भोपाल। भोपाल की ऐतिहासिक विरासत, बावड़ियां बदहाल हो रही हैं। इन जलस्त्रोतों की सुध लेने वाला कोई नहीं। सरकार और स्थानीय प्रशासन राजधानी में पेयजल के लिए इधर-उधर हाथ-पैर मार रहे हैं लेकिन नाक के नीचे इन धरोहरों को अनदेखा किया जा रहा है।
भोपाल की अमूल्य धरोहरें बदहाल हैं। इन्हें कोई देखने वाला और सुध लेने वाला नहीं। ये हैं बेशकीमती बावड़ियां जो नवाबकालीन हैं। इन्होंने अब तक हमें सिर्फ दिया ही दिया है। अभी भी ये मौन हैं लेकिन समय की दरकार है कि हम अपनी संवेदनाओं को समेटें, चिंता की लकीरें उस शरीर पर लाएं जिसे इन बावड़ियों ने सींचा है।
भोपाल में इस समय करीब 10 बावड़ियां जिंदा हैं। हालांकि आज से पचास साल पहले तक इनकी संख्या कहीं ज्यादा थी। इनकी क्षमता इतनी कि न केवल उस दौर की पूरी आबादी का गला तर करतीं बल्कि बाग-बगीचों को भी इनसे ही सींचा जाता। लेकिन आज ये बदहाल हैं।
भोपाल के नवाब खानदान ने रियासतकाल में अपनी और आम जनता के पेयजल प्रबंधन के लिए कई सदाबहार, सदानीरा कुओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया। इन बावड़ियों को इस खूबसूरती से बनवाया जाता था कि इनका उपयोग केवल पानी के लिए ही नहीं, गर्मियों के दिनों में रहने के लिए भी किया जा सके। आमतौर पर सभी बावड़ियों की स्थापत्य कला मुगलकालीन शैली से प्रभावित दिखाई देती हैं। मेहराबों और स्तंभों पर की गई नकाशी अतिआकर्षक है।
ऐतिहासिक बावड़ियां
* नवी बाग स्थित सबसे पुरानी बावड़ी
* बैरसिया रोड पर इस्लाम नगर वाले मोड़ से किले के बीच रास्ते में पड़ती है एक ऐतिहासिक बावड़ी
* बड़े बाग की खूबसूरत बावड़ी
* बाग फरत अफजा की बावड़ी
* ऐशबाग स्टेडियम के पास बाग फरत अफजा की बावड़ी
* बाग उमराव दुल्लाह की बावड़ी
* गिन्नौर गढ़ किले में हैं 4 बावड़ियां
* रायसेन किले में हैं दो बड़ी और एक छोटी बावड़ी
शहर की बेसिक जियोग्राफी हैं ये
लेखक पद्मश्री मंजूर एहतेशाम का कहना है कि असल में किसी भी शहर की एक बेसिक जियोग्राफी होती है। अगर यह कहा जाए कि वही उस शहर की पहचान भी होती है तो कुछ गलत नहीं होगा। अगर प्लान करने वाले इस गुण को देखकर योजनाएं बनाएं तो बेहतर होगा। इससे ऐतिहासिक महत्व की धरोहरें सुरक्षित होंगी, वहीं शहर का विकास भी समग्र तरीके से हो सकेगा। बावड़ियों का एक विकल्प के रूप में उपयोग किया जा सकता था। भारत टॉकीज से कुछ दूरी पर एक जमाने में पांच बावड़ियां ऐसी थीं जिन में लोग नहाया करते थे। लेकिन आज वे अपना अस्तित्व खो चुकी हैं। उनको चुन दिया गया है। इनमें से ही एक थी- विलायत दादा की बावड़ी। इस बावड़ी पर मैंने एक कहानी भी लिखी है।
जल संकट में बावड़ियां ही करेंगी उद्धार
