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कावेरी : लहर में जहर
Posted on 20 Apr, 2013 04:21 PM पौराणिक कथाओं में कुर्गी-अन्नपूर्णा, कर्नाटक की भागीरथी और तमिलनाडु में पौन्नई यानी स्वर्ण-सरिता कहलाने वाली कावेरी नदी के पानी के बंटवारे को लेकर विवाद से तो सभी परिचित हैं लेकिन इस बात की किसी को परवाह नहीं है कि यदि इसमें घुलते जहर पर तत्काल ध्यान नहीं दिया गया तो जल्दी ही हालात काबू से बाहर हो जाएंगे। दक्षिण की जीवन रेखा कही जाने वाली इस नदी में कहीं कारखाने का रसायन-युक्त पानी मिल रहा है तो क
Kaveri
निपटारे का तरीका गलत
Posted on 19 Apr, 2013 11:05 AM प्लास्टिक कचरे के निस्तारण का दिल्ली में सही तरीका प्रयोग नहीं किया जाता है। जो भी यूनिटें लगी हैं वे काफी छोटी हैं, जिससे इसका निस्तारण पूरी तरह नहीं हो पाता है। सबसे ज्यादा परेशानी छोटे-छोटे प्लास्टिक बैग से होती है। मानक से कम वाले ये प्लास्टिक बैग ही मुसीबत की असली जड़ हैं। इससे प्लास्टिक का ऐसा कचरा पैदा होता है जो न तो एकत्र किया जा सकता है और न ही इन्हें जलाने से कुछ लाभ मिलता है। इन पर पूर
पर्यावरण का होता कचरा
Posted on 19 Apr, 2013 11:00 AM एक आविष्कार को उसकी लोकप्रियता ही कैसी ग्रस लेती है, प्लास्टिक के इस्तेमाल और ख़तरों को लेकर यह बात बखूबी समझी जा सकती है। खासतौर पर शहरों में प्लास्टिक ने जीवन को जितना आसान नहीं बनाया है, उससे ज्यादा दुश्वारियां पैदा कर दी हैं। प्लास्टिक कचरे के बढ़ते खतरे को सुप्रीम कोर्ट ने भी गंभीरता से लिया है। इसी पर पुनीत तिवारी और राजीव सिन्हा का फोकस
बांधों की निगरानी
Posted on 18 Apr, 2013 03:15 PM मंत्रालय ने ये भी नहीं देखा कि टिहरी बांध परियोजना के नीचे गंगा का क्या हाल है? नीचे भागीरथी गंगा को मक डालने का क्षेत्र बनाया हुआ है। पहले से ही सूखती-भरती गंगा की स्थिति और पारिस्थितिकी बर्बाद हुई। उर्जा मंत्रालय ने भी कभी पलट कर नहीं देखा। अलकनंदा गंगा पर विष्णुप्रयाग जविप राज्य का पहला निजी बांध है। इसकी सुरंग के कारण से धसके चाई गांव के लोगो में न तो सबको ज़मीन मिली न समुचित मुआवजा कि वे अपना मकान बना सके। सरकार ने रुड़की यूनिवर्सिटी से इस बात की जांच करवाई की उनके मकान परियोजना के कारण धंसे या प्राकृतिक आपदा की वजह से। केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के कई विभाग हैं जिसमें आई. ए. डिविजन यानि प्रभाव आकलन, बड़ा ही प्रमुख विभाग है। उसका काम है कि विभिन्न परियोजनाओं के पर्यावरणीय असरों की निगरानी करना। किसी भी परियोजना को पहले मंत्रालय से पर्यावरण स्वीकृति और वन स्वीकृति लेनी पड़ती है। दोनों ही वास्तव में मज़ाक जैसे हो गये है क्योंकि ये पत्र जारी करने के बाद पर्यावरण मंत्रालय ने कभी अपनी दी गई इन स्वीकृतियों के पालन का कोई संज्ञान नही लिया। पर्यावरण मंत्रालय के लखनऊ स्थित क्षेत्रीय कार्यालय में सिर्फ चार-पांच कर्मचारी हैं। जिन पर हजारों परियोजनाएं देखने की ज़िम्मेदारी है। समझा जा सकता है कि वे कितनी निगरानी कर पाते होंगे। लोहारीनाग पाला जविप भागीरथीगंगा पर आज की तारीख में बंद है। माटू जनसंगठन की जांच से मालूम पड़ा जिस समय सुरंग से मक निकाली जाती थी तो उसे पहाड़ पर जहां-तहां और गंगा में भी सीधे भी फेंका गया। इसके चित्र लेखक के पास मौजूद है। वहां पर काम कर रही पटेल कंपनी पर बहुत बड़ा प्रश्न भी आया उसकी जांच की भी बात आई। मक को सड़क के किनारे डाला गया जिससे रास्ता कम हुआ और मई 2008 में कम रास्ते के कारण बस गंगा में गिरी।
जल के विभिन्न स्रोतों का चिकित्सीय स्वरूप
Posted on 16 Apr, 2013 02:55 PM जिस स्थान पर कम मात्रा में पानी तथा वृक्षादि हो वहां का मानव पित्त
जल जन जोड़ो अभियान अवधारणा पत्र
Posted on 16 Apr, 2013 12:18 PM तारीख : 18-19 अप्रैल 2013
स्थान : गांधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली


