पर्यावरणसौम्य रसायन के रूप में हरित रसायन


हरित रसायन रासायनिक उत्पादों और प्रक्रियाओं का वह रूप है जो खतरनाक पदार्थों के उपयोग एवं उत्पादन को कम करता है। इस प्रकार खतरनाक रसायनों से हमें बचाकर नुकसान करने के बजाय हरित रसायन खतरों को ही कम करने या समाप्त करने का प्रयत्न करता है और इस प्रकार हमें जोखिम का सामना करने की आवश्यकता ही नहीं रहती। सारी दुनिया के रसायन विज्ञानी पर्यावरण हितैषी रसायनों की खोज में संलग्न हैं। रसायनों द्वारा मानव समुदाय एवं पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि रसायन विज्ञान, जहाँ तक संभव हो, अधिक सौम्य हो। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर हरित रसायन विज्ञान की कल्पना की गई है।

पर्यावरणसौम्य रसायन के रूप में हरित रसायननि:संदेह, पिछले एक दशक में रसायन विज्ञान के बेहतर प्रयोग से आर्थिक विकास एवं पर्यावरणीय संरक्षण के प्रति काफी जागरूकता आई है। रसायन विज्ञान के इस नवीन व उभरते बेहतर प्रयोग को ही हरित रसायन विज्ञान अथवा सतत पर्यावरणीय विकास के लिये रसायन विज्ञान कहा जाता है। मूल रूप से हरित रसायन विज्ञान ऐसे पर्यावरणीय सौम्य रसायनों की उत्पादकता विधि है, जो न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से अपितु कार्य-क्षमता तथा आर्थिक रूप से भी श्रेष्ठ हों। वास्तव में ‘‘जोखिमकारी तत्वों के उत्पादन को खत्म करने अथवा कम करने के लिये रासायनिक उत्पादों तथा प्रक्रियाओं की खोज, उनकी संरचना और उनका उपयोग ही हरित रसायन विज्ञान है।’’

रसायन विज्ञानी के रूप में हम जो रसायन तैयार करते हैं उनका संपर्क में आने वाले मानव समुदाय एवं पर्यावरण पर काफी प्रभाव पड़ता है। हरित रसायन विज्ञान के नये प्रतिभागों के अंतर्गत विश्वभर के रसायन विज्ञानी नयी संश्लेषित विधियों, प्रतिक्रियात्मक स्थितियों, विश्लेषणात्मक उपकरणों, उत्प्रेरकों तथा प्रक्रियाओं के निर्माण व विकास में लगे हैं। रसायन विज्ञानियों के समक्ष यह एक चुनौती है कि वे अब तक जो रसायन विज्ञान में किया गया है अथवा किया जा रहा है उस श्रेष्ठ कार्य को ध्यानपूर्वक देखें और फिर निर्णय करें कि ‘‘जिस रसायन विज्ञान का मैं प्रयोग कर रहा हूँ, वह कितना सौम्य है?’’ एक स्पष्ट किंतु महत्त्वपूर्ण बिंदु यह है कि कुछ भी सौम्य नहीं है। वास्तव में सभी तत्वों तथा सभी कार्यों का कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य होता है। सौम्य परिरूप अथवा पर्यावरण हितैषी रसायन विज्ञान एक कल्पना है, रसायन विज्ञान का वो आदर्श स्वरूप है, जिसके बारे में यहाँ चर्चा की जा रही है। रसायन विज्ञान को जहाँ तक संभव हो सके और अधिक सौम्य बनाना इसका उद्देश्य है। जिस प्रकार निर्माणकर्ताओं द्वारा ‘‘जीरो डिफेक्ट’’ (शून्य दोष) की कल्पना की गई थी उसी प्रकार सौम्य रसायन विज्ञान भी परिष्करण की पराकाष्ठा के उद्देश्य से की गई एक कल्पना व एक विचार है।

