उत्तर प्रदेश

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कैसे प्रदूषण मुक्त हो गोमती, बैठक में हुई चर्चा
Posted on 28 Jun, 2014 07:11 AM लखनऊ। गोमती नदी प्रदूषणमुक्त हो इसके लिए एक बैठक हुई। जिसमें लखनऊ महापौर डॉ. दिनेश शर्मा ने आदि गंगा मां गोमती को अविरल धारा में बहने एवं प्रदूषणमुक्त रखने के लिए विचार व्यक्त किए। बैठक में दिवाकर त्रिपाठी, रेखा गुप्ता, डॉ. आरके सिंह, अतिरिक्त मुख्य वैज्ञानिक वाप्कोस लि.
नाव, न गाड़ी! बाढ़ से निपटने की ये कैसी तैयारी
Posted on 19 Jun, 2014 04:55 PM

गंगा-यमुना के दोआब के 139 गांव हर साल जूझते हैं बाढ़ की समस्या से

सरकारी दस्तावेजों में ही रह गए हैं तालाब, कुएं और पोखर
Posted on 19 Jun, 2014 03:43 PM महोबा, 18 जून (जनसत्ता)। बुंदेलखंड की जमीन से तालाब, कुएं-झीलें व पोखरे लापता हो गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पूरे बुंदेलखंड में इनकी खोज के बाद 2963 तालाब व कुएं लापता पाए गए और 4263 तालाबों पर अवैध कब्जे मिले। जबकि सरकारी अभिलेखों में 3747 तालाबों के अवैध कब्जे हटा दिए गए और मात्र 462 तालाब अवैध कब्जों में है।
उत्तर प्रदेश में 20-25 फरवरी 2014 तक ‘ग्रामीण पेयजल जागरूकता सप्ताह'
Posted on 15 Feb, 2014 10:31 AM प्रदेश के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में शुद्ध एवं सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के लिये राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के अन्तर्गत कई पेयजल योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है। इन योजनाओं का लाभ जनसामान्य तक पहुंचाना, असुरक्षित पेयजल के दुष्प्रभाव, पेयजल योजनाओं के क्रियान्वयन में ग्राम पंचायतों की भागीदारी, पेयजल स्रोतों का रख-रखाव, पेयजल स्रोतों में जैविक एवं रासायनिक अशुद्धियों का परीक्षण, उनक
गांव के पास ईट भट्ठा गैर कानूनी
Posted on 03 Feb, 2014 08:50 PM इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने अमेठी के मोचवा गांव से 200 मीटर दूर स्थित ईट भट्टे को तत्काल बंद किये जाने का आदेश दिया है। साथ ही भट्ठा मालिक व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पर पांच लाख रूपये का हर्जाना ठोंका है। अदालत ने गैरकानूनी तरीके से प्रदूषण बोर्ड द्वारा जारी अनापत्ति प्रमाणपत्र भी खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि यदि दो माह में हर्जाने की रकम जमा नहीं की गई तो जिलाधिकारी इसे भू राजस्व की
पानी बचाने में अधिकारियों की मदद करें किसानः डा. एसपी सिंह
Posted on 25 Nov, 2013 01:49 AM

-इंटीग्रेटेड वॉटरशेड मैनेजमैंट प्रोग्राम (आईडब्ल्यूएमपी) जल संरक्षण के क्षेत्र मील का पत्थर साबित होगा


-यमुनापार इलाके में रामगंगा कमांड द्वारा इंट्री प्वाइंट प्रोग्राम प्रारंभ, गोष्ठी के माध्यम से दी जा रही किसानों को जानकारी

‘मिसिंग शौचालय’ बांदा में
Posted on 24 Nov, 2013 08:33 AM Missing Toilet in Bandaबांदा, उत्तर प्रदेश। प्रदेश भर में सरकारी अनुदान से बनाये गए शौचालयों के हाल, बेहाल हैं। इनमें किया गया भ्रष्टाचार अपने आप में इनके पारदर्शिता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है। बात चाहे केन्द्र सरकार के निर्मल भारत अभियान की हो या फिर सम्पूर्ण स्वक्छ्ता अभियान की। जिन गांवों को निर्मल गाँव की श्रेणी में चुना गया, सर्वाधिक घाल–मेल भी उन्हीं गांवों की सड़क और पगडण्डी में देखने को मिला। आप बुंदेलखंड के किसी भी नेशनल हाइवे से जुड़े गांव की सड़क पर सफ़र में सुबह निकलें तो सहज ही ‘मेरा भारत महान’ की बदबूदार तस्वीर से रूबरू हो जायेंगे। घरों में देहरी के अन्दर लम्बा सा घूँघट निकालने को बेबस महिला यहाँ आम सड़क के किनारे सबेरे-सबेरे और संध्या में एक अदद आड़ के लिए भी तरसती नजर आती है। इनके लिए यह ही कहना पड़ता है कि – “मैं नंगे पैर चलती हूँ, खेत की पगडण्डी पर लोटा लिए, कहीं तो आड़ मिल जाये, इज्जत छुपाने के लिए!“

