उत्तर प्रदेश

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प्रकृति में छिपा है संवेदनशीलता का मर्म
Posted on 04 Dec, 2016 03:12 PM
सभ्यता की दौड़ में भौतिक साधनों को जुटाने की होड़ आज संपूर्ण मानव जाति को इस कदर उलझाये हुए है कि हम अपने आस-पास के वातावरण, अपने परिवेश से पहले की तरह ही घिरे होने के बावजूद उससे पूरी तरह निष्प्रभावित हैं। हमारे अंदर की संवेदनशीलता मरती जा रही है और हम भावनाओं की पूरी तौर पर उपेक्षा कर सिर्फ एक यंत्र की तरह जी रहे हैं। यदि ध्यानपूर्वक देखा जाए और जीव जंतुओं के संसार के दूसरे सदस्यों की चर्चा
पर्यावरण एवं वनवासी जीवन
Posted on 04 Dec, 2016 03:07 PM
भारत का अधिकांश भाग जंगलों से आच्छादित रहा है। यहाँ की आदिवासी जन-जातियों का मुख्य रूप से निवास गिरि कंदराओं तथा दुर्गम पहाड़ियों के मध्य होता था। जन-जातियाँ देश के कई राज्यों में छिटपुट मिलती हैं। विशेषतौर पर पहाड़ी स्थानों में इनकी बस्तियाँ रही हैं। उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड तथा बिहार में इनके जत्थे निवास करते रहे हैं। सोनभद्र और चंदौली तथा मिर्जापुर कई जन-जाति
नौ बिलियन बनाम 2 डिग्री सेन्टीग्रेड : वर्तमान व भविष्य की चुनौतियाँ
Posted on 04 Dec, 2016 03:01 PM
बढ़ती हुई जनसंख्या एवं उपभोग प्राकृतिक संसाधनों व पर्यावरण पर निरंतर दबाव बनाए हुए है। एक ओर जहाँ वर्ष 2050 तक मानव जनसंख्या 9 बिलियन पार कर जाएंगी (चित्र 1) वहीं दूसरी ओर उनके भरण की व्यवस्था के लिये कृषि क्षेत्र का फैलाव भी बढ़ेगा। कृषि चूँकि ग्रीनहाउस गैसों के विनियमन में सबसे शक्तिशाली मानवजनित कारक है, इसके फैलाव से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि की संभावनाएं भी अधिक हैं। इसका एक
पवित्र वन : प्रकृति संरक्षण की प्राचीन परंपरा
Posted on 03 Dec, 2016 11:28 AM

उपरोक्त कारणों से विघटित पवित्र वनों में अनेक स्थानों पर विज्ञातीय (exotic) पौधों की प्रज

पर्यावरणसौम्य रसायन के रूप में हरित रसायन
Posted on 03 Dec, 2016 11:12 AM
हरित रसायन रासायनिक उत्पादों और प्रक्रियाओं का वह रूप है जो खतरनाक पदार्थों के उपयोग एवं उत्पादन को कम करता है। इस प्रकार खतरनाक रसायनों से हमें बचाकर नुकसान करने के बजाय हरित रसायन खतरों को ही कम करने या समाप्त करने का प्रयत्न करता है और इस प्रकार हमें जोखिम का सामना करने की आवश्यकता ही नहीं रहती। सारी दुनिया के रसायन विज्ञानी पर्यावरण हितैषी रसायनों की खोज में संलग्न हैं। रसायनों द्वारा मा
नई सोच, अनुसंधान और आविष्कार का विज्ञान : जैवप्रौद्योगिकी
Posted on 03 Dec, 2016 10:59 AM

पिछले कुछ दशक अनुसंधान संकेतों, प्रौद्योगिकीकरण, और उद्योग के क्षेत्र में जैवप्रौद्योगिकी

तंत्रिकातंत्र के असाध्य पार्किन्सन रोग के निदान में कारगर : केवाँच
Posted on 02 Dec, 2016 01:20 PM
भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण हमेशा ही संवेदनशील विषय रहा है। पारिस्थितिकीय संतुलन एवं पर्यावरण संरक्षण के उल्लेख महाभारत, रामायण, वेद, उपनिषद, भगवद गीता एवं पुराणों जैसे प्राचीन ग्रंथों में प्रचुरता से मिलते हैं। इन ग्रंथों के अनुसार सार रूप से कहा जाय तो प्रकृति की रचना पाँच तत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश से हुई है। हमारी वसुंधरा अनेक खनिज संपदाओं से भरी पड़ी है।
ज्वालामुखी
Posted on 01 Dec, 2016 12:56 PM
ज्वालामुखी का तात्पर्य उस छिद्र अथवा दरार से होता है जिसका संबंध पृथ्वी के आंतरिक भाग से होता है एवं जिसके माध्यम से तप्त लावा, गैस तथा अन्य पदार्थ धरती के ऊपर आ जाते हैं। ज्वालामुखी क्रिया के अंतर्गत मैग्मा के निकलने से लेकर धरातल या इसके अंदर विभिन्न रूपों में इसके ठंडा होने की प्रक्रिया होती है।

ज्वालामुखी के प्रकार


ज्वालामुखी का वर्गीकरण के अनेक आधार हैं :
टिकाऊ खेती के लिये पर्यावरण हितैषी पोषक तत्व
Posted on 01 Dec, 2016 12:14 PM
भारत दुनिया के भौगोलिक क्षेत्र का मात्र 2.5 प्रतिशत है, परंतु विश्व की 17 प्रतिशत जनसंख्या यहाँ निवास करती है। भारत की जनसंख्या 1951 में 36 करोड़ थी, जो 2010 में बढ़कर 121 करोड़ हो गयी। लगभग 60 वर्षों में देश की जनसंख्या में करीब 300 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गयी है। भारत को 2020 तक लगभग 300 लाख टन खाद्यान्न की आवश्यकता है, जो वर्ष 2010-11 में महज 234 लाख टन थी।
जैव-विविधता परिरक्षण और पर्यावरण
Posted on 28 Nov, 2016 04:56 PM
आज के परिवेश में जैव-विविधता संरक्षण की बात सर्वत्र की जा रही है। जैव-विविधता से अभिप्राय स्थल विशेष या पारिस्थितिकीय जटिलताओं, जीव-जंतुओं, वनस्पतियों की विभिन्न प्रजातियों और परिप्रणाली की विभिन्नता से है।
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