हरित रसायन विज्ञान टिकाऊ उत्पादों और प्रक्रियाओं के विकास के साथ ही व्यापार को एक बड़ा प्रोत्साहन प्रदान करता है। हरित रसायन विज्ञान के सिद्धांतों का अनुपालन उद्योगों को न केवल पर्यावरणीय लाभ प्रदान करते हैं बल्कि ठीक उसी समय आर्थिक और सामाजिक उद्देश्यों की भी पूर्ति करते हैं। हरित रसायन विज्ञान के सिद्धांत विभिन्न प्रकार के उद्यमों को सतत गति दे सकते हैं। ग्रीन केमिस्ट्री नेटवर्क द्वारा भारत में हरित रसायन विज्ञान के सिद्धांतों को प्रयोगशालाओं, कक्षाओं से लेकर उद्योगों तक में स्थापित करने की दिशा में प्रयास किये जा रहे हैं।

हरित रसायन विज्ञान रासायनिक प्रक्रियाओं में कार्बनिक विलायकों के प्रयोग को कम करने में मदद करता है। इसके अंतर्गत संपूर्ण उत्पादन प्रक्रिया में ऐसी तकनीके चिन्हित या प्रयुक्त की जाती हैं जो कि उस प्रक्रिया के खतरों को कम करती हैं जबकि उनकी आर्थिक उपयोगिता बची रहती है। जब हम नई प्रौद्योगिकी के विकास का प्रयास करते हैं तब अक्सर हम अपने कार्य के पर्यावरणीय प्रभाव का विचार करने से चूक जाते हैं। हरित तकनीकों के डिजाइनों के विकास के लिये हरित रसायन विज्ञान एक आधार प्रदान करता है जो कि स्थायी उत्पादों, प्रक्रियाओं और प्रणालियों की क्रियाशीलता के लिये आवश्यक है।

हरित रसायन के कुछ उदाहरण


1. इब्रुप्रोफेन - दर्द निवारक दवाओं में एस्पिरिन तथा इब्रुप्रोफेन प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं। 1990 में इब्रुप्रोफेन का विकास परंपरागत औद्योगिक संश्लेषण विधि से किया गया था। इसमें संश्लेषण 6 चरणों में पूरा होता था और अनेक अवांछित रासायनिक उपजात उत्पन्न होते थे। बीएचसी कम्पनी ने 1991 में इब्रुप्रोफेन का नवीन हरित औद्योगिक संश्लेषण किया है जिसमें केवल तीन चरण होते हैं। और अभिकर्मकों के अधिकांश परमाणु इच्छित उत्पाद में ही लग जाते हैं।

पर्यावरणसौम्य रसायन के रूप में हरित रसायन2. बैंजीन से बनने वाले उत्पाद अब ग्लूकोज से बन सकते हैं। बैंजीन के उत्पाद से वायुमंडल में नाइट्रस ऑक्साइड की वृद्धि होती है, जो ओजोन परत को क्षति पहुँचाती है तथा वैश्विक तापन को बढ़ाती है। इन सब समस्याओं से बचने के लिये बेंजीन के बजाय ग्लूकोज को आधार बनाकर उन्हीं उत्पादों को तैयार किया जा रहा है। ग्लूकोज की विशेषता है, इसमें छ: ऑक्सीजन परमाणु का होना। अत: ऐसे आक्सीजनित पदार्थ से कैटेचाल बनाते समय हाइड्रोजन परॉक्साइड जैसे संक्षारक पदार्थ की आवश्यकता नहीं पड़ती न ही कार्बनिक विलायकों की। स्वयं ग्लूकोज को पुनर्नवीकरणी स्रोतों से, जैसे पादप स्टार्च तथा सेलुलोज से प्राप्त किया जा सकता है ग्लूकोज के साथ जैव-उत्प्रेरक प्रयुक्त किये जाते हैं। ये सूक्ष्मजीव ग्लूकोज को कार्बन डाइऑक्साइड में परिणत करते हैं और उत्पन्न ऊर्जा से सूक्ष्मजीव की वृद्धि तथा पुनरुत्पादन होता है। यह संपूर्ण प्रक्रिया काष्ठ को जलाकर ऊर्जा उत्पन्न करने के तुल्य है। इस तरह हरित उत्पादन विधियों से जो रासायनिक उत्पाद मिलते हैं वे पर्यावरणीय दृष्टि से सौम्य और सुरक्षित होते हैं।

