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विकास की बलि चढ़ते मैंग्रोव वन
Posted on 24 Aug, 2011 10:31 AM अपनी खास वनस्पतियों और जलीय विशेषताओं के कारण पहचाने जाने वाले मैंग्रोव वन कुछ ही दशकों में मिट सकते हैं। यह आकलन अमेरिकी शोधकर्ताओं के एक दल का है।
सुनामी जैसे आपदा से बचाने वाला मैंग्रोव वन अब विकास की बलि चढ़ रहा है
मछलियों का प्रणय संसार
Posted on 23 Aug, 2011 02:22 PM

विभिन्न प्रकार की मछलियों के परस्पर संभोग से पैदा होने वाली पीढ़ी को जो रूप-रंग प्राप्त होता है

ई-कोलाई से कैसे हो मुकाबला
Posted on 23 Aug, 2011 01:27 PM

पिछले दिनों विश्व ने एक छोटे से बैक्टीरिया एंटेरोहेमोरेजिक एशेरिकिया कोलाई के आंतक के साये में लगभग पन्द्रह दिन मौत के खौफ से जूझते हुए बिताए, खासतौर पर यूरोपीय देशों में यह दहशत जमकर बरसी, क्योंकि इस जीवाणु ने सिर्फ 8000 से अधिक लोगों को अस्पताल तक ही नहीं पहुंचाया बल्कि अपनी धमाकेदार आमद से पूरे यूरोप और दुनिया के वैज्ञानिकों को चेता दिया कि इलाज ढूंढ़ने से पहले वह कहीं भी कभी भी कहर बरपाने म

ई-कोलाई बैक्टीरिया से बढ़ता खतरा
पतित पावनी गंगा और काइली का ‘कचराघर’
Posted on 13 Aug, 2011 06:35 PM

आस्ट्रेलिया के 2डे एफएम रेडियो की एंकर काइली सैंडिलैंड्स के पिछले दिनों भारत की राष्ट्रीय नदी गंगा को कचराघर कहने से हंगामा मचा गया। मामले की गंभीरतर भांपते हुए सिडनी शहर में स्थित 2डे एफएम रेडियो स्टेशन और काइली ने गंगा को कचराघर कहने के मामले में अपनी गलती स्वीकार करते हुए माफी मांग ली।

आस्ट्रेलिया के 2डे एफएम रेडियो की एंकर काइली सैंडिलैंड्स के पिछले दिनों भारत की राष्ट्रीय नदी गंगा को कचराघर कहने से हंगामा मचा गया। मामले की गंभीरतर भांपते हुए सिडनी शहर में स्थित 2डे एफएम रेडियो स्टेशन और काइली ने गंगा को कचराघर कहने के मामले में अपनी गलती स्वीकार करते हुए माफी मांग ली। जन्म से मरण तक अनेक रूप् में गंगा भारतीय जनमानस से इस तरह जुड़ी हैं कि आदरभाव से उन्हें मैया कहा जाता है।

काइली ने पतित पावनी गंगा को कचराघर कहकर लाखों-करोड़ों हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। ये कड़वी सच्चाई है कि अपनी मूर्तिवत् स्थिति और धार्मिक धरोहर के बावजूद आज गंगा प्रदूशण-संबंधी भारी दबावों का सामना कर रही है और इसकी जैव-विविधता तथा पर्यावरण-संबंधी व्यावहारिकता (सस्टेनबिलिटी)

पर्यावरण बनाम विकास
Posted on 08 Aug, 2011 02:27 PM

इस तेजी से बदलती दुनिया के सामने आज जो कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं उसमें पर्यावरणीय संकट सबसे महत्वपूर्ण है। इस समस्या ने मानवीय अस्तित्व को संकट में डाल दिया है। मौजूदा विकास की गति और स्वरूप ने पर्यावरणीय संसाधनों के ऊपर भारी दबाव डाला है। पर्यावरणीय संकट और अनिश्चितताओं के मद्देनजर दुनिया भर में जिस प्रकार के प्रयास किए जा रहे है उसमे ईमानदारी और समस्या के जड़ में जाने का घोर अभाव दिखता है।

एक सवारी भविष्य के लिए
Posted on 08 Aug, 2011 02:09 PM

पर्यावरण और सेहत के लिए फ़ायदेमंद साइकिल की सामुदायिक संस्कृति कई देशों में बहुत लोकप्रिय है लेकिन भारत में योजना बनने के बावजूद उस पर अमल होना कठिन लगता है। अगर शहरों में रहने वाले पांच प्रतिशत लोग भी रोजाना की भागदौड़ में साइकिल का इस्तेमाल करें तो साल में पांच हजार करोड़ रुपये का पेट्रोलियम बचाया जा सकता है और इस तरह तकरीबन 200 लाख टन ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन रोका जा सकता है।' यह केंद्रीय

साइकिल की सवारी पर्यावरण के लिए बेहतर
एक कदम आगे दो कदम पीछे
Posted on 04 Aug, 2011 12:19 PM

कानकुन जलवायु सम्मेलन

 

''हमारे मौसम की कुंजी - कार्बन डाइ ऑक्साइड''
Posted on 03 Aug, 2011 12:46 PM

वायुमंडल में इसकी मात्रा बढ़ जाए तो यह हमारी दुश्मन साबित होगी। लिहाजा दोस्त को दोस्त बनाए रखने

कोप 16 : कानकुन जलवायु सम्मेलन
Posted on 03 Aug, 2011 10:28 AM

मेक्सिको के कानकुन में हुआ 16वां जलवायु परिवर्तन विषयक सम्मेलन अमेरिका और विकसित मुल्कों के अड़ियल रवैये के चलते बिना किसी ठोस नतीजे के खत्म हो गया। बीते साल कोपेनहेगन में हुए सम्मेलन की तरह यहां भी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती को लेकर विकसित और विकासशील मुल्कों के बीच कोई आम सहमति नहीं बन पाई। सम्मेलन शुरू होने के पहले हालांकि यह उम्मीद की जा रही थी कि विकसित मुल्क इस मर्तबा उत्सर्जन

कूड़े के ढेर में बदलता लद्दाख
Posted on 03 Aug, 2011 10:01 AM

लेकिन अब धीरे-धीरे हालात में परिवर्तन आ रहा है। कभी स्वच्छता का प्रतीक लद्दाख में अब गंदगी का

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