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हर दिन हो पर्यावरण दिवस
Posted on 12 Sep, 2011 01:23 PM

सभी देशों की परिस्थिति एक जैसी नही होने के कारण पर्यावरण अपने अस्तित्व को दिन प्रतिदिन खोता जा

मैंग्रोव वनों से रुकेंगी सूनामी लहरें
Posted on 10 Sep, 2011 04:22 PM

जापान में सूनामी के बाद पैदा हुए फुकुशिमा संकट ने दुनिया भर में जहां परमाणु संयंत्रों के सुरक्षा इंतजामों पर बहस खड़ी की है, वहीं ऐसे हादसों के खिलाफ प्राकृतिक उपायों को मजबूत करने की मांग भी उठने लगी है। अब यह साफ तौर पर नजर आने लगा है कि ग्लोबल वॉर्मिंग, पर्यावरण के असंतुलन और जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाओं में बढ़ोतरी हो रही है और ये आपदाएं अब पहले की तुलना में ज्यादा विनाशकारी साब

प्रकृति के रक्षक मैंग्रोव वन
पृथ्वी से बाहर आशियाने की तलाश
Posted on 10 Sep, 2011 12:07 PM

जापान की ओसाका यूनिवसिर्टी के वैज्ञानिक ताकाहिरो सुमी ने किया है। इस टीम द्वारा की गई गणनाओं के

कानून से असहमति का अर्थ उसका अपमान नहीं
Posted on 10 Sep, 2011 11:38 AM

(नागरिक अवज्ञा आंदोलन पर अमेरिकी पर्यावरण कार्यकर्ता टिम डेक्रिस्टोफर का वक्तव्य)


(वेस्ट वर्जिनिया के रहने वाले टिम डेक्रिस्टोफर पर्यावरण न्याय के लिए सक्रिय संगठन 'पीसफुल अपरायजिंग' से जुड़े हैं। पर्यावरण न्याय का मतलब है नदियां, पहाड़, जंगल आदि के साथ होने वाले गैरकानूनी व्यवहार को रोकना। नदियों को गंदा करना, जंगल को काटना या वहां अवैध खनन उनके साथ अन्याय है। अनेक पर्यावरणवादी यह अन्याय बंद कराने के लिए संघर्षरत हैं। जैसे हरिद्वार के निगमानंद ने गंगा के इलाके में अवैध खनन के खिलाफ आमरण अनशन करते हुए अपनी जान दे दी। टिम डेक्रिस्टोफर ने देखा कि वेस्ट वर्जिनिया में पहाड़ों व जंगलों को तेजी के साथ कार्पोरेट सेक्टर के हवाले किया जा रहा है।

पानी की सियासत
Posted on 10 Sep, 2011 10:53 AM

नदी परियोजना को एक राष्ट्रीय परियोजना स्वीकार जरूर कर लिया, लेकिन इसके बावजूद उसने कुछ नहीं किय

एक तिनके से आई क्रांति
Posted on 09 Sep, 2011 01:54 PM

अब एक बार फिर से अधिक खाद बनाओ अभियान शुरू हुआ है। केंचुओं और ‘खाद प्रारंभकों’ की मदद से ज्याद

युद्ध और शांति से मुक्त एक गांव
Posted on 09 Sep, 2011 01:23 PM

आंधी-तूफान के समय किसी बड़े दरख्त के नीचे खड़े रहने से ज्यादा खतरनाक और कोई अन्य चीज नहीं हो स

सापेक्षता का सिद्धांत
Posted on 09 Sep, 2011 12:53 PM

प्रकृति में सापेक्षता की दुनिया का अस्तित्व ही नहीं है। सापेक्षता के विचार द्वारा मानव के बुद्

यायावर बादल और विज्ञान का भ्रम
Posted on 09 Sep, 2011 12:35 PM

अपने खेतों के जरिए मैंने कर दिखलाया कि प्राकृतिक कृषि के जरिए भी उतनी ही पैदावार ली जा सकती है

हम जन्म लेते हैं, नर्सरी स्कूल जाने के लिए
Posted on 09 Sep, 2011 11:24 AM हम खेतों में काम कर रहे थे।

एक युवक अपने कंधे पर झोला लटकाए बड़े इत्मीनान से वहां चला आया।
‘तुम कहां से आए हो?’
‘वहां उधर से।’
‘यहां तक पहुंचे कैसे?’
‘चल कर आया हूं।’
‘यहां किसके लिए आए हो?’
‘मैं नहीं जानता।’