आशीष सागर दीक्षित

आशीष सागर दीक्षित
मूर्ति विसर्जन के बाद केन में की सफाई
Posted on 19 Oct, 2013 04:17 PM
जब मूर्ति नौवें दिन अपने अंतिम दिवस हवन के बाद स्थान से हटाई जाती है तो स्वतः ही देवी का परायण हो जाता है। इसके पश्चात वह मिट्टी है और यदि मिट्टी की वस्तु का मिट्टी में विसर्जन कर दिया जाए तो गलत क्या है? हिंदु धर्म में जल विसर्जन उनका किया जाता है जो अकाल मृत्यु मरे हों, जहरीले कीड़े ने काटा हो, जल कर मरा हो, अविवाहित हो, पाचक में मरा हो। मां दुर्गा और श्री गणेश महोत्सव में किया जाने वाला जल विसर्जन नदी की आस्था को प्रदूषित करने से अधिक कुछ भी नहीं है। बांदा। उच्च न्यायालय इलाहाबाद उत्तर प्रदेश के गंगा प्रदूषण बोर्ड की तरफ से दाखिल की गई जनहित याचिका संख्या 4003/2006 गंगा-यमुना में मूर्ति विसर्जन पर रोक से सकते में आई उत्तर प्रदेश सरकार और इलाहाबाद जिला प्रशासन के लिए नदी में मूर्ति विसर्जन गले की फांस बन गया। एक वर्ष पूर्व उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने इसी याचिका पर आदेश पारित करते हुए इलाहाबाद जिला प्रशासन को जल विसर्जन के विकल्प तलाश करने की हिदायत दी थी। बावजूद इसके एक वर्ष तक ब्यूरोक्रेसी नींद में सोती रही और वर्ष 2013 के मां दुर्गा महोत्सव के बाद मूर्तियों के जल विसर्जन को लेकर न्यायालय में उसकी जवाबदेही को याचिका कर्ताओं ने कटघरे में खड़ा कर दिया।

उच्च न्यायालय ने सख्त लहजे में इलाहाबाद जिला प्रशासन से कहा कि आप एक वर्ष तक सोते रहे तो अब सजा भी भुगतिए। कोर्ट के ये शब्द सुनकर प्रशासन से लेकर प्रदेश सरकार तक के प्रमुख सचिव के लिए मूर्तियों का विसर्जन मुद्दा बन गया।
‘मिसिंग शौचालय’ बांदा में
Posted on 24 Nov, 2013 08:33 AM
Missing Toilet in Bandaबांदा, उत्तर प्रदेश। प्रदेश भर में सरकारी अनुदान से बनाये गए शौचालयों के हाल, बेहाल हैं। इनमें किया गया भ्रष्टाचार अपने आप में इनके पारदर्शिता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है। बात चाहे केन्द्र सरकार के निर्मल भारत अभियान की हो या फिर सम्पूर्ण स्वक्छ्ता अभियान की। जिन गांवों को निर्मल गाँव की श्रेणी में चुना गया, सर्वाधिक घाल–मेल भी उन्हीं गांवों की सड़क और पगडण्डी में देखने को मिला। आप बुंदेलखंड के किसी भी नेशनल हाइवे से जुड़े गांव की सड़क पर सफ़र में सुबह निकलें तो सहज ही ‘मेरा भारत महान’ की बदबूदार तस्वीर से रूबरू हो जायेंगे। घरों में देहरी के अन्दर लम्बा सा घूँघट निकालने को बेबस महिला यहाँ आम सड़क के किनारे सबेरे-सबेरे और संध्या में एक अदद आड़ के लिए भी तरसती नजर आती है। इनके लिए यह ही कहना पड़ता है कि – “मैं नंगे पैर चलती हूँ, खेत की पगडण्डी पर लोटा लिए, कहीं तो आड़ मिल जाये, इज्जत छुपाने के लिए!“

