न्यू टिहरी

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न स्वैप, ना स्वजल, सिर्फ ग्राम जल
Posted on 08 Oct, 2016 12:35 PM
उन्हें क्या मालूम था कि वे एक लम्बे समय तक पानी के संकट से जूझते रहेंगे। वे तो मोटर मार्ग के स्वार्थवश अपने गाँव की मूल थाती छोड़कर इसलिये चूरेड़धार पर आ बसे कि उन्हें भी यातायात का लाभ मिलेगा। यातायात का लाभ उन्हें जो भी मिला हो, पर वे उससे कई गुना अधिक पानी के संकट से जूझते रहे।

यह कोई नई कहानी नहीं यह तो हकीकत की पड़ताल करती हुई टिहरी जनपद के अन्तर्गत चूरेड़धार गाँव की तस्वीर का चरित्र-चित्रण है। बता दें कि 1952 से पूर्व चूरेड़धार गाँव गाड़नामे तोक पर था, जिसे तब गाड़नामे गाँव से ही जाना जाता था। हुआ यूँ कि 1953 में जब धनोल्टी-चम्बा मोटर मार्ग बना तो ग्रामीण मूल गाँव से स्वःविस्थापित होकर सड़क की सुविधा बावत चूरेड़धार जगह पर आ बसे।
गाड़नामे तोक गाँव में जलस्रोत
गंगा का भविष्य : मुक्तिदायिनी गंगा का संरक्षण व संवर्धन राष्ट्रहित में
Posted on 08 Oct, 2016 12:32 PM
माँ गंगा का जन्म भगवान विष्णु के श्री चरणों से हुआ और विष्णुपदी नाम पाया। जिस गंगा जी को श्री ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डल में रखकर अपने को धन्य माना हो, जिस गंगा जी को शंकर जी ने अपने मस्तक पर शोभायमान कर अपने को गर्वित किया हो, जिस गंगा की पवित्रता को हमारे धर्मशास्त्रों ने गाया हो और विश्व कल्याण की बात की हो, जिस गंगा के तट पर हमारे ऋषि-मुनि तपस्या करके परम गति को प्राप्त हुये हों और जिस गं
सब्र का बाँध (Building Dam)
Posted on 01 Oct, 2016 04:10 PM

बाँध बनाने के पूर्व कुछ आवश्यक जाँच की जाती है। सबसे पहले नदी का वह भाग ढूंढ़ा जाता है, जह

घरों तक पहुँची धाराएँ
Posted on 10 Sep, 2016 12:06 PM
एक वक्त था जब बासु देवी का पूरा दिन पीने का पानी लाने में ही निकल जाता था। उसे तो याद भी नहीं है कि कितने घंटे वो पानी की जद्दोजहद में बिता देती थी। बासु देवी के लिये घरेलू जरूरतों का पानी लाना किसी संघर्ष से कम न था लेकिन उसके संघर्ष के दिन अब लद गए हैं। पानी के लिये अब बासु देवी के माथे पर शिकन नहीं दिखती। उसके घर में अब टैंक लग गया है जिसमें पानी स्टोर किया जाता है। अब वो ज्यादा वक्त अपने पोते-पोतियों के साथ बिताती हैं और घरों को साफ-सुथरा रखती हैं। कुछ वर्ष पहले तक उत्तराखण्ड के 133 गाँवों में रहने वाले कम-से-कम 50 हजार लोगों के लिये पानी की उपलब्धता एक बड़ी समस्या थी।

उन्हें रोज पानी के लिये जूझना पड़ता था लेकिन अब स्थितियाँ बदल गई हैं। अब घरेलू इस्तेमाल और पीने के लिये पानी घरों में मिल रहा है। इन गाँवों में रहने वाले लोगों को शुद्ध पेयजल आसानी से पा जाना किसी सपने के सच होने से कम नहीं था लेकिन कुछ संगठनों और स्थानीय लोगों के प्रयास से असम्भव को सम्भव किया गया। किया यह गया कि धारा से निकलने वाले पानी को पाइप के जरिए टैंकों तक लाया गया जहाँ से लोगों को पानी की आपूर्ति की जा रही है।

