पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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छत के पानी का एकत्रीकरण (Roof Top Water Harvesting)
Posted on 06 Sep, 2008 11:45 AM वर्षाजल संग्रहण अथवा एकत्रीकरण की इस प्रणाली में घरों की छतों पर पड़ने वाले वर्षा जल को गैलवेनाईज्ड आयरन, एल्यूमिनियम, मिट्टी की टाइलें अथवा कंक्रीट की छत की सहायता से जल एकत्रीकरण के लिये बने टंकियों अथवा भूजल रिचार्ज संरचना से जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार एकत्रित जल का प्रयोग सामान्य घरेलू उपयोग के अलावा भूजल स्तर बढ़ाने में भी किया जाता है।
भूजल
Posted on 01 Sep, 2008 10:51 AM

 

 

ground water
पर्यावरण-प्रबन्धन और प्रकृति-संरक्षण: एक वैदिक दृष्टिकोण
अथर्ववेद के ‘पृथ्वीसूक्त’ में पृथ्वी को माता और हमें इसके पुत्र कहा गया है। यह सूक्त प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण का आह्वान करता है और “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना को दर्शाता है। रवीन्द्र कुमार जी का लेख हमारे आदिग्रन्थों में पर्यावरण संबंधी मान्यताओं को दर्शाता है। Posted on 16 May, 2024 06:46 PM

सौर मण्डल में जीवन से भरपूर सुन्दर गृह पृथ्वी की उत्पत्ति विज्ञान के अनुमानानुसार लगभग 4.

प्रकृति-संरक्षण पर वैदिक दृष्टिकोण
भारत के जलनायक
प्राचीन वैदिक काल में ही नहीं बल्कि मध्यकाल और उसके बाद के समय में भी जल विकास और संचयन के क्षेत्रों में उत्कृष्ट निर्माण कार्य किए गए। जल विकास और संचयन के अनेक प्रमुख कार्य तो स्वाधीनता संग्राम के साथ-साथ ही चलाए गए जिनके निर्माण में भारतीय इंजीनियरों, स्वतंत्रता सेनानियों, रजवाड़ों और राजघरानों के शासकों और अनेक अज्ञात नायकों ने उल्लेखनीय सफलताएँ प्राप्त करके देश में अपनी अमिट छाप लगा दी। Not only in the ancient Vedic period but also in the medieval period and thereafter, excellent construction works were done in the fields of water development and harvesting. Many major works of water development and harvesting were carried out simultaneously with the freedom struggle, in the construction of which Indian engineers, freedom fighters, rulers of princely states and royal families and many unknown heroes achieved remarkable successes and left their indelible mark in the country. Posted on 06 May, 2024 03:09 PM

यद्यपि भारत ने ब्रिटिश काल के दौरान 200 वर्ष तक अनेक दुःख झेले परंतु उस कठिन समय में भी उसकी संघर्ष की भावना में ज़रा भी कमी नहीं आई। भारत एक अमर पक्षी की भाँति अपने काले अतीत से निकलकर इस समय विश्व के प्रमुख देशों की पंक्ति में शामिल हो रहा है। प्राचीन वैदिक काल में ही नहीं बल्कि मध्यकाल और उसके बाद के समय में भी जल विकास और संचयन के क्षेत्रों में उत्कृष्ट निर्माण कार्य किए गए। जल विकास और संच

जल समृद्ध परंपरा
नाले हुए पी.डब्ल्यू.डी. के हवाले
Posted on 20 Feb, 2020 03:00 PM

17 अगस्त, 1898 की वर्षा से नैनीताल के नालों और सड़कों को भी बहुत नुकसान पहुँचा। भारी वर्षा की वजह से ओकपार्क, लॉग

अब रूठा बलियानाला
Posted on 20 Feb, 2020 10:41 AM

17 अगस्त, 1898 को बलियानाले के भू-स्खलन ने तबाही मचा दी। बलियानाले से लगे कैलाखान और दुर्गापुर क्षेत्र की पहाड़िय

क्रोस्थवेट अस्पताल नैनीताल
Posted on 12 Feb, 2020 04:06 PM

17 अक्टूबर, 1894 को नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध के लेफ्टिनेंट गवर्नर एंव चीफ कमिश्नर सर चार्ल्स एच.टी.क्रो

भू-स्खलन के बाद शुरू हुआ जाँच और सुरक्षा कार्यों का दौर
Posted on 09 Dec, 2019 12:42 PM

18 सितम्बर, 1880 के तुरन्त बाद औपनिवेशिक सरकार नैनीताल की पहाड़ियों की सुरक्षा को लेकर बेहद संवेदनशील हो गई। सरकार ने इस हादसे को ‘विपत्ति’ करार दिया। हादसे के ठीक चौथे दिन 22 सितम्बर, 1880 को नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस के लेफ्टिनेंट गवर्नर एवं चीफ कमिश्नर ने शेर-का-डांडा पहाड़ी की जाँच के लिए एक कमेटी बना दी। कुमाऊँ के तत्कालीन कमिश्नर लेफ्टिनेंट जनरल सर हैनरी रैमजे को इस जाँच कमेटी का अध्यक्ष

पहला आधुनिक कैथलिक गुरुकुल
Posted on 02 Dec, 2019 12:54 PM

एक नगर के रूप में नैनीताल की बसावट से भारत में राज करने में अंग्रेजों को बहुत मदद मिली। नैनीताल में ब्रिटिश राज क

नैनीताल
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