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मौत के मुहाने पर पहुंच गया है शम्शी तालाब
Posted on 26 Jul, 2012 01:52 PM दिल्ली सरकार और प्रशासन की लापरवाही के चलते महरौली में एक हजार साल पुराना ऐतिहासिक शम्शी तालाब लगातार धीमी मौत मर रहा है। किसी समय यही तालाब यहां के दर्जनों गांवों के लोगों की पानी संबंधी जरूरतों को पूरा करता था। मवेशियों की प्यास बुझाता था और जमीन के जल स्तर को दुरुस्त रखता था, लेकिन यहां सक्रिय भूमाफियाओं की कारगुजारियों के चलते यह तालाब लगातार सूखता और सिकुड़ता जा रहा है। महरौली का सारा इलाका अ
उपेक्षा का शिकार शम्शी तालाब
बारिश का क्या फायदा, जब फसल सूख गई
Posted on 26 Jul, 2012 10:02 AM बारिश की देरी ने राजस्थान, महाराष्ट्र और कर्नाटक आदि में मोटे अनाजों की बुआई पर असर डाला है। अपर्याप्त बारिश इस चिंता को बढ़ा रही है कि गर्मियों में बोई जाने वाली प्रधान फसलों जैसे चावल, तिलहन और गन्ने का उत्पादन पिछले एक-दो सालों में बनाये अपने रिकॉर्ड स्तर से गिर जायेगा। बारिश हर बार नए मुहावरे लेकर आती है। अखबारों में इसके लिए शेरो-शायरी नहीं, बल्कि आशंका से भरी हेडलाइन्स की भरमार होती है। 7
सूखे की आशंका और उससे आगे
Posted on 26 Jul, 2012 09:00 AM सूखे की आहट किसानों तथा देश के लिए एक बुरी खबर है। इससे खाद्यान्न संकट तो होगा ही मंहगाई भी अपने चरम सीमा पर होगी। इतिहास में सूखे और अकाल की दिल दहलाने वाली दास्तानों की कमी नहीं है। अकाल का सीधा संबंध ही वर्षा होता है। सरकारी नीतियां वर्षा की भरपाई नहीं कर सकतीं लेकिन इससे प्रभावित लोगों को सहायता देकर उनकी मुश्किलें थोड़ा कम कर सकती हैं। सूखे से होने वाले संकट को रूबरू कराते देविंदर शर्मा।
कारों का होता डीजलीकरण देश को महंगा पड़ेगा
Posted on 25 Jul, 2012 05:06 PM जबसे सरकार ने पेट्रोल कीमतों पर अनुदान कम किया और उसे नियंत्रण मुक्त रखा तब से कारों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हो रही है। इस समय देश की जनसंख्या की वृद्धि दर में कमी आई है लेकिन कारों की संख्या में विस्फोट हुआ है। डीजल कारें देश की कुल डीजल खपत का 15 फीसदी निगल रही हैं और ट्रकों के बाद दूसरे नंबर का डीजल उपभोक्ता बन गयी हैं। बढ़ रहे कारों के डीजलीकरण के बारे में बता रहे हैं सुनील।
डीजल
खुले में गेहूं सड़ाने का खेल
Posted on 24 Jul, 2012 03:21 PM भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां अनाज की उत्पादन काफी मात्रा में किया जाता है। फिर भी कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या विश्व में सबसे अधिक हो गई है। विश्व में भूख से त्रस्त 81 देशों में भारत 67वें स्थान पर पहुंच गया है। इस समय देश के गोदामों में लगभग 640 लाख टन अनाज रखा है। इस वर्ष खाद्यान्न की भरपूर पैदावार हुई है। लगभग 170 लाख टन और आने वाला है। सरकार की भंडारण क्षमता केवल 450 लाख टन की ह
वनाधिकार पर आयोजित सम्मेलन