उत्तराखण्ड के टिहरी जिले के चूड़ेधार की रहने वाली 50 वर्षीया बासु देवी इस व्यवस्था की लाभान्वितों में से एक हैं। वे कहती हैं, ‘यह टैंक मेरे लिये बैंक की तरह है। जिस तरह बैंक से बहुत जरूरत पड़ने पर भी नियमित मात्रा में ही रकम निकाली जाती है उसी तरह मैं भी इस टैंक से जरूरत पड़ने पर ही नियमित मात्रा में पानी निकालती हूँ।’
हादसों के पहाड़
Posted on 17 Jul, 2016 12:46 PM
केदारनाथउत्तराखण्ड के केदारनाथ में 16-17 जून, 2013 की रात्रि
हिमालय के एक जलस्रोत की कहानी
Posted on 26 Jun, 2016 09:37 AM
लगभग आधे भारत में पानी की किल्लत ने देश के सामने एक बड़ी समस्या खड़ी कर दी है। सरकारी अनुमान के मुताबिक लगभग 33 करोड़ लोग सूखे की चपेट में हैं। सूखे से परेशान ग्रामीण किसान पलायन को भी मजबूर हो रहे हैं। किसानों का आरोप है कि सरकारी उदासीनता ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा है।
उत्तराखण्ड में फटे बादल, भारी तबाही का अंदेशा (Uttarakhand cloud burst, the fear of massive destruction)
Posted on 30 May, 2016 05:22 PM
उत्तराखण्ड चारधाम यात्रा मार्ग पर फिर कहर बरपा है। शनिवार की रात तीन जगहों पर बादल फटने से भारी तबाही हुई है। कई जगह सड़कें बह गई हैं। बादल फटने की घटनाओं से हुई भारी बारिश की वजह से पहाड़ों में भू-स्खलन कई जगह हुआ है। भारी बारिश और भू-स्खलन की वजह से पाँच से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। भू-स्खलन के कारण राजमार्गों और केदारनाथ यात्रा मार्ग पर जगह-जगह
फिर प्राकृतिक आपदा की चपेट में उत्तराखण्ड
Posted on 30 May, 2016 04:31 PM


टिहरी जनपद की भिंलगनाघाटी हमेशा से ही प्राकृतिक आपदाओं की शिकार हुई है। साल 1803 व 1991 का भूकम्प हो या 2003, 2010, 2011 या 2013 की आपदा हो, इन प्राकृतिक आपदाओं के कारण भिंलगनाघाटी के लोग आपदा के निवाला बने हैं।

क्या दस साल बाद सूख जाएगी हेंवल नदी
Posted on 18 Feb, 2016 01:49 PM

नीरी ने वर्ष 2010 के अपने एक अध्ययन में हेंवल नदी के जलग्रहण क्षेत्र के लगभग सभी जलस्रोतो

एक संवाद ‘हिमालय के जलस्रोतों और बीजों का संरक्षण व संवर्धन’
Posted on 08 Dec, 2015 01:45 PM

दिनांक- 27-29 अक्टूबर 2015


जलसंरक्षण के लिये किये गए प्रयासों को देखने के लिये सभी लोग हेंवलघाटी के श्री दयाल सिंह भण्डारी के घर पर गए। जहॉं पर उन्होंने बताया कि कुछ वर्ष पूर्व तक उन्हें पानी के लिये कितना संघर्ष करना पड़ता था। उन्होंने घर के पास में पुराने जलस्रोत की देखभाल और उपचार शुरू किया। वहॉं पर बांज और जल संरक्षण वाले वृक्षों का रोपण किया। जलस्रोत के आस-पास छेड़खानी नहीं होने दी। उनके द्वारा 10 वर्षों की मेहनत रंग लाई और जलस्रोत पुनर्जीवित हुआ। आज पूरे परिवार को पेयजल, घरेलू उपयोग का पानी, सिंचाई और एक मछली के तालाब के लिये पर्याप्त पानी दयाल सिंह भण्डारी के परिवार के पास उपलब्ध है। पर्वतीय समाज ने सदियों से अपने संसाधनों पर आधारित आत्मनिर्भर जीवन जीया है। जल, जंगल, ज़मीन, खेती और पशुपालन पर्वतीय जीवन की धुरी रहे हैं। जीवन के इन संसाधनों को संरक्षित, संवर्धित व सजाने सँवारने के लिये समाज में अनेक प्रकार की व्यवस्थाओं, परम्पराओं और रीति रिवाजों की संस्कृति रही है।

पर्वतीय समाज आपसी व्यवहार और समृद्ध सामाजिक रिश्तों की बुनियाद पर अपनी आजीविका चलाता रहा है। इसमें बाजार और पूँजी की भूमिका नगण्य थी। प्रकृति के दोहन के बजाय शोषण की प्रवृत्ति में निरन्तर वृद्धि हो रहा है। बाजार के बढ़ते हस्तक्षेप और पूँजी की प्रधानता होने से आपसी प्रगाढ़ता वाली व्यवस्थाओं में तेजी से टूटन आई है।

इसका प्रभाव खेती, पशुपालन और प्राकृतिक संसाधनों विशेष रूप से जलस्रोतों पर पड़ा है। खेती एवं पशुपालन के प्रति रुझान घटा है तथा प्राकृतिक जलस्रोतों के सूख जाने का क्रम बढ़ा है। इस पूरे परिदृश्य में पर्वतीय समाज की आजीविका और जीवन पर तेजी से संकट आ गया है।
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