केन नदी को प्रदूषित कर रहे बांदा शहर के तीन नाले
Posted on 09 Nov, 2013 11:43 AM
नदियों में कचरा डालने के साथ-साथ बांदा, महोबा, चित्रकूट और हमीरपुर में प्राचीन तालाबों में भी नगर का सीवर गिराया जाता है और ये प्रशासन की नाक के नीचे होता है। इस कचरे के अतिरिक्त लावारिस लाशों का विसर्जन भी केन में ही किया जाता है जिसमे नवजात शिशु से लेकर अन्य लाश भी शामिल हैं जो तालाब कभी हमारे बुजुर्गों ने जल प्रबंधन के लिए बनाए थे वे ही आज मानवीय काया से उपजे मैला को ढोने का सुलभ साधन बने हैं।बांदा – जबलपुर मध्य प्रदेश से निकल कर पन्ना, छतरपुर, खजुराहो और उत्तर प्रदेश के बांदा से होकर चिल्ला घाट में बेतवा और यमुना में केन (कर्णवती) नदी का संगम होता है। हजारों किलोमीटर कि प्रवाह यात्रा तय करने के बाद बुंदेलखंड के रहवासी इस नदी के जल से अपनी प्यास बुझाते है। किसान खेतों के गर्भ को सिंचित करके खेती करते है। खासकर जबलपुर,पन्ना और बांदा की 70% आबादी इस एक मात्र नदी के सहारे अपने जीवन के रोज़मर्रा वाले कार्यों को पूरा करते हैं। करीब 20 लाख की जनसंख्या अकेले बांदा जिले में ही केन का पानी पीकर जिंदा है।

मगर शहर को इसी केन नदी से जलापूर्ति करने वाले प्राकृतिक स्रोत में तीन गंदे नाले पेयजल को जहरीला बना रहे हैं। निम्नी नाला, पंकज नाला और करिया नाला का सीवर युक्त पानी बिना जल शोधन प्रक्रिया, वाटर ट्रीटमेंट के खुले रूप में केन में गिरता है।
रसिन बांध से किसानों को पानी नहीं, होता है मछली पालन
Posted on 31 Oct, 2013 03:55 PM
किसानों के लिए प्रस्तावित बुंदेलखंड की 2 फ़सलों रबी और खरीफ के लिए क्रमशः 5690 एकड़, 1966 एकड़ ज़मीन सिंचित किए जाने का दावा किया गया है, लेकिन एक किसान नेता के नाम पर बने इस रसिन बांध की दूसरी तस्वीर कुछ और ही है। जो कैमरे की नजर से बच नहीं सकी। जब इस बांध की बुनियाद रखी जा रही थी तब से लेकर आज तक रह-रहकर किसानों की आवाजें मुआवज़े और पानी के विरोध स्वरों में चित्रकूट मंडल के जनपद में गूंजती रहती है। अभी भी कुछ किसान इस बांध के विरोध में जनपद चित्रकूट में आमरण अनशन पर बैठे हैं। चित्रकूट। बुंदेलखंड पैकेज के 7266 करोड़ रुपए के बंदरबांट की पोल यूं तो यहां बने चेकडेम और कुएं ही उजागर कर देते हैं, लेकिन पैकेज के इन रुपयों से किसानों की ज़मीन अधिग्रहण कर बनाए गए बांध से किसानों को सिंचाई के लिए पानी देने का दावा तक साकार नहीं हो सका। चित्रकूट जनपद के रसिन ग्राम पंचायत से लगे हुए करीब एक दर्जन मजरों के हजारों किसानों की कृषि ज़मीन औने-पौने दामों में सरकारी दम से छीनकर उनको सिंचाई के लिए पानी देने के सब्जबाग दिखाकर पैकेज के रुपयों से खेल किया गया।

उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के मातहत बने चौधरी चरण सिंह रसिन बांध परियोजना की कुल लागत 7635.80 लाख रुपया है, जिसमें बुंदेलखंड पैकेज के अंतर्गत 2280 लाख रुपए पैकेज का हिस्सा है, शेष अन्य धनराशि अन्य बांध परियोजनाओं के मद से खर्च की गई है। बांध की कुल लंबाई 260 किमी है और बांध की जलधारण क्षमता 16.23 मी. घनमीटर है।
अवैध खनन के इस खेल में सब तर-बतर हैं
Posted on 21 Oct, 2013 10:55 AM

