गीत नदी की रक्षा का

नदियों को आजाद करो
अब न उन्हें बर्बाद करो,
नदियाँ अविरल बहने दो
उनको निर्मल रहने दो,
नदियों को यदि बहना है
तो जंगल को रहना है,
बॉंध नदी के दुश्मन हैं
जंगल उसके जीवन हैं,
मत काटो-बर्बाद करो,
उन्हे पुनः आबाद करो।

धरती का सम्पूर्ण जहर
गाँव-गाँव और शहर-शहर
बहा सिंधु मे ले जातीं
पावन भूमि बना जातीं,
प्राणिमात्र को दे जीवन
कृषि की बनती संजीवन,
भूजल-संग्रह भर देतीं
भूमि उर्वरा कर देतीं,
सरिता संग संवाद करो,
अब उनको आजाद करो।

रुको, न नदियों को मोड़ो
इधर-उधर से मत जोड़ो,
प्रकृति न इसको सहती है
सारी दुनिया कहती है,
सदियों तक सहना होगा
वर्षों तक दहना होगा,
सरिता तट के गाँव सभी
नही पायेंगे उबर कभी,
दूभर होगा जलजीवन,
वापस लाना बहुत कठिन।

सघन अगर जंगल होंगे
वर्षा जल को रोकेंगे,
गॉंव गॉंव तालाब भरें
कुंये बावड़ी नद जोहरें,
नदी बहें यदि पूरे साल
कभी न हो कोई बेहाल,
जोड़ तोड़ का काम नहीं
नदी मोड़ का नाम नहीं,
सारा राष्ट्र सुखी होगा
कोई नही दुखी होगा।

नदियाँ संस्कृति की माँ हैं
भारत भू की गरिमा हैं
जन-जन की आस्था उनमे
स्वयं प्रकृति की महिमा ये,
आओ अब संकल्प करें,
नदियों का संताप हरें,
बारह माह प्रवाह रहे
जीवन मे उत्साह रहे,
गंगा सी सारी नदियाँ,
फिर लौटें सुख की सदियाँ।।

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