न्यू टिहरी

Term Path Alias

/regions/new-tehri

हेंवलघाटी में बीज बचाने में जुटी हैं महिलाएं
Posted on 18 Nov, 2014 03:31 PM उत्तराखंड की हेंवलघाटी का एक गांव है पटुड़ी। यहां के सार्वजनिक भवन में गांव की महिलाएं एक दरी पर बैठी हुई हैं। वे अपने साथ एक-एक मुट्ठी राजमा के देशी बीज लेकर आई हैं। इनकी छटा ही आकर्षित थी। रंग-बिरंगे देशी बीज देखने में सुंदर ही नहीं, बल्कि स्वाद में भी बेजोड़ हैं, पोषक तत्वों से भरपूर हैं।

बीज बचाओ आंदोलन की बैठक गत् 6 नवंबर को पटुड़ी में आयोजित की गई थी। मुझे इस बैठक में बीज बचाओ आंदोलन के सूत्रधार विजय जड़धारी के साथ जाने का मौका मिला। बीज बचाओ आंदोलन के पास राजमा की ही 220 प्रजातियां हैं। इसके अलावा, मंडुआ, झंगोरा, धान, गेहूं, ज्वार, नौरंगी, गहथ, जौ, मसूर की कई प्रजातियां हैं।
seed
मौसम बदलाव का मुकाबला बारहनाजा से
Posted on 14 Nov, 2014 12:17 PM जलवायु परिवर्तन पूरी दुनिया में चिंता का विषय बना हुआ है। मौसम की अनिश्चितता बढ़ गई है। बदलते मौसम की सबसे बड़ी मार किसानों पर पड़ रही है। अब कोई भी मौसम अपने समय पर नहीं आता। जबकि किसान का ज्ञान व बीज मौसम के हिसाब से ही हैं। इससे किसानों की खाद्य सुरक्षा और आजीविका पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। यह एक बड़ी समस्या है। लेकिन उत्तराखंड के किसानों ने अपनी
<i>बारहनाजा</i>
गंगा और नर्मदा : मां-बेटी दोनों ही संकट में है
Posted on 28 Jun, 2014 11:59 AM दुनिया के पहाड़ों में हिमालय की उम्र सबसे कम है। दक्षिण की तरह ये पक्के पहाड़ नहीं है। जिस मैदान में मित्र-मिलन की बैठक चल रही थी उसी के सामने खड़े पहाड़ इस बात की साक्षी दे रहे थे। 839 फीट ऊंचे टिहरी बांध के फलस्वरूप बनने वाली झील में जब ये पहाड़ समा जाएंगे तो इतनी गाद पैदा होगी कि झीलें भर जाएंगी। साधारण आदमी भी इन पहाड़ों को देखकर यह बात समझ सकता है। भूकंपीय खतरे बांध तक ही सीमित नहीं होते वे आस-पास भी कहर बरसाते हैं। गंगा की मुख्य स्रोत भागीरथी करीब 200 किलोमीटर की यात्रा करके पौराणिक शहर त्रिहरी ‘टिहरी’ पहुंचती है। इस शहर से 15 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा-सा गांव है-सिराई। जो पहाड़ पर बसा हुआ है और उसकी तराई में जहां भागीरथी बहती है एक समतल मैदान है जिसे दोनों छोर के पहाड़ों, कलकल करती बहती भगीरथी तथा उसकी चमकीली रेत ने रमणीय और मनमोहक बना दिया है। हिमालय पर्वत की गोद में जाने कितने ऐसे रमणीय स्थल होंगे।

यह रमणीयता यहां के बाशिंदों के लिए केवल आत्मिक ही नहीं है, भौतिक भी है। हवा, पानी, मिट्टी, पेड़ जो प्राकृतिक छटा के अंग है, उनके जीवनाधार भी है। गंगोत्री से नीचे जाते हुए लोगों से पूछिए “कहां जा रहे हो?” वे कहते हैं - “गंगाघर” जा रहे हैं। गंगा उनकी मां है और उसके किनारे बने घर दूर गए बेटों की मां के घर है।
टिहरी बांध : झील में खेल, भाग-3
Posted on 01 Mar, 2014 12:17 PM टी.एच.डी.सी.
टिहरी बांध : उजड़े पर गिनती में नहींं, भाग-2
Posted on 25 Feb, 2014 01:22 PM