Posted on 24 Jul, 2012 12:36 PM अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परम्परागत वनसमुदाय (वनाधिकारों को मान्यता) कानून 2006 के प्रभावी क्रियान्वन के लिए वनाश्रित समुदायों के प्रतिनिधियों के साथ राजनैतिक पहल करने के लिए राज्य सभा व लोकसभा के सांसदों के साथ एक वार्ता 23 जुलाई 2012, डिप्टी स्पीकर हाल, कांस्टीटयुशन कल्ब, नई दिल्ली, सांय 4 से 7 बजे में राष्ट्रीय वनजन श्रमजीवी मंच द्वारा आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में राज्य सभा के सदस्य जनता दल
वनाधिकार पर आयोजित सम्मेलन में भाग लेते प्रबुद्धजन
कमजोर मानसून से सूखे की आशंका
Posted on 24 Jul, 2012 11:40 AM इस बार कमजोर मानसून की वजह से सूखे की आशंका ने किसानों की मुसीबत बढ़ा दी है। जुलाई का तीसरा हफ्ता बीत गया लेकिन बारिश का कोई आसार नहीं है। इसका असर खेती और पीने के पानी पर दिखने लगा है। कमजोर मॉनसून की वजह से न सिर्फ खेती और जल प्रबंधन में दिक्कत आ रही है बल्कि खाने-पीने की चीजों की कीमतें भी बढ़ रही हैं। पिछले साल के मुकाबले इस बार 8 लाख हेक्टेयर क्षेत्र कम बुआई हुई है। इससे ज्वार बाजरा जैसे प
अकाल मंडराने लगा है
Posted on 23 Jul, 2012 03:38 PM शिवराम की एक कविता है अकाल। उसकी कुछ लाइनें हैं
‘रूठ जाते हैं बादल/ सूख जाती हैं नदियाँ /सूख जाते हैं पोखर-तालाब/ कुएँ-बावड़ी सब/ सूख जाती है पृथ्वी/ बहुत-बहुत भीतर तक / सूख जाती है हवा / आँखों की नमी सूख जाती है / हरे भरे वृक्ष / हो जाते हैं ठूँठ /डालियों से /सूखे पत्तों की तरह /झरने लगते हैं परिंदे/ कातर दृष्टि से देखती हैं /यहाँ-वहाँ लुढ़की / पशुओं की लाशें’
बांधों का दुराग्रह कहीं का न छोड़ेगा
Posted on 21 Jul, 2012 02:46 PM भारतीय लोकतंत्र की परिधि में विकास के नये मंदिर नहीं आते। चाहे सेज का मामला हो, चाहे लंबी चौड़ी सड़कें बनाना हो या किसी बड़े बांध का मामला हो कभी भी इन पर सवाल नहीं उठाया जाता। बड़ी परियोजनाओं में लोगों को अपने घर, खेती, पनघट, गोचर और जंगलों से हाथ धोना पड़ता है। बड़ी परियोजनाएं यानी बड़ी कंपनियां साथ ही प्राकृतिक संसाधनों का निजीकरण ही है। और यह प्रक्रिया दिन प्रतिदिन तेज होती जा रही है और जिसमें जनता का कोई रक्षक नहीं रह गया है। वर्तमान में उत्तराखंड सहित भारत के सभी पहाड़ी इलाकों में बांधों का दौर शुरू हो गया है। नदियां लगातार बांधी जा रही हैं। बांधों में ही पहाड़ की सभी समस्याओं का हल देख रहे लोग एक बड़े दुराग्रह का शिकार हैं बता रहे हैं शेखर पाठक।

विकास के बारे में अलग-अलग दृष्टिकोण हो सकते हैं और हर एक को अपनी बात कहने का जनतांत्रिक अधिकार है। इसलिए जीडी अग्रवाल, राजेंद्र सिंह और उनके साथियों, भरत झुनझुनवाला और श्रीमती झुनझुनवाला के साथ पिछले दिनों जो बदसलूकी हुई, वह सर्वथा निंदनीय है। यह हमला कुछ लोगों ने नियोजित तरीके से किया था। राजनीतिक पार्टियों का नजरिया बहुत सारे मामलों में एक जैसा हो गया है, पर विभिन्न समुदायों ने अभी अपनी तरह से सोचना नहीं छोड़ा है।
वन मिटा सकते हैं गरीबी
Posted on 20 Jul, 2012 03:43 PM

संयुक्त वन प्रबंधन का राष्ट्रीय स्तर पर कोई कानूनी ढांचा नहीं हैं, जिसके कारण स्थानीय ग्रामीण समुदायों में यह पू

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