तमिलनाडु

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भारत का जल संसाधन
Posted on 25 Feb, 2009 10:05 AM

संपादक- मिथिलेश वामनकर/ विजय मित्रा

Rainwater harvesting natural method
क्यों बरसात होती है
Posted on 21 Jan, 2009 08:05 PM

वैसे तो हर बारिश में ही भीगने का मन होता है, पर मानसून की बात ही कुछ अलग है। मानसून तन को ही नहीं मन को भी भिगोता है - हर किसी के मन को। लोगों के तन मन ही को नहीं - नदी पहाड़, खेत खलिहान, हाट बाजार सभी के मन को। किसी को यह रोमांच देता है, किसी को खुशी, किसी को ताजगी तो किसी को नया जीवन। और यह सब करने वाला मानसून इस धरती का अपनी तरह का अकेला नाटकीय घटनाक्रम है। मानसूनी जलवायु काफी बड़े भूभाग को

फोटो साभार - अमर उजाला
‘पुलिकट’ खतरे में
Posted on 03 Jan, 2009 08:08 AM

एजेंसी/ चेन्नई, भारत की दूसरी बड़ी झील पुलिकट मानवीय गतिविधियों और प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण खतरे में है। एक नए सर्वे में यह बात सामने आई है। पुलिकट झील का आकार लगातार कम हो रहा है।

Photo - Coutesy - Mckay Savage - Wikipedia
पानी पर खतरे की घंटी सुनना जरूरी
Posted on 03 Oct, 2008 09:41 AM

अनिल प्रकाश/ हिन्दुस्तान

भूमिगत जलस्रोतों को कभी अक्षय भंडार माना जाता था, लेकिन ये संचित भंडार अब सूखने लगे हैं। पिछले 50-60 बरस में डीजल और बिजली के शक्तिशाली पम्पों के सहारे खेती, उद्योग और शहरी जरूरतों के लिए इतना पानी खींचा जाने लगा है कि भूजल के प्राकृतिक संचय और यांत्रिक दोहन के बीच का संतुलन बिगड़ गया और जलस्तर नीचे गिरने लगा। केंद्रीय तथा उत्तरी चीन, पाकिस्तान के कई हिस्से, उत्तरी अफ्रीका, मध्यपूर्व तथा अरब देशों में यह समस्या बहुत गंभीर है, लेकिन भारत की स्थिति भी कम गंभीर नहीं है। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिकांश इलाकों में भूजल स्तर प्रतिवर्ष लगभग एक मीटर तक नीचे जा रहा है। गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में भूजल स्तर तेजी से नीचे गिर रहा है। समस्या इन राज्यों तक ही सीमित नहीं है। नीरी (नेशनल इनवायर्नमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीच्यूट) के अध्ययन में पाया गया है कि भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन के कारण पूरे देश में जल स्तर नीचे जा रहा है।

सूखे कुंए
द डार्क ज़ोन अर्थात अंधकार क्षेत्र
Posted on 22 Sep, 2008 11:32 AM

जब डाउन टू अर्थ संवाददाता निधि अग्रवाल और डीबी मनीषा ने भूमिगत जल में फ्लोराइड और विषाक्‍त पदार्थों पर अपनी रिपोर्ट लिखी तब हम इस समस्‍या के विस्‍तार और घातक प्रभावों की कल्‍पना मात्र से ही सिहर उठे। वास्‍तव में निराशा में लिखी गई एक कहानी है, जिसका नाम - द डार्क ज़ोन है/ यह भूमिगत जल के बारे में उस समय की कहानी है जब पानी (रस) विष में बदल जाता है और जब किसी एक कष्‍टदायी रोग और मौत का कारण बन ज

पूम्पुहार
Posted on 19 Sep, 2008 05:46 PM

क्लेर आर्नि | ओरिएल हेनरी

पूम्पुहार, कावेरी नदी का सागर से मिलन, महिलाएं पानी भर रही हैं
कावेरी विवाद आख़िर है क्या?
Posted on 19 Sep, 2008 05:29 PM

कावेरी विवाद

बीबीसी/ भारतीय संविधान के मुताबिक कावेरी एक अंतर्राज्यीय नदी है। कर्नाटक और तमिलनाडु इस कावेरी घाटी में पड़नेवाले प्रमुख राज्य हैं। इस घाटी का एक हिस्सा केरल में भी पड़ता है और समुद्र में मिलने से पहले ये नदी कराइकाल से होकर गुजरती है जो पांडिचेरी का हिस्सा है। इस नदी के जल के बँटवारे को लेकर इन चारों राज्यों में विवाद का एक लम्बा इतिहास है।

कावेरी विवाद तमिलनाडु से कर्नाटक तक फैला हुआ है
जल संरक्षण की चुनौती
Posted on 16 Sep, 2008 11:57 AM

देश की कई छोटी-छोटी नदियां सूख गई हैं या सूखने की कगार पर हैं। बड़ी-बड़ी नदियों में पानी का प्रवाह धीमा होता जा रहा है। कुएं सूखते जा रहे है। 1960 में हमारे देश में 10 लाख कुएं थे, लेकिन आज इनकी संख्या 2 करोड़ 60 लाख से 3 करोड़ के बीच है। हमारे देश के 55 से 60 फीसदी लोगों को पानी की आवश्यकता की पूर्ति भूजल द्वारा होती है, लेकिन अब भूजल की उपलब्धता को लेकर

water consumption
भारत का जल संकट
Posted on 16 Sep, 2008 11:27 AM

नित्या जैकब के साथ फ्रेडरिक नोरोंहा की बातचीत

पूर्व बिजनेस और पर्यावरणीय पत्रकार नित्या जैकब ने भारतीय उपमहाद्वीप में पानी पर आधारित एक पर्यावरणीय यात्रा वृतांत लिखने जैसा अद्भुत काम किया है।

दिल्ली के रहने वाले इस लेखक ने अपने अनुभव से यह देखा कि अधिक पानी और जल प्रबंधन की विश्व में सबसे अधिक परंपराओं में से एक होने के बावजूद भी भारत में जल संकट बहुत गंभीर है।

जल योद्धा नित्या जैकब
वर्षा के पानी का संरक्षण - आशीष गर्ग
Posted on 05 Sep, 2008 09:07 PM

पानी की समस्या आज भारत के कई हिस्सों में विकराल रूप धारण कर चुकी है। इस समस्या से जूझने के कई प्रस्ताव भी सामने आएं हैं और उनमें से एक है नदियों को जोडना। लेकिन यह काम बहुत मंहगा और वृहद स्तर का है, साथ ही पर्यावरण की दृष्टि से काफी खतरनाक साबित हो सकता है, जिसके विरूद्ध काफी प्रतिक्रियाएं भी हुई हैं। कहावत है बूंद-बूंद से सागर भरता है, यदि इस कहावत को अक्षरश सत्य माना जाये तो छोटे छोटे प्रयास

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