2005 से केन्द्रीय जल आयोग की कोई रिपोर्ट नहीं आई जो बताती कि टिहरी बांध झील की जल गुणवत्ता क्या

टिहरी बांध : अनदेखी कब तक, भाग-1
Posted on 25 Feb, 2014 12:14 PM सर्वोच्च न्यायालय में टिहरी बांध का 22 वर्ष से एन. डी.
गंगा को मारने की नई साज़िश
Posted on 14 Jun, 2013 09:46 AM सैंड्रप द्वारा तैयार की गई आलोचनात्मक टिप्पणी, जिसे माटू के अलावा अन्य कई जन संगठनों ने अनुमोदित किया है, बिंदुवार समिति की रिपोर्ट की बदनीयत, चालाकी और गैरजानकारी का खुलासा करती है। जो जलविद्युत परियोजनाएं भागीरथीगंगा पर रोक दिए गए हैं उन्हें भी निर्माणाधीन की श्रेणी में दिखाया गया है। ऐसे कई उदाहरण इस रिपोर्ट में मिलेंगे जो बताते हैं की समिति ने बांध समर्थन की भूमिका ली है। बांधों की स्थिति बताने वाली सारिणी भी गलत आंकड़ों से भरी है। नदी की लम्बाई का अनुपात भी गलत लगाया गया है। समिति 81 प्रतिशत भागीरथी और 69 प्रतिशत अलकनन्दा को बांधों से प्रभावित कहती है जो कि पूरी तरह से गलत है। नापे सौ गज और काटे इंच भी नहीं। प्रधानमंत्री जी बार-बार गंगा के लिए प्रतिबद्धता जताते हैं उनकी पार्टी गंगा रक्षण का दम भरते हुए वोट भी मांगती है। किंतु ज़मीनी स्तर यह नहीं दिखाई देता है। जिसका उदाहरण है हाल ही में गंगाजी पर आई अंतरमंत्रालयी समिति की रिर्पोट। सरकार ने 17 अप्रैल, 2012 को स्वामी सानंद जी के उपवास के समय राष्ट्रीय गंगा नदी प्राधिकरण की बैठक बुलाई थी। तब सानंद जी को सरकार ने एम्स में रखा हुआ था। बैठक में वे नहीं गए उनकी ओर से कुछ संत प्रतिनिधि गए थे। प्रधानमंत्री ने उन्हें अलग से मिलने का वादा किया। बैठक में डब्ल्यू. आई. आई. और आई. आई. टी. आर. की रिपोर्ट के बारे में उठ रही तमाम शंकाओं पर विराम लगाते हुए इन रिर्पोटों को सही ठहराया। इन संत प्रतिनिधियों ने इस पर कुछ कहा हो ऐसी कोई खबर बाहर नहीं आई। बैठक शांति से निबट गई। 15 जून 2012 को सरकार ने चुपचाप से गंगा के लिए चिल्लाने वालों के मुंह में अंतरमंत्रालयी समिति का लड्डू रखा दिया गया। 15 सदस्यों में बिना किसी चयन प्रक्रिया के तीन गैर सरकारी सदस्यों को भी समिति में रखा गया। रिपोर्ट के बीच बांधों के कामों पर भी कोई रोक नहीं लगाई गई थी।
उद्गम शेष
Posted on 23 May, 2013 10:28 AM

अधिसूचना में जहां बड़े बांधों पर पूरी तरह से रोक की बात है वहीं 25 मेगावाट से छोटे बांधों को पूरी तरह से हरी झंडी देने का प्रयास है। अस्सीगंगा में 4 जविप निर्माणाधीन हैं जो 10 मेगावाट से छोटी हैं। जिनमें एशियाई विकास बैंक द्वारा पोषित निमार्णाधीन कल्दीगाड व नाबार्ड द्वारा पोषित अस्सी गंगा चरण एक व दो जविप भी है। उत्तरकाशी में भागीरथीगंगा को मिलने वाली अस्सीगंगा की घाटी पर्यटन की दृष्टि से ना केवल सुंदर है वरन् घाटी के लोगो को स्थायी रोज़गार दिलाने में भी सक्षम है।

पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की ताजी अधिसूचना के अनुसार गौमुख से उत्तरकाशी तक भागीरथीगंगा के लगभग 100 किलोमीटर लम्बे 4179.59 वर्ग किलोमीटर के संपूर्ण जल संरक्षण क्षेत्र को भागीरथीगंगा के पर्यावरणीय प्रवाह और परिस्थितिकी को बनाए रखने के लिए पारिस्थितिकीय और पर्यावरणीय दृष्टि से पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया गया है। इसके साथ ही उत्तराखंड में खासकर उत्तरकाशी के इस क्षेत्र में फिर से धरने प्रर्दशन चालू हो गए।

पूर्व के जी.डी. अग्रवाल और वर्तमान में स्वामी सानंद के उपवास से आस्था के नाम पर बांध रोकने के प्रयासों पर यह पक्की मोहर है। उत्तराखंड सरकार ने नवंबर 2008 पाला-मनेरी व केन्द्र सरकार ने 2010 में लोहारीनाग-पाला बांध रोका था। यह जानते हुए भी कि केन्द्र की कांग्रेस सरकार और राज्य की बीजेपी सरकार के ही द्वारा यह बांध रुके हैं। स्थानीय स्तर पर बांध समर्थन में आंदोलन करके वोट बटोरने की खूब कोशिशें चली हैं। राजनीतिक दलों ने चाहे वह कांग्रेस हो या बीजेपी पिछले लोकसभा, विधानसभा और नगर निगम चुनावों में इसका भरपूर राजनीतिक फायदा उठाया।
गंगा अंतरमंत्रालयी समूह: एक परिचय
Posted on 22 Apr, 2013 11:39 AM

“यह गठित समूह की नहीं, डैम लॉबी की रिपोर्ट है। यह अंतरमंत्रालयी समूह गठन के मूल उद्देश्य की पूर्ति नहीं करती। अतः मैं इसे नामंज़ूर करता हूं।”

vishnu prayag hydro electric project
&#039;&#039;आपदा में फायदा&#039;&#039; का विमोचन
Posted on 19 Apr, 2013 01:11 PM गंगा की दोनों मुख्य धाराओं भागीरथीगंगा की अस्सीगंगा घाटी और अलकनंदागंगा की केदारघाटी में जुलाई, अगस्त और सितंबर महीने 2012 में जो भयानक तबाही हुई उसका कारण बादल फटने से ज्यादा जलविद्युत परियोजनाएं थी। अस्सी गंगा नदी में बादल फटने के बाद एशियन विकास बैंक पोषित निर्माणाधीन कल्दीगाड व अस्सी गंगा चरण एक व दो जलविद्युत और भागीरथीगंगा में मनेरी भाली चरण दो परियोजनाओं के कारण बहुत नुकसान हुआ। मारे गए मज़दूरों का कोई रिकार्ड नहीं, अस्सीगंगा व केदार घाटी के गांव बुरी तरह से प्रभावित हुए, पर्यावरण तबाह हुआ जिसकी भरपाई में कई दशक लगेंगे। उत्तराखंड में उत्तरकाशी में अस्सीगंगा व भागीरथी गंगा के संगम पर 15 अप्रैल को आपदा प्रभावितों के बीच माटू जनसंगठन के पंद्रहवें दस्तावेज़ “आपदा में फायदा” का विमोचन किया गया। इस अवसर पर सभा में वक्ताओं ने आपदा प्रबंध की पोल खोलने के साथ मुआवज़ा वितरण में हो रही धांधली की आलोचना की। एकमत से अस्सीगंगा के बांधों का विरोध किया गया। क्षेत्र पंचायत सदस्य श्री कमल सिंह ने कहा की हम अस्सी गंगा के बांधों का प्रारंभ से विरोध कर रहे हैं।
×