कुछ दशकों से पानी, विकास और बाजारवाद सम्बन्धी बहसों के केन्द्र में है। बढ़ती आबादी के साथ पेयजल व खाद्यान्न संकट, बाढ़ से निपटने, रेगिस्तानों को हरा-भरा करने और राष्ट्रीय ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने हेतु पानी को महत्त्वपूर्ण संसाधन के रूप में देखा जाने लगा है। बाजारवाद और उपभोक्तावाद की यह बयार पानी के स्थाई स्रोतों खासतौर से नदियों पर एकाधिकार जताने व उनके प्राकृतिक बहाव पर बाँधों
जल प्रदूषणः समस्या एवं समाधान
Posted on 19 Mar, 2019 03:54 PMबदलते पर्यावरण की अठखेलियाँ व बिगड़ते पानी का स्वरूप, दिन प्रतिदिन मानव के लिए उपलब्ध यह जीवनदायी धरोहर, एक चुनौती बनता जा रहा है। फलस्वरूप उपलब्ध जल, वातावरण, वनस्पति व विभिन्न जीव जन्तुओं पर प्रश्न चिह्न सा लगता जा रहा है। पर्यावरण व उपलब्ध जल स्रोतों पर भी विनाशकारी प्रभाव नजर आने लगे हैं। अब यह आवश्यक है कि जो भी कार्य पर्यावरण व जल संसाधनों के वांछित रख-रखाव में बाधा डालता हो उस पर तुरन्त
सीमान्त में पर्यटन उपेक्षित व असन्तुलित
Posted on 18 Mar, 2019 01:52 PMकैलास-मानस के बाद पिथौरारगढ़-चम्पावत के साहसिक यात्रा परिपथों के चिन्हीकरण का काम वर्षों से हो रहा है। अब इनमें
जंगल पंचायत
Posted on 16 Mar, 2019 02:00 PMमानव सभ्यता के प्रारम्भ से ही मनुष्य का जंगल से गहरा रिश्ता रहा है। हवा, पानी तथा भोजन जंगलों से जुटाए जाते रहे हैं।
शीतकालीन भाबर प्रवास: घमतप्पा
Posted on 16 Mar, 2019 11:08 AMकाली कुमाऊँ के दो क्षेत्रों-सिप्टी एवं तल्लादेश-के लोग विशिष्ट समूह थे। ये लोग भाबर को विस्थापित होने के बजाय अप
कोट एवं किले
Posted on 15 Mar, 2019 01:11 PMअल्मोड़ा संग्रहालय में सुरक्षित छठी शताब्दी के उत्तर गुप्त कालीन ब्राह्मी लिपि संस्कृत भाषा में अंकित तालेश्वर ताम्रपत्र में सबसे पहले कोट शब्द का प्रयोग मिलता है। इसके अनुसार पर्वताकार राज्य की राजधानी ब्रह्मपुर में द्वितीवर्मा के मंत्री भद्रविष्णु का कार्यालय कोट में था (कोटाधिकारण अमात्य भद्रविष्णु पुरसरेणच)। राजा ललितसूर के ताम्रशासन में भी वर्त्मपाल, कोटपाल आदि का उल्लेख मिलता है। इसी प्रक
दार्चुलाःअतीत के आईने में
Posted on 15 Mar, 2019 11:46 AMबचपन तो बचपन ही होता है चाहे वह किसी भी परिवेश में बीता हो। बचपन की यादों की बारात भी लम्बी होती है। सरयू और रामगंगा के मध्य में बसे गंगावली क्षेत्र यानी परगना गंगोलीहाट में पट्टी बेल के 105 और भेरंग के 95 गाँव शामिल हुआ करते थे। वर्तमान गंगोलीहाट बाजार को तब जान्धवी (अपभ्रंश में जान्धबि) कहा जाता था। जान्धवी नौले का जल गंगा के समान पवित्र और निर्मल माना जाता था। कहते हैं कि श्वीलधुरा के शीर्ष
मन्दिर और मूर्तियाँ
Posted on 14 Mar, 2019 12:22 PMउत्तराखण्ड के पूर्वी सीमान्त जिलों- पिथौरागढ़ एवं चम्पावत, जो संयुक्त रूप से काली नदी के जलागम क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं, का विविध संस्कृतियों एवं पुरा मानव समूहों की विचरण व निवास स्थलों के रूप में विशिष्ट स्थान रहा है। इन जनपदों मेें पुराकालीन मानव-संस्कृति के अस्तित्व को पुरातात्विक स्रोत प्रमाणित कर चुके हैं, यथा-देवीधुरा (चम्पावत) व विशाड़ (पिथौराग