बुंदेलखंड के सभी जनपदों से सालाना बालू और पत्थर खनिज से 510 करोड़ रूपए राजस्व की वसूली होती है। सीएजी की रिपोर्ट 2011 पर नजर डाले तो 258 करोड़ रुपए सीधे राजस्व की चोरी की गई है। वहीं वन विभाग की लापरवाही से जारी की गई एनओसी के बल पर वर्ष 2009 से 2011 के मध्य जनपद महोबा, हमीरपुर, ललितपुर में परिवहन राजस्व वन विभाग को न दिए जाने के चलते सरकार को 3 अरब की राजस्व क्षति का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा है।

सोनभद्र के खनिज विभाग की ओर से सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत मुहैया कराई गई जानकारी पर गौर करें तो यहां डोलो स्टोन, सैंड स्टोन बालू और मोरम के खनन और स्टोन क्रेसर प्लांटों के संचालन में अवैध खनन की पुष्टि हुई है। (केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, उच्चतम न्यायालय, उत्तर प्रदेश वन विभाग, उत्तर प्रदेश शासन, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जिला प्रशासन की विभिन्न जांच रिपोर्ट में अवैध खनन, अवैध परिवहन और स्टोन क्रेसर प्लांटों के मानक विपरीत चलने का भी जिक्र होता रहता है।) खनन के गोरखधंधे में राज्य की सत्ता में काबिज समाजवादी पार्टी, मुख्य विपक्षी पार्टी बहुजन समाज पार्टी, अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी, भारतीय जनता पार्टी के कई वर्तमान विधायकों और सांसदों के साथ-साथ अनेक राजनेता और आपराधिक छवि के लोग शामिल हैं।
पुनर्वास नीति नहीं और शुरू हुई बांध परियोजना
Posted on 12 Oct, 2013 09:23 AM
इस योजना के अंर्तगत केंद्र सरकार से 90 प्रतिशत और राज्य सरकार से 10 प्रतिशत अनुदान शामिल है। यह योजना 8.6 अरब रुपए की है। बांदा, महोबा, हमीरपुर के 112 गांव के किसानों की कृषि भूमि को अधिग्रहित किया जाना है। अब तक 223 किसानों की जमीनें आपसी सहमति से ली जा चुकीं हैं। कुल 30 हजार 0.56 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित की जाएगी। इस लिंक परियोजना को महोबा की धसान नदी से जोड़कर 38.60 किमी लंबी नहर लहचुरा डैम जिसकी क्षमता 73.60 क्यूमिक वाटर कैपसिटी की है को अर्जुन बांध से जोड़ा जाएगा। बांदा। भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना भी जारी नहीं हुई और बुंदेलखंड की महत्वपूर्ण अर्जुन बांध परियोजना में करीब 10 हजार किसानों को उजाड़ने का खाका तैयार कर लिया गया। परियोजना के अंतर्गत डूब क्षेत्र से प्रभावित किसानों के लिए अभी शासन ने पुनर्वास नीति निर्धारित नहीं की और जिलास्तरीय समिति के द्वारा आपसी सहमति से सर्किल रेट के मुताबिक 112 गांव की भूमि इस योजना की जद में हैं। अर्जुन सहायक बांध परियोजना पर एक पड़ताल....

बुंदेलखंड में नदी बांध परियोजना हमेशा ही विवादों के घेरे में रहीं हैं। फिर चाहे केन-बेतवा लिंक परियोजना हो या अर्जुन बांध परियोजना। एशिया के सर्वाधिक बांधों वाले क्षेत्र में एक के बाद एक नदी बांध परियोजनाएं केंद्र सरकार के एजेंडे में शामिल होती हैं और हाशिए पर चली जाती है।
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