पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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पिथौरागढ़ के मालदार
Posted on 30 Mar, 2019 04:55 PM
पिथौरागढ़ शहर को पूरे जुनून के साथ जिन्होंने प्यार किया ऐसे पुराने लोग कौन थे, यह पूछने पर मोष्टमानु के हर सिंह विष्ट कहते हैं- एक बार मोष्टमानु के जाने माने अध्यापक हैदर मास्टर के पिता कादर बख्श ने इसी तरह के सवाल का जवाब दिया कि जिनकी चमक से ये पिथौरागढ़ रोशन हुआ, उनमें एक थीं मिस मैरी रीड। चण्डाक में उनकी उपेक्षित कब्र के पास आने पर शान्ति का एहसास होता है। मैनेजर उस समय डाली मार्च थीं। दूरसे थ
सोर से समन्दर तक
Posted on 30 Mar, 2019 04:44 PM

पिथौरागढ़ में लॉरी बेकर (2 मार्च 1917-1 अप्रैल 2007) को करीब से जानने-पहचानने वाली पीढ़ी के लोग अब गिन-चुने रह गए हैं। जो बेकर को जानते रहे उनकी सुखद स्मृतियों में वे जीवंत हैं। बेकर का जिक्र जब तक उन तमाम वांशिदों के बीच होता रहता है जो इस नगर के बेलगाम-बेतरतीब फैलाव व अनियोजित शहरीकरण को लेकर चितिन्त हैं। शहर की बुनियादी सुविधाओं के बदतर होते हालातों से त्रस्त हैं!

युगदृष्टा जोहारी
Posted on 30 Mar, 2019 01:20 PM

बाबू रामसिंह पांगती जोहार की उन महान विभूतियों में से एक थे जिन्होंने इस क्षेत्र के तत्कालीन समाज में व्याप्त कुरीतियों, अन्धविश्वासों और डगमगाती अर्थव्यवस्था में आमूल परिवर्तन लाने का बीड़ा उठाया था। उनका जन्म जोहार के उस सम्पन्न परिवार में हुआ था। जिसका व्यापार सीधे पश्चिमी तिब्बत के सरकारी व्यापारी ज्युङ छुङ के साथ होता था। इन्होंने कुछ वर्ष पूर्व मुम्बई, कानपुर, दिल्ली और अमृतसर से कपड़ा, म

सृजन एवं साधना
Posted on 30 Mar, 2019 01:12 PM
पचास के दशक में सोर-पिथौरागढ़, एक छोटी पर आकर्षक बसासत थी। सैंणी (समतल) सोर में लहर काते हरियल खेतों का फैलाव, मध्य में बाजार व रिहायसी इलाके में चण्डाक की ओर जाती सड़क के किनारे ऊँचे होते देवदारु के वृक्ष, लकड़ी के लैम्प पोस्ट और बेगनबोलिया, चमेली व रातरानी की लताओं से घिरी चहरदीवारी के बीच झांकती ब्रिटिशकालीन (लायक साहब की) कोठी तब अनायास ही ध्यान खींचती थी। वह 1954 की शरद ऋतु थी, नारायण स्वामी
शिक्षक और कवि
Posted on 29 Mar, 2019 03:15 PM

कुमाऊँनी भाषा के अनन्य सेवक, कवि, शिक्षक और मनीषी बचीराम श्रीकृष्ण पंत (जुलाई 1889-18 अक्टूबर 1958 ई.) वर्तमान पिथौरागढ़ जिले के भटगाँव (बेरीनाग) में पैदा हुए थे। उनका जन्म नाम तो श्रीकृष्ण था किन्तु वे बचीराम के नाम से ही जाने जाते थे। तीन भाइयों और दो बहनों में वे सबसे छोटे थे। अपना परिचय उन्होंने अपनी प्रकाशित रचना महिला धर्म प्रकाश में इस तरह दिया है।

महाकाली के साथ-साथ
Posted on 29 Mar, 2019 11:42 AM
बिना पूरी तैयारियों और आवश्यक सामान के पदयात्रा में क्या दिक्कतें आ सकती हैं, अब तक हमारी समझ में आ चुका था। इसलिए एक भेली गुड़ और दो गोले (नारियल) खरीद कर झूला घाट की ओर चले। राजी ने बताया कि यदि तेज चलेंगे तो चार घंटे में झूलाघाट पहुँच जाएँगे। तीन बजे थे, सात बजे झूलाघाट पहुँचने का इरादा बना कर आगे बढ़े। राजी के बताए चार घंटों में से दो खर्च हो चुके थे, किन्तु हम पहली धार भी पार नहीं कर पाएँ। जा
नरभक्षियों से मानव जीवन तक
Posted on 29 Mar, 2019 11:42 AM
जिम कार्बेट ने इस अंचल की वास्तविकता से न केवल स्वंय को आत्मसात किया बल्कि इन्हें चमत्कारिक ढंग से आखेट कहानियों में भी व्यक्त किया है। अपनी कहानियों में वे एक ऐसे व्यक्ति के रूप में उपस्थित होते हैं, जिसकी अभिलाषा नरभक्षी बाघों को मार कर एक साहसी शिकारी की प्रसिद्धि प्राप्त करना मात्र नहीं थी। इस साहसिक कार्य को उन्होंने बिना किसी सरकारी सहायता के भी अनेक बार किया। वे भारत के करोड़ों भूखे-नंगे ल
अभी भी आँखों में है मालपा
Posted on 28 Mar, 2019 03:42 PM
मालपा सुनते ही इतना कुछ आँखों के सामने घूमने लगता है कि क्या लिखूँ जिससे इस त्रासदी की सही तस्वीर सामने आ जाए? समझ में नहीं आ रहा है।
हम होंगे सिनला पास
Posted on 22 Mar, 2019 04:27 PM

बाहर सलेटी अंधेरे का कम्बल सुबह का उजाला सरका रहा था। ठण्ड बहुत थी।15,000 फीट में सुबह कैसी होती है-एहसास हो रहा

Sinla pass
काली से गिरथी गंगा तक
Posted on 22 Mar, 2019 04:16 PM

साढ़े चार महीने साथ-साथ सफर करने के बाद 8 जून 1997 को सुमीता, विनीता और मैं आधिकारिक तौर पर बछेन्द्री पाल के नेतृत्व में की जा रही भारतीय महिलाओं की पहली ट्रांस हिमालय यात्रा से अलग हो गए। अपनी अन्तिम बैठक में हम सबने अपनी भावनाओं को दबाए रखा। मैं कह सकती हूँ कि इस बेतरह बिगड़ चुकी मौजूदा परिस्थितियों में यह यात्रा हममें से हरेक के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण बन गई थी परिणामस्वरूप जैसी कि हमें आशंका

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