हरित रसायन के सिद्धांत


पर्यावरणीय दृष्टि से अनुकूल उत्पादों और प्रक्रियाओं के निर्माण को हरित रसायन के सिद्धांतों द्वारा मार्ग निर्देशित किया जा सकता है। ये सिद्धांत हरित रसायन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये किए गए मूल प्रयासों की श्रेणियों के रूप में हैं।

1. रोकथाम - कूड़े-कचरे के बनने के बाद उसके उपचार या शोधन से बेहतर है उसे बनने से ही रोका जाए।

2. परमाणु अर्थव्यवस्था - तैयार उत्पाद बनाने की प्रक्रिया में प्रयुक्त सभी सामग्रियों को अधिकतम उपयोग के लिये कृत्रिम प्रणालियां तैयार की जानी चाहिए।

3. कम नुकसानदायक रासायनिक संश्लेषण - जहाँ व्यावहारिक हो, मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये कम विषाक्तता या विषाक्ततारहित पदार्थों के उपयोग एवं उत्पादन के लिये सिंथेटिक (कृत्रिम) पद्धतियाँ तैयार की जानी चाहिए।

4. अधिक सुरक्षित रसायन तैयार करना - विषाक्तता कम करते समय क्रियात्मक कारगरता बनाए रखते हुए रासायनिक उत्पाद तैयार किए जाने चाहिए।

5. सुरक्षित विलायक और सामग्री - सहायक सामग्री (जैसे विलायक, पृथक्कारी एजेंट आदि) का प्रयोग जहाँ संभव हो न किया जाए और जब उपयोग किया जाए तो वह नुकसानदायक नहीं होना चाहिए।

6. ऊर्जा बचत के लिये डिजाइन - ऊर्जा आवश्यकताओं को उनके पर्यावरणिक और आर्थिक प्रभावों के लिये समझा जाना चाहिए और कम से कम उपयोग किया जाना चाहिए। अनुकूल तापमान और दबाव पर सिंथेटिक पद्धतियाँ तैयार की जानी चाहिए।

7. नवीकरण योग्य फीड स्टाक का उपयोग - जब कभी भी तकनीकी और आर्थिक रूप से व्यावहारिक हो कच्चे माल के फीडस्टाक को खाली करने के बजाय नवीकरण योग्य माल का उपयोग किया जाना चाहिए।

8. व्युत्पन्नों को कम करना - जब कभी भी संभव हो, अनावश्यक व्युत्पन्नों (ब्लॉक, ग्रुप, संरक्षण/संरक्षणहीनता, भौतिक/रासायनिक प्रक्रियाओं का अस्थाई सुधार) से बचना चाहिए।

9. उत्प्रेरण - उत्प्रेरण रीजेंट (यथासंभव चयनात्मक) स्टाकियोमीट्रिक रीजेंट्स से अच्छे हैं।

10. अवक्रमण डिजाइन - रासायनिक उत्पाद इस तरह तैयार किए जाने चाहिए जिससे वह अपनी क्रिया के अंत में पर्यावरण में न बने रहें और नुकसान रहित उत्पादों में बदल जाएं।

11. प्रदूषण रोकथाम के लिये वास्तविक समय विश्लेषण - खतरनाक पदार्थों को तैयार करने से पहले वास्तविक समय प्रक्रिया नियंत्रण एवं मॉनीटरिंग के लिये विश्लेषणात्मक पद्धतियाँ विकसित की जानी चाहिए।

12. दुर्घटना रोकथाम के लिये सुरक्षायुक्त रसायनशास्त्र - किसी रासायनिक प्रक्रिया में प्रयुक्त पदार्थों और पदार्थ को चुना जाना चाहिए ताकि उत्सर्जनों, विस्फोटों और आग लगने सहित रासायनिक दुर्घटनाओं की क्षमता को कम से कम किया जा सके।

