पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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पारंपरिक जल संचय प्रणालियों का इतिहास
Posted on 06 Aug, 2010 10:11 AM
सदियों से जारी है जद्दोजहद
ईसा पूर्व तीसरी सहस्त्राब्दी में ही बलूचिस्तान के किसानों ने बरसाती पानी को घेरना और सिंचाई में उसका प्रयोग करना शुरू कर दिया था। कंकड़-पत्थर से बने ऐसे बांध बलूचिस्तान और कच्छ में मिले हैं।
Traditional water harvesting
पथदर्शिका
Posted on 10 Jul, 2010 02:48 PM

जल और स्वच्छता हेतु आपात सहायता में


प्रत्येक वर्ष प्राकृतिक आपदाओं से दुनियां के किसी न किसी हिस्से के लोग प्रभावित होते हैं। प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित हेने वालों में भारत का दसवां स्थान है। सूखा, बाढ़, चक्रवाती तूफानों, भूकम्प, भूस्खलन, वनों में लगने वाली आग, ओला वृष्टि, टिड्डी दल आक्रमण और ज्वालामुखी फटने जैसी अनेकानेक प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान न ही किया जा सकता और न ही इन्हें रोका जा सकता इनसे होने वाले प्रभाव को एक सीमा तक जरूर नियंत्रित किया जा सकता है। जिससे कि जानमाल का कम से कम नुकसान हो ।

एशिया के अधिकांश देशों में अनेकों आपदायें झेली हैं, यथा भूकम्प, भूस्खलन, चक्रवात, बाढ़, अकाल, अग्निकाण्ड आदि।

पानी एक मूलभूत तत्व है मानवीय अस्तित्वरक्षा हेतु, इसकी तुरन्त उपलब्धता किसी आपदाजनित ध्वन्स में बड़ी महत्व की बात है। सुरक्षित जल, पीने और खाने के उपयोग, प्रभावित जनों की चिकित्सा हेतु, उत्तम स्वच्छता और स्वास्थ्य रक्षा
संस्थाएं नारायण-परायण बनें
Posted on 22 Jun, 2010 03:21 PM


समाज के कामों में लगी संस्थाओं को, हम लोगों को विनोबा की एक विशिष्ट रचना, सर्वोदय समाज की कल्पना को समझने की कोशिश करनी चाहिए। अपनी इस रचना को सामने रखते हुए वे संस्था, उसके संचालन, उसके लक्ष्य, उसके कोष, पैसे, धेले- सब बातों को सहज ही समेटे ले रहे हैं।

मैं जरा एकांत में रहने वाला मनुष्य हूं। लेकिन जेल में तो समाज में ही रहना हुआ, और उससे सोचने का काफी मसाला मिल गया। वहां सब तरह के लोगों से संपर्क हुआ। उनमें कांग्रेस वाले थे, समाजवादी थे, फॉर्वर्ड ब्लॉक वाले और दूसरे भी थे। देखा कि ऐसा कोई खास दल नहीं, जिसमें दूसरे दलों की तुलना में अधिक सज्जनता दिखाई देती हो। जो सज्जनता गांधीवालों में दिखाई देती है, वही दूसरों में भी दिखाई देती है, और जो दुर्जनता दूसरों में पाई जाती है, वह इनमें भी पाई जाती है। जब मैंने देखा कि सज्जनता किसी एक पक्ष की चीज नहीं, तब सोचने पर इस निर्णय पर पहुंचा कि किसी खास पक्ष या संस्था में रहकर मेरा काम नहीं चलेगा। सबसे अलग रहकर सज्जनता की ही

चुटकी भर नमकः पसेरी भर अन्याय
आइये इस ब्लॉग में जानते हैं कि द फिनांसेस एंड पब्लिक वर्क्स ऑफ इंडिया सन् 1869-1881’ से लिए गए इस उद्धरण से समझ में आएगा कि चुटकी भर नमक के ऊपर लगे पसेरी भर कर का भयानक वर्णन करने वाली इस पुस्तक का नाम लेखक रॉय मॉक्सहम ने बाड़ से जोड़कर कैसे रखा है | Let us know about the quote taken from 'The Finances and Public Works of India, 1869-1881' will help you understand how the author Roy Moxham has associated the name of this book with the fence, which gives a horrific description of the Paseri Bhar tax imposed on a pinch of salt.
Posted on 19 Jun, 2010 03:17 PM

आज भी खरे हैं तालाब
Posted on 05 May, 2010 02:01 PM


अपनी पुस्तक “आज भी खरे हैं तालाब” में श्री अनुपम जी ने समूचे भारत के तालाबों, जल-संचयन पद्धतियों, जल-प्रबन्धन, झीलों तथा पानी की अनेक भव्य परंपराओं की समझ, दर्शन और शोध को लिपिबद्ध किया है।

आज भी खरे हैं तालाब
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