लक्ष्य


1. सभी को पेयजल सुरक्षा व जरूरत पूरी करना, जीविकोपार्जन से जूझते जलवायु परिवर्तन की मार से बचाने वाले संसाधन संवर्द्धन में लगा कर समता मूलक, शोषण, प्रदूषण, अतिक्रमण मुक्त समाज निर्माण की तरफ अग्रसर होने वाली परिवर्तन प्रक्रिया शुरू करना है।

उदे्दश्य


1. जीविकोपार्जन से जूझने वालों के परंपरागत जल स्रोतों पर अधिकार दिलाने तथा ताल-पाल झीलों को पुनर्जीवित करने वाली जुम्बिश पैदा करना।
2. भारत के सभी राज्यों में एक आदर्श सामुदायिक जल स्रोतों की स्थानीय सामुदायिक विकेन्द्रित प्रबंधन प्रक्रिया इकाई निर्माण करना।
3. जल साक्षरता, जलाधिकार, सामुदायिक जल प्रबंधन की वकालत करने वाली नीति और नियम निर्माण की सरकारी प्रक्रिया आरम्भ करने वाले प्रत्येक राज्य में जल संदर्भ केन्द्र निर्माण करना।
सूखे के जवाब में ‘जन-जल जोड़ो’
Posted on 16 Apr, 2013 11:10 AM कर्नाटक, आंशिक तमिलनाडु, आंध प्रदेश, गुजरात...
drought
प्रकृति
Posted on 16 Apr, 2013 09:27 AM
एक पेड़ था बहुत बड़ा
और अपनी अनोखी छाया से भरा
जितनी सुंदर उसकी काया
उतनी अद्भुत उसकी माया
गाँवों से ज्यादा शहरों में जल संरक्षण साक्षरता की जरूरत
Posted on 15 Apr, 2013 04:13 PM पानी साक्षरता की जरूरत गाँवों की बजाए शहरों में ज्यादा है। लिहाजा अब नई आवाज़, नए संवाद शुरू करने की जरूरत है। शिक्षकों, पत्रकारों और नेताओं के साथ-साथ आम जन को पानी के मसले से जोड़ना होगा। तरुण भारत संघ के अगुआ राजेंद्र सिंह ने यह विचार रखे। उन्होंने कहा कि इसी मकसद से जल्दी ही दिल्ली में जल जन जोड़ो अभियान शुरू किया जाएगा। इसका आगाज राष्ट्रीय रणनीति योजना संगोष्ठी के साथ 18 अप्रैल को होगा। दो दिन की इस गोष्ठी में देश भर में पानी के संरक्षण व संवर्धन पर काम कर रहे लोग भी शरीक होंगे। वे पानी के विकेंद्रित और आत्मनिर्भर व्यवस्था पर रोशनी डालेंगे। इसके तहत छोटी-छोटी फिल्मों के जरिए स्कूली बच्चों में पानी की अहमियत के प्रति समझ पैदा की जाएगी।
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