खुले में गेहूं सड़ाने का खेल

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां अनाज की उत्पादन काफी मात्रा में किया जाता है। फिर भी कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या विश्व में सबसे अधिक हो गई है। विश्व में भूख से त्रस्त 81 देशों में भारत 67वें स्थान पर पहुंच गया है। इस समय देश के गोदामों में लगभग 640 लाख टन अनाज रखा है। इस वर्ष खाद्यान्न की भरपूर पैदावार हुई है। लगभग 170 लाख टन और आने वाला है। सरकार की भंडारण क्षमता केवल 450 लाख टन की है। लाखों टन अनाज गोदामों के बाहर खुले में रखा जाता है। गोदामों में सड़ते अनाजों के बारे में बता रहे हैं रंजन राजन।

देश में खाद्यान्न भंडारण की कुल क्षमता 6.38 करोड़ टन ही है, जबकि खाद्य मंत्रालय का अनुमान है कि आगामी 1 जून तक इस क्षमता से दो करोड़ टन अधिक अनाज सरकारी गोदामों में जमा हो जायेगा। जाहिर है, यह अनाज लंबे समय तक खुले में पड़ा रहेगा और फिर इसके सड़ने तथा चूहों द्वारा खा जाने के ‘खेल’ में सरकारी एजेंसियों के बहुत से अधिकारी मालामाल हो जायेंगे। दूसरी ओर, गेहूं की बंपर पैदावार के बावजूद कुछ कंपनियों ने आटा के भाव हाल में फिर बढ़ाकर इस बात के संकेत अभी से दे दिये हैं कि लोग भाव कम होने के मुगालते में न रहें।

‘भारत में खुले में सड़ रहा है लाखों टन गेहूं’ एक अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी द्वारा पिछले दिन जारी यह खबर कई देशों में प्रमुखता से प्रकाशित-प्रसारित हुई। दरअसल यह उनके लिए कौतूहल पैदा करने वाली खबर थी, क्योंकि उस देश से आयी थी जहां भुखमरी के शिकार दुनिया के सबसे ज्यादा लोग रहते हैं, जिसे वैश्विक भूख सूचकांक में 81 देशों की सूची में 67वें स्थान पर रखा गया है, जहां हर साल लाखों बच्चे कुपोषण के कारण दम तोड़ देते हैं। दूसरी ओर, आधुनिक भारतीय मीडिया में ऐसी खबरों को मुश्किल से जगह मिल पाती है। वह भी तब, जबकि भंडारण की समस्या को संसद में या किसी अन्य मंच पर उठाया जाता है। भारतीय मीडिया की खबरें पढ़-सुन कर अमूमन यही आभास होता है कि भारत एक ऐसा देश है जो दुनिया की रफ्तार से ज्यादा तेजी से विकास कर रहा है, जहां के लोग भारी महंगाई के बावजूद अमीर हो रहे हैं।

अपने यहां स्कूलों में बच्चों को विदेशी अर्थशास्त्री द्वारा प्रतिपादित यह सिद्धांत वर्षों से पढ़ाया जा रहा है कि बाजार में जब मांग ज्यादा और आपूर्ति कम होती है, तो दाम बढ़ते हैं। शायद यही कारण है कि बड़े होने पर जब उन्हें आटा-दाल का भाव पता चलता है, तब तक वे मानसिक रूप से इसके लिए तैयार हो चुके होते हैं कि महंगाई के मुद्दे पर उन्हें भरमाया जा सके। तभी तो हमारे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री जनता को बार-बार यह कहकर शांत करते रहे हैं कि महंगाई कम करना भगवान के हाथ में है, दुआ कीजिए कि मानसून की कृपा बरसे, ज्यादा अनाज उपजे, तब महंगाई अपने आप कम हो जायेगी। यह सिलसिला पिछले कई वर्षों से यूं ही चल रहा है, भारत में अनाज उत्पादन बढ़ रहा है, साथ में उछल रहे हैं आटा-दाल के भाव भी और लोग महंगाई कम होने का इंतजार कर रहे हैं।