रॉयल जर्नी ऑफ भोपाल के लेखक सैयद अख्तर हुसैन का कहना है कि बावड़ियां सदियों से भोपाल की रिवायत का हिस्सा रही हैं। रियासतकाल में शाही खानदान के साथ आम जनता भी इन्हीं के माध्यम से गला तर किया करती थी। इनके निर्माण में शिल्प कला के साथ जो तकनीक इस्तेमाल की गई, उसी का कमाल है कि आज भी इनमें लबालब पानी है। सरकार और स्थानीय प्रशासन के सामने जो गंभीर जल संकट है से निबटने के लिए बावड़ियां और कुएं मददगार साबित हो सकते हैं। ऐसे में सालों से जिन बावड़ियों का पानी इस्तेमाल नहीं होने और कचरा-गंदगी डालने के कारण प्रदूष्ति हो चुका है, उनको साफ करवाना चाहिए। पावरफुल पंप के जरिए इनको खाली करवाया जाए। यहां जमी गाद के कारण बंद हो चुकी पानी की झिरों को भी होरीजोंटल बोरिंग से खुलवाया और बड़ा करवाया जाए। चूंकि आजकल ड्रेनेज के कारण भूमिगत स्रोत भी प्रदूष्ति हो रहे हैं इसके लिए बावड़ी के पानी का नगर निगम की प्रयोगशाला में बैटीरिया और केमिकल टेस्ट करवा कर शुद्धता सुनिश्चित कर ली जाए। पूरी तरह से पुष्टि होने के बाद जिन क्षेत्रों में बावड़ियां हैं की मुख्य लाइन से इनको जोड़ दिया जाए।
ग्राउंड वॉटर हार्वेस्टिंग का नायाब नमूना
दुर्दशा 1: भोपाल की 8वीं नवाब गौहर बेगम कुदसिया (1819-1937) द्वारा आबाद लाल पत्थरों से बनी तीन मंजिला बावड़ी देख-रेख के अभाव में अपना सौंदर्य खो रही है। भोपाल टॉकीज चौराहे के पास बड़ा बाग में स्थित ऐतिहासिक महत्व की यह बावड़ी नवाबी दौर की स्थापत्य कला का नायाब नमूना है।
बड़ा बाग की बावड़ी का लुट रहा सौंदर्य
लाल पत्थरों से निर्मित यह बावड़ी तीन मंजिलों में बनी है। यह बावड़ी कचरा डालने के कारण प्रदूषित हो चुकी है। बावड़ी से कुछ साल पहले तक आसपास के क्षेत्र में जल आपूर्ति होती थी। जल आपूर्ति के लिए बावड़ी और आसपास बिछाई गई पाइप लाइन आज भी दिखाई देती है। भोपाल के तीन नवाबों की कब्रें भी बड़ा बाग में हैं।
दुर्दशा 2: नवाब शाहजहां बेगम के कार्यकाल में बनवाई गई यह बावड़ी ऐतिहासिक महत्व की है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि यहां पर एक खूबसूरत और आलीशान बाग हुआ करता था। बाग तो खत्म हुआ ही साथ ही बावड़ी भी दुर्दशा का शिकार हो रही है।
बाग उमराव दुल्लाह की बावड़ी अतिक्रमण की शिकार
बाग उमराव दुल्लाह की बावड़ी के आसपास लोगों ने अतिक्रमण कर लिया है। कुछ अतिक्रमण तो इतने खतरनाक है कि वहां के निर्माण ने बावड़ी की शल ही बिगाड़ दी है। यहां हुए निर्माण के लिए भी बावड़ी का ही पानी इस्तेमाल किया गया है। उधर नगर निगम की लापरवाही और अनदेखी के चलते इसका पानी प्रदूष्ति हो चुका है। कई सालों से इसमें जमीं गाद नहीं निकालने के कारण झिरें बंद हो चुकी हैं और पानी की आव खत्म हो गई।
दुर्दशा 3: ऐशबाग क्षेत्र में स्थित बाग फरत अफजा बस नाम के लिए ही बाग रह गया है। जिस खूबसूरत बाग के नाम पर यहां का नाम मशहूर है वो तो कब का खत्म हो चुका, वहीं नवाबी दौर की पहचान ऐतिहासिक बावड़ियां भी संकट में हैं। रहवासियों की शिकायत है कि ड्रेनेज का गंदा पानी भी मिल रहा है।
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