टिकाऊ खेती ने दिखाई राह
Posted on 07 Nov, 2013 10:38 AM

पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में कई वर्षों से प्रयासरत गोरखपुर एंवायरमेंटल एक्शन ग्रुप ने इस दिशा में अच्छा काम किया है। इस संस्था ने जिले के सरदार नगर और कैंपियरगंज ब्लाकों के गाँवों में खेती किसानी को नई राह दिखाई है। अन्य संस्थाओं के सहयोग से इसे पूर्वांचल के जिलों में फैलाने में भी मदद की है। इस संस्था ने तीन बिंदुओं पर ध्यान दिया है। पहली बात तो यह है कि कृषि के लिए बाजार के महंगे उत्पादों पर निर्भर होने के स्थान पर स्थानीय स्तर पर उपलब्ध निशुल्क, संसाधनों का बेहतर प्रयोग किया जाए और इसकी वैज्ञानिक सोच को किसानों तक ले जाया जाए।

हाल के वर्षों में खेती-किसानी का जो गंभीर संकट उत्पन्न हुआ उसका एक मुख्य कारण यह था कि छोटे किसानों की ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ कर कृषि विकास का प्रयास किया गया। ऐसी तकनीकों का प्रसार हुआ जो न केवल महंगी है बल्कि मिट्टी के प्राकृतिक उपजाऊपन को क्षतिग्रस्त कर भविष्य में और ज्यादा खर्च की भूमिका भी तैयार करती हैं। पर्यावरण से खिलवाड़ कर कई नई बीमारियों और समस्याओं को निमंत्रण देती हैं। महंगी तकनीकों के कारण छोटे किसानों में कर्ज की समस्या बढ़ गई। उधर भूमि सुधार की विफलता के कारण भूमिहीन कृषि मज़दूरों को छोटे किसान बनाने का कार्य भी पीछे छूट गया। चिंताजनक स्थिति में भी उत्साहवर्धक बात यह है कि कई संस्थाओं और संगठनों के प्रयोग ने देश के करोड़ों किसानों को संकट से बाहर निकालने की राह भी दिखाई है। तमाम सीमाओं के बावजूद आर्गेनिक खेती ने अपना असर दिखाया है।
अवैध खनन के इस खेल में सब तर-बतर हैं
Posted on 21 Oct, 2013 10:55 AM

बुंदेलखंड के सभी जनपदों से सालाना बालू और पत्थर खनिज से 510 करोड़ रूपए राजस्व की वसूली होती है। सीएजी की रिपोर्ट 2011 पर नजर डाले तो 258 करोड़ रुपए सीधे राजस्व की चोरी की गई है। वहीं वन विभाग की लापरवाही से जारी की गई एनओसी के बल पर वर्ष 2009 से 2011 के मध्य जनपद महोबा, हमीरपुर, ललितपुर में परिवहन राजस्व वन विभाग को न दिए जाने के चलते सरकार को 3 अरब की राजस्व क्षति का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा है।

सोनभद्र के खनिज विभाग की ओर से सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत मुहैया कराई गई जानकारी पर गौर करें तो यहां डोलो स्टोन, सैंड स्टोन बालू और मोरम के खनन और स्टोन क्रेसर प्लांटों के संचालन में अवैध खनन की पुष्टि हुई है। (केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, उच्चतम न्यायालय, उत्तर प्रदेश वन विभाग, उत्तर प्रदेश शासन, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जिला प्रशासन की विभिन्न जांच रिपोर्ट में अवैध खनन, अवैध परिवहन और स्टोन क्रेसर प्लांटों के मानक विपरीत चलने का भी जिक्र होता रहता है।) खनन के गोरखधंधे में राज्य की सत्ता में काबिज समाजवादी पार्टी, मुख्य विपक्षी पार्टी बहुजन समाज पार्टी, अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी, भारतीय जनता पार्टी के कई वर्तमान विधायकों और सांसदों के साथ-साथ अनेक राजनेता और आपराधिक छवि के लोग शामिल हैं।
‘राज और समाज’ का साझा प्रयास: बकुलाही पुनरोद्धार
Posted on 03 Aug, 2013 10:58 AM

बकुलाही का मुद्दा सिर्फ प्यासे समाज अथवा बकुलाही के भगीरथ समाज शेखर का अकेला नहीं रहा बल्कि अब यह मुद्दा अर्थात बकुलाही का पुनरोद्धार राज और समाज की साझा ज़िम्मेदारी बन गया है। जिसे युद्ध स्तर पर पूरा करने का प्रयास ‘राज और समाज’ दोनों कर रहे है। ‘राज और समाज’ के साझा प्रयास एवं साझी संस्कृति का यह उदाहरण प्रदेश का एक नायाब उदाहरण बन चुका है। बकुलाही नदी की धारा को 25 वर्ष पहले कुछ निहित स्वार्थों की खातिर बीच से ‘लूप कटिंग’ कर तकरीबन 18 किमी. छोटा कर दिया गया था। इस कृत्य के बाद 18 किमी. के इर्द-गिर्द बसे करीब 25 खुशहाल गाँवों से उनकी हरियाली रूठती चली गई। जल स्तर नीचे गिरता चला गया।

प्रतापगढ़ के दक्षिणांचल में ज्वालामुखी की तरह सुलग रहे बकुलाही के मुद्दे को लगता है एक राह मिल गई है। पानी के प्यासे समाज के एक लंबे संघर्ष के बाद प्यास बुझाने की उम्मीद जाग गई है। बकुलाही पुनरोद्धार अभियान के बैनर तले जो जनांदोलन चल रहा था, उसे उसका अभीष्ट नजर आने लगा है। समाज शेखर की अगुवाई में अपनी नदी, अपने पानी के लिए ‘प्यासा समाज’ ने जागृति का जो शंखनाद किया उससे ‘राज’ की तन्द्रा टूट गई और समाज के इस महायज्ञ में आहुति डालने के लिए ‘राज’ आगे बढ़कर ‘समाज’ के बगल खड़ा हो गया।
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