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कमजोर मानसून के बाद
Posted on 08 Aug, 2012 09:28 AM

मौसम विभाग के हवाले से खबरें आ रही हैं कि मानसून कमजोर है। जून में मानसून की बारिश 31 फीसद कम हुई है। एक खबर के मुताबिक पिछले तीस सालों में इतना कमजोर मानसून कभी नहीं रहा। बाजार में खाने-पीने चीजों में महंगाई का तेज रुख शुरू हो गया है। कुछेक हफ्तों पहले जिन बाजारों में आलू-टमाटर 20 रुपये प्रति किलो मिल रहे थे, वो 30 रुपये प्रति किलो हो गए।

 

 

monsoon
नदी जोड़ से सिंचाई एक झूठ : एक साजिश
Posted on 07 Aug, 2012 03:53 PM जब से नदी जोड़ के नाम पर 5,60,000 करोड़ रुपये की हरियाली दिखाई देने लगी है, यह प्रश्न जानबूझकर बार-बार उठाया जाने लगा है। हालांकि जनता-जनार्दन ऐसी कोई मांग नहीं कर रही। फिर भी अपने को जनता के तथाकथित हितैषी बताने वाले ही कह रहे हैं कि यदि नदियां जोड़ दी जाएं तो कम से कम मानसून के विलंब या कमी की चिंता तो नहीं ही सताएगी। उनका यकीन है कि सौ बार दोहराने से झूठ भी सच हो जाता है; वे दोहराते रहेंगे।
talab
अकाल की आहट
Posted on 07 Aug, 2012 12:34 PM

मानसून और भारतीय कृषि का संबंध पारंपरिक है। पर हर बार होता यही है कि हमारी खेती और किसानी से जुड़ी पूरी अर्थव्यवस्था मानसून की मेहरबानी की मोहताज रहती है। जलवायु चक्र में बदलाव और देश की अर्थव्यवस्था के साथ जीवनशैली में आए पिछले कुछ दशकों के परिवर्तन ने इस मोहताजी के आगे के संकट भी सतह पर ला दिए हैं। यही कारण है कि मानसून की लेट-लतीफी से पैदा हुई समस्याओं और आशंकाओं ने प्रकृति के साथ हमारे स

drought in india
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए राष्ट्रीय पहल
Posted on 07 Aug, 2012 11:43 AM

जलवायु परिवर्तन से होने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए सभी किसानों को तैयार करना और अलग-अलग तरीकों से उनमें

गरीबी, मनरेगा और खाद्य सुरक्षा
Posted on 07 Aug, 2012 10:04 AM

मनरेगा के फंड का उपयोग महज 51 फीसद हो पाता है। जिन प्रदेशों में फंड का उपयोग सबसे कम होता है, वे हैं-बिहार, छत्त

रामकुमार भाई: खेती किसानी को समर्पित जीवन
Posted on 06 Aug, 2012 04:24 PM

सन् 1980 में निटाया में आयोजित 10 दिवसीय पर्यावरण शिविर में भी रामकुमार चौधरी प्रमुख कर्ताधर्ताओं में थे। इस शिव

कटते पेड़, जड़ से उखड़ता पर्यावरण
Posted on 06 Aug, 2012 11:56 AM

देश के कुल क्षेत्रफल के 23.81 फीसदी हिस्से पर जंगल हैं। वहीं, भारत सरकार का आंकड़ा कहता है कि हाल के वर्षों में 367 वर्ग किलोमीटर जंगल का सफाया कर दिया गया है। यह कुचक्र गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक के पूरे इलाके में चल रहा है। कहीं कारण प्राकतिक है तो कहीं मानव निर्मित। अगर कुछेक राज्यों को छोड़ दें तो कमोबेश इस हरियाली को बनाए रखने के लिए प्रति उदासीनता एक जैसी ही नजर आती है।

पर्यावरण से पृथ्वी का गहरा नाता है। इस रिश्ते की डोर को सबसे मजबूती से जिसने बांधे रखा है वे पेड़ हैं। लेकिन दरख्तों की बेहिसाब कटाई और कंक्रीट के जंगलों के बीच आज अगर हम छांव को तरसते हैं तो हैरानी नहीं होनी चाहिए क्योंकि इन हालातों के जनक भी हम ही हैं। प्रदेश में पेड़ लगाने का अभियान छेड़ने वाली समाजवादी पार्टी सरकार भी अब हरियाली को लेकर चिंतित दिखाई पड़ रही है। इसलिए बीते दिनों के आदेश में उन्होंने बेवजह पेड़ काटने और कटवाने वालों पर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। पर सरकार के इस आदेश पर अमल करने वाले महकमे की पड़ताल करें तो साफ होता है कि उसके पास सरकारी आदेश को जमीन पर उतारने के लिए कोई नीति और नीयत नहीं है। यही वजह है कि जब वन महकमे के हुक्मरानों से पेड़-पौधे लगाने के बाबत बातचीत की जाती है तब उनके दावे इतने बढ़-चढ़कर होते हैं कि उस पर सहसा विश्वास कर पाना आसान नहीं होता।
पुस्तक : क्यों नहीं नदी जोड़?
Posted on 03 Aug, 2012 03:27 PM क्यों नहीं नदी जोड़? शीला डागा की पुस्तक है। इस पुस्तक में नदी जोड़, इससे पैदा होने वाले विवाद, पानी की लूट, समाज, संस्कृति की टूटन और विकल्प के सभी पहलूओं को समेटा गया है। पर्यावरणीय खतरे व आर्थिक असमानता को बढ़ाने का नाम है नदी जोड़ परियोजना।

तरुण भारत संघ द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक की लेखिका का मानना है कि नदी जोड़ परियोजना भारत सरकार के नेताओं, बड़े प्रशासनिक अधिकारियों और अंतरराष्ट्रीय ताकतों की स्वार्थ-सिद्धि तथा भूगोल के विनाश का साधन बनने जा रहे हैं।

नदी जोड़ परियोजना परिचय


नदी जोड़ परियोजना भारत की नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजना है। इसके अंतर्गत जहां बाढ़ आती हो, वहां का पानी....वहां की नदियों पर बांध बनाकर नहरों द्वारा सूखे क्षेत्रों की उन नदियों में ले जाया जायेगा, जिनमें पानी कम होगा।
Ken-Betwa River Linking Project
कृषि जागरूकता की अधूरी पहल
Posted on 01 Aug, 2012 05:19 PM

राज्य सरकारें भी कृषि को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाओं की घोषणा करती रही है। परंतु यह योजनाएं जो एक पहल के

रूठे मानसून की देश को चुनौती
Posted on 31 Jul, 2012 10:30 AM

तपती और फटती धरती को तो वर्षा की फुहारें ही राहत दे सकती हैं। बारिश के अभाव में गर्मी से लोगों की छटपटहाट और इसक

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