अभी पिछले दिनों खाद्य मंत्री केवी थॉमस ने जानकारी दी कि देश में इस साल अनाज का कुल उत्पादन 25.3 करोड़ टन तक पहुंच जायेगा, जो पिछले साल के मुकाबले एक करोड़ टन अधिक है। खबरों के मुताबिक देश में खाद्यान्न भंडारण की कुल क्षमता 6.38 करोड़ टन ही है, जबकि खाद्य मंत्रालय का अनुमान है कि आगामी 1 जून तक इस क्षमता से दो करोड़ टन अधिक अनाज सरकारी गोदामों में जमा हो जायेगा। जाहिर है, यह अनाज लंबे समय तक खुले में पड़ा रहेगा और फिर इसके सड़ने तथा चूहों द्वारा खा जाने के ‘खेल’ में सरकारी एजेंसियों के बहुत से अधिकारी मालामाल हो जायेंगे। दूसरी ओर, गेहूं की बंपर पैदावार के बावजूद कुछ कंपनियों ने आटा के भाव हाल में फिर बढ़ाकर इस बात के संकेत अभी से दे दिये हैं कि लोग भाव कम होने के मुगालते में न रहें।

इसी बीच, लंदन स्थित द इंटरनेशनल ग्रेन काउंसिल ने अनुमान जताया है कि दुनिया में इस साल गेहूं का उत्पादन 67.6 करोड़ टन तक ही पहुंच पायेगा, जो पिछले साल के रिकार्ड 69.5 करोड़ टन से काफी कम है। तो क्या इस साल रोटी इस तर्क के साथ महंगी होगी कि विदेशों में उत्पादन कम हुआ है? भूख पूरी जिंदगी साथ चलने वाली एक ऐसी बीमारी है, जिसका इलाज केवल दोनों शाम भरपेट भोजन से ही हो सकता है। करोड़ों गरीबों को भरपेट भोजन तभी मिल सकता है, जब खाद्य पदार्थों की कीमतें उनकी पहुंच में होंगी।

यह पहुंच तब तक मुमकिन नहीं है, जब तक अनाज यूं ही बर्बाद होता रहेगा। फिर सरकार वर्षों से यह बर्बादी क्यों होने दे रही है? जब 11वीं योजना के अंत तक गेहूं का उत्पादन 80 लाख टन, चावल का एक करोड़ टन और दालों का 20 लाख टन बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया था, तो फिर इसे संभालने के लिए केवल कागजी कदम क्यों उठाये गये? क्यों सरकार महंगाई कम करने के नाम पर आयात में छूट देती है, लेकिन अपने अनाज को संभालने के इंतजाम नहीं कर पाती? क्यों वह सुप्रीम कोर्ट के इस सुझाव पर भी अमल नहीं करना चाहती कि अनाज सड़ाने की जगह उसे गरीबों में बांट दिया जाये? इन सवालों पर खुली बहस होनी चाहिए। भंडारण की समस्या के कारण अनाज की बर्बादी के मानवीय पहलू पर तो कभी- कभार चर्चा हो भी जाती है, लेकिन इस बर्बादी के कारण जिन्हें फायदा पहुंचता है, वे लोगों की निगाह में नहीं आ पाते।

बीते दिनों पंजाब विधानसभा में विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार जान-बूझकर अनाज सड़ने देती है और फिर वह कौड़ियों के भाव में शराब फैक्टरियों तक पहुंच जाता है। अनाज की यह स्थिति तब है, जबकि सरकार खाद्य सुरक्षा के नाम पर 3.5 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की तैयारी कर रही है। ऐसे में यह सवाल भी पूछा जाना चाहिए कि इन स्थितियों में खाद्य सुरक्षा का सपना सचमुच धरातल पर उतर पायेगा?

( लेखक प्रभात खबर से जुड़े हैं)

Path Alias

/articles/khaulae-maen-gaehauun-sadaanae-kaa-khaela

Post By: Hindi
×