नैनीताल जिला

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गोमुख की स्थिति पर हर तीन माह में रिपोर्ट तलब
Posted on 09 Jul, 2018 01:41 PM

उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को वाडिया इंस्टीट्यूट व इसरो की मदद से हर तीन माह में गोमुख की स्थिति रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने के आदेश जारी कर दिये हैं। न्यायालय ने पहली रिपोर्ट 31 अगस्त तक माँगी है। कोर्ट में गोमुख में बनी कथित झील को वैज्ञानिक तरीके से हटाने एवं जमा हुए मलबे को जल्दी हटाने के निर्देश दिये हैं।
Gomukh
आज भी प्रासंगिक हैं परम्परागत खाल
Posted on 01 Sep, 2015 03:50 PM

खेतों में भू-आर्द्रता बनी रहने के कारण गाँव के किसान अपनी परम्परागत फसलों के साथ-साथ सब्जी उत्पादन करके अपनी आजीविका चलाते हैं। गाँव को ऊपरी तौर पर देख कर आश्चर्य होता है कि जो गाँव पेयजल के संकट से जूझ रहा हो वह गर्मियों में सब्जी उत्पादन कर रहा है। इस गाँव में गर्मी के मौसम में किसान 2-5 नाली भूमि में मिर्च, फूलगोभी, टमाटर आदि की खेती करते हैं तथा प्रति परिवार औसतन 5 से 6 हजार की सब्जियाँ प्रतिवर्ष बेचते हैं।

नैनीताल जिले के रामगढ़ ब्लॉक में समुद्र तल से 1600-1700 मीटर ऊँचाई पर बसा है-कफलाड़ गाँव। गाँव के पहाड़ की चोटी पर स्थित होने के कारण इस गाँव में जल स्रोतों की कमी है जिससे वर्ष भर जल संकट बना रहता है।

इस गांव के ऊपर की भूमि में अनेक परम्परागत खाल विद्यमान हैं। इन खालों का निर्माण पीढ़ियों पूर्व गाँव के पूर्वजों ने किया था जिनका रख-रखाव आज भी ग्रामवासी करते आ रहे हैं।

इन खालों की नियमित सफाई व रख-रखाव के कारण इनमें वर्ष भर पानी रहता है। गाँव में इन खालों को लेकर यह कहावत प्रचलित है कि इन खालों में पानी कभी नहीं सूखता क्योंकि खालों का पानी सूखने से पहले ही वर्षा हो जाती है।
क्या हो उत्तराखंड विकास का मॉडल
Posted on 12 Jul, 2014 01:33 PM उत्तराखंड की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर विकास की नीतियां बनाई जाने की जरूरत है। उत्तराखंड में कोई भी विकास की योजना वहां को लोगों, वहां के पेड़, भू-भौतिकी और इकोलॉजी को ध्यान में रखकर ही बननी चाहिए। पर जो वर्तमान विकास का मॉडल अपनाया गया है, वह विनाशकारी साबित हो रहा है। पहाड़ों में विनाशकारी त्रासदियों का बढ़ना दुखदायी तो है ही, साथ ही उत्तराखंड के नीति-निर्माताओं पर सवाल भी खड़े करता है।
टूट कर ही बनते हैं पहाड़
Posted on 12 Jul, 2014 12:52 PM पहाड़ पर आई है आपदा
और मैं नही हूं इससे विचलित
पहाड़ पर आपदा दरअसल एक गति है।
ठहराव के खिलाफ रहे हैं पहाड़
वे बनते-टूटते-बिखरते-जुड़ते ही पहाड़ हो पाते हैं।
पहाड़ नहीं खींचे जा सकते सपाट लकीरों में
पहाड़ों की नहीं हो सकतीं मनचाही गोलाइयां।

पहाड़ तोड़ते ही आये हैं
अपनी ऊचाइयों को
बहते-फिसलते ही रहे पानी की तेज धाराओं में घुलकर।
पर्वतीय कृषि: भूमि की उत्पादकता का कैसे हो अधिक सदुपयोग
Posted on 07 Dec, 2010 03:15 PM


मडुआ, गहत, पहाड़ी आलू, भट्ट, पहाड़ी गाय का दूध, घी और गौमूत्र आदि पहाड़ी उत्पादों ने बाजार में अपना प्रभुत्व जमाना आरम्भ कर दिया है। अब चुनौती है कि इनके उत्पादन को किस प्रकार आगे बढ़ाया जाये।

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