हरित रसायन विज्ञान में सौम्य अभिकर्मक तथा सांश्लेषक उपाय शामिल हैं, जिनमें अ-विषालु अभिकर्मक भी सम्मिलित हैं और इसके परिणामस्वरूप कम मात्रा में अपशिष्ट निर्माण होता है। उपचायक रूपांतरण के लिये ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन पर ऑक्साइड को चुनिंदा रूप में सक्रिय करने की प्रणालियों के निर्माण हेतु स्वच्छ अभिकर्मक जैसे कि हाइड्रोजन पर-ऑक्साइड, जो कि उपोत्पाद के रूप में केवल जल का निर्माण करता है, का उपयोग किया जा रहा है। यह सामग्री सजातीय एवं विजातीय उत्प्रेरण में मुख्य भूमिका निभाती है तथा उत्पादन अधिक होता है।

आज हरित विद्युत-रसायन विज्ञान में हरित अभिकर्मकों के रूप में इलेक्ट्रॉन का प्रयोग अनुसंधान का एक अन्य विषय है। इलेक्ट्रॉन एक विशिष्ट उपचयन/अपचयन शक्ति/क्षमता पर विशिष्ट चयन के साथ वांछित प्रतिक्रिया कर सकते हैं। प्रतिक्रिया की दर को लागू विद्युत प्रवाह द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है तथा यदि जलीय विद्युत-अपघट्य का उपयोग किया जाता है तो ऑक्सीजन व हाइड्रोजन के अतिरिक्त अन्य किसी भी प्रकार के उपोत्पाद का निर्माण नहीं होता है। विद्युत-रसायन प्रौद्योगिकी द्वारा 200 यौगिकों का निर्माण किया गया है।

जब उद्देश्य रसायन विज्ञान के क्षेत्र एवं सामान्य रूप से समाज के लिये महत्त्वपूर्ण हो तो ऐसे क्षेत्रों में अनुसंधान के लिये काफी मात्रा में निधि, समर्थन तथा मान्यता उपलब्ध हो जाती है। हरित रसायन विज्ञान में अनुसंधान के लिये उपलब्ध निधि में भी पिछले कई सालों से बहुत वृद्धि हुई है। हरित रसायन विज्ञान में अब तक किए गए अनुसंधानों की गुणवत्ता के स्तर एवं प्राप्त हुए संभावित आर्थिक लाभ के मद्देनजर इसके समर्थन में सतत वृद्धि की संभावना है।

हरित रसायन वे स्तंभ हैं जो हमारे निरंतर चलने वाले भविष्य को धारण करते हैं। हरित रसायन के विकास में यह अनुभव किया गया है कि अगली पीढ़ी के वैज्ञानिकों को उन पद्धतियों, तकनीकों और सिद्धांतों में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए जिनका मुख्य विषय हरित रसायन हो।

छात्रों को रसायन प्रक्रियाओं की संरचना, परिणाम कार्यप्रणाली, नियंत्रक शक्तियों एवं आर्थिक मूल्यों के बारे में शिक्षा देने के साथ-साथ इन रसायनों एवं प्रक्रियाओं के मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति सहवर्ती खतरों के बारे में भी जानकारी देनी चाहिए।

शिक्षकों को अपने शिक्षण और अनुसंधान में हरित रसायन को प्रभावकारी रूप से एकीकृत करने के लिये उचित साधनों, प्रशिक्षण एवं सामग्री की जरूरत है। पाठ्यक्रम के अंदर हरित रसायन के समाहित करने के लिये निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण कदम उठाये जाने की आवश्यकता है-

1. हरित रसायन सिद्धांतों को प्रदर्शित करने के लिये प्रयोगात्मक प्रयोगशाला परीक्षणों का विकास एवं उपयोग।
2. रासायनिक विष विज्ञान की मूल अवधारणा और खतरे के प्रमाणिक आधार की जानकारी देना।
3. हरित रसायन परियोजनाओं पर कार्य करने के लिये छात्रों/अनुसंधानकर्ताओं को प्रोत्साहन देना।
4. विद्यमान पाठ्यक्रमों में हरित रसायन शामिल कराने के लिये संदर्भ सामग्री तैयार करना।

भविष्य की सबसे सफल रासायनिक कम्पनियाँ वे होंगी जो अपने प्रतिस्पर्धी लाभ के अवसरों का उपयोग कर सकें और भविष्य के सबसे सफल रसायन वे होंगे जो अनुसंधान एवं विकास, नवोन्मेष और शिक्षा में हरित रसायन अवधारणाओं का उपयोग कर सकें।

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