/sub-categories/books-and-book-reviews
पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा
गंगई निरोधक धान की जातियाँ
Posted on 10 Sep, 2018 12:53 PM
गंगई निरोधक के संबंध में एकीकृत धान किस्मों (Isolating rice Varieties) ने जो प्रगति की है, उनका नवंबर 1973 में प्रकाशित अनुकूलता धान अनुसंधान नोट क्रमांक-2 में उल्लेख किया गया है।
गंगई स्थानिक मारी क्षेत्र (An endemic area for gall midge) बंगोली ग्राम में इसका कार्य सम्पन्न किया जा रहा है।
हमारी धान सम्पदा
Posted on 10 Sep, 2018 12:49 PM धान के पौधे की सबसे बड़ी एक विशेषता उसकी विविधता है, जो करोड़ों लोगों के लिये अन्न का स्रोत है। संसार में 12000 धान की किस्में उगाई जाती है। उनमें से पाँच हजार से भी अधिक किस्में मध्य प्रदेश में होती है।
धरती पर पानी
Posted on 09 Jun, 2018 05:54 PM
पानी की घटती उपलब्धता से सब परिचित हैं। अनुमान है कि आगामी दशकों में पानी की उपलब्धता इतनी कम हो जाएगी जिसमें अन्तरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार स्वस्थ जीवनयापन सम्भव नहीं है।
वाटरलेस यूरिनल लिखेंगे नई इबारत
Posted on 05 Nov, 2015 11:23 AMरमेश शक्तिवाल एक प्रतिभावान इंजीनियर और जल विशेषज्ञ हैं। आईआईटी दिल्ली से हो रही उनकी पीएचडी का विषय है वाटरलेस यूरिनल की डिजाइन। उनका मानना है कि जलसंकट के इस दौर में नई डिज़ाइन वाले निर्जल मूत्रालय आज के समय की महती आवश्यकता हैं। वाटरलेस यूरिनल को कुछ इस प्रकार बनाया गया है कि इनमें मूत्र के निस्तारण के लिये परम्परागत मूत्रालयों की तरह पानी की आवश्यकता नहीं होती।हमारे एक पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की ख्याति का एक कारण उनका स्वमूत्र का सेवन भी था। इतना ही नहीं वे लोगों को भी मूत्र को औषधि के रूप में व्यवहार करने की सलाह देते थे। मोरारजी की सलाह आप मानें न मानें पर गौमूत्र की उपयोगिता पर लगातार खोजों ने क्या आपको यह नहीं बताया कि गौमूत्र संजीवनी रसायन है। वैसे तो संसार गाय के मूत्र की विलक्षणताओं के बारे में जान ही गया है। कई गौशालाओं के लोग इसे बोतलबंद करके बेचने लगे हैं, इनका उपयोग लोग अपनी बीमारियों को ठीक करने में करते हैं। किसान अपने खेतों में फसलों की उपज बढ़ाने तथा फसलों के रोगों के इलाज के तौर
पर्वतीय जलागम क्षेत्रों में जल अभयारण्य विकास
Posted on 03 Sep, 2015 03:08 PMडाॅ. जी.सी.एस.नेगी एवं वरुन जोशीआज भी प्रासंगिक हैं परम्परागत खाल
Posted on 01 Sep, 2015 03:50 PMखेतों में भू-आर्द्रता बनी रहने के कारण गाँव के किसान अपनी परम्परागत फसलों के साथ-साथ सब्जी उत्पादन करके अपनी आजीविका चलाते हैं। गाँव को ऊपरी तौर पर देख कर आश्चर्य होता है कि जो गाँव पेयजल के संकट से जूझ रहा हो वह गर्मियों में सब्जी उत्पादन कर रहा है। इस गाँव में गर्मी के मौसम में किसान 2-5 नाली भूमि में मिर्च, फूलगोभी, टमाटर आदि की खेती करते हैं तथा प्रति परिवार औसतन 5 से 6 हजार की सब्जियाँ प्रतिवर्ष बेचते हैं।
नैनीताल जिले के रामगढ़ ब्लॉक में समुद्र तल से 1600-1700 मीटर ऊँचाई पर बसा है-कफलाड़ गाँव। गाँव के पहाड़ की चोटी पर स्थित होने के कारण इस गाँव में जल स्रोतों की कमी है जिससे वर्ष भर जल संकट बना रहता है।इस गांव के ऊपर की भूमि में अनेक परम्परागत खाल विद्यमान हैं। इन खालों का निर्माण पीढ़ियों पूर्व गाँव के पूर्वजों ने किया था जिनका रख-रखाव आज भी ग्रामवासी करते आ रहे हैं।
इन खालों की नियमित सफाई व रख-रखाव के कारण इनमें वर्ष भर पानी रहता है। गाँव में इन खालों को लेकर यह कहावत प्रचलित है कि इन खालों में पानी कभी नहीं सूखता क्योंकि खालों का पानी सूखने से पहले ही वर्षा हो जाती है।
आकाश भाग्यशाली है
Posted on 06 Aug, 2014 06:56 PM हम सब शब्द सापेक्ष हैं। शब्द निरपेक्ष होना असंभव। शब्द प्रभावित करदाई के तालाब
Posted on 28 Jul, 2014 04:00 PMकुछ समय पहले तक दरभंगा एक समृद्ध राज्य था। वहां के राजा बड़े लोकप्रिय थे। राज्य में लोग सुख-शांति से जीवन बिताते थे। कई बड़ी नदियां राज्य से होकर बहती थीं। इसके बावजूद दरभंगा में कई बार गर्मियों में पानी की थोड़ी कमी होने लगती थी। इसे छोड़ कर वहां के लोगों को कोई विशेष कष्ट नहीं था। जो मेहनत मजदूरी करते थे, उन्हें भर-पेट भोजन मिल जाता था और राज्य में काम और व्यापार फल-फूल रहा था।पानी की बस्ती
Posted on 28 Jul, 2014 12:43 PMसूखे तालाब में खड़ी थी ग्रीष्म की वनस्पति आक कटैड़ीफैला था कूड़ा कर्कट
अब सब तैर रहा है पानी पर बरसात के बाद
मेढ़क, सांप, केंकड़े और मछलियां
एक घर की प्रतीक्षा में
रह रहे थे धरती पर इधर-उधर ओनों-कोनों में
जलमुर्गिंयां और बतखें जीवन काट रही थीं
जाने किन राहत शिविर में
अब सबको अपने घर मिल गये हैं