दिल्ली

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पानी के लिए तरसती रही दक्षिणी और पूर्वी दिल्ली
Posted on 19 May, 2013 02:58 PM शनिवार को भी दर्जन भर इलाकों में रही पानी की भारी किल्लत, लोगों ने झेली मुसीबत, जहां पानी आया वहां भी रहा दबाव कम
जहरीले हो चुके हैं दिल्ली के तालाब
Posted on 19 May, 2013 01:29 PM खतरनाक स्तर तक नीचे आ चुके ग्राउंड वाटर का असर अब दिल्ली के तालाब पर भी पड़ने लगा है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली की पचास फीसदी से ज्यादा तालाब, ताल-तलैया पूरी तरह से सूख गए हैं और जो बाकी बचे हैं उनमें से भी ज्यादातर का पानी जहरीला हो चुका है।
दक्षिणी और पूर्वी दिल्ली में पानी का संकट गहराया
Posted on 18 May, 2013 12:28 PM गंगा नहर के टूटने से दिल्ली के कई इलाकों में पानी की किल्लत, शाम के समय नहीं हो पाई पानी की सप्लाई
मानव द्वारा प्राकृतिक जल स्रोतों से छेड़छाड़ का परिणाम है कृत्रिम वर्षा जल संरक्षण
Posted on 18 May, 2013 11:55 AM

पानी के लगातार दोहन से भूगर्भ जल भंडार खाली होने के कगार पर है। यदि यही हाल रहा तो आने वाली पीढ़ियाँ हम से पानी

बड़ी कठिन है डगर पनघट की
Posted on 16 May, 2013 12:23 PM जल संरक्षण की दिशा में कदम उठाते हुए केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2013 को ‘जल संरक्षण वर्ष’ के रूप में मनाने की घोषणा की है। इस दौरान पानी और जल स्त्रोतों के सरंक्षण और उसके विवेकपूर्ण इस्तेमाल के बारे में बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाए जाएंगे। अभियान के द्वारा जल के महत्व एवं उसकी उपयोगिता को विभिन्न जनंसचार माध्यमों द्वारा जनमानस तक पहुंचाने के साथ ही जल संरक्षण के प्रति जागरूकता का प्रचार-
मुफ्त में करें वर्षा जल संचय
Posted on 15 May, 2013 02:33 PM आज पूरे विश्व में जल संकट अपना विराट रूप ले रहा है। विश्व भर में पेयजल की कमी एक संकट बनती जा रही है। इसका कारण पृथ्वी के जलस्तर का लगातार नीचे जाना भी है। इस संकट से बचने के लिए वर्षा जल का संचय करना चाहिए ताकि भूजल संसाधनों का संवर्धन हो पाए और हम पानी की संकट से ऊबर पाएं।

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जड़ें
Posted on 15 May, 2013 01:56 PM
जड़ों की तरफ मुड़ने से पहले हमें अपनी जड़ता की तरफ भी देखना होगा, झाँकना होगा। यह जड़ता आधुनिक है। इसकी झांकी इतनी मोहक है कि इसका वजन ढोना भी हमें सरल लगने लगता है। बजाय इसे उतार फेंकने के, हम इसे और ज्यादा लाद लेते हैं अपने ऊपर।

आधुनिक दौर में, अपनी जड़ों से कट कर हमने जो विकास किया, उसके बुरे नतीजे तो चारों तरफ बिखरे पड़े हैं। स्थूल अर्थों में भी और सूक्ष्म अर्थों में भी। ढंका हुआ भूजल, खुला बहता नदियों, तालाबों का पानी और समुद्र तक बुरी तरह से गंदा हो चुका है। विशाल समुद्रों में हमारी नई सभ्यता ने इतना कचरा फेंका है कि अब अंतरिक्ष से टोह लेने वाले कैमरों ने अमेरिका के नक्शे बराबर प्लास्टिक के कचरे के एक बड़े ढेर के चित्र लिए हैं। लेकिन अभी इस स्थूल और सूक्ष्म संकेतों को यहीं छोड़ वापस उदारीकरण की तरफ लौटें।

कुछ शब्द ऐसे हैं कि वे हमारा पीछा ही नहीं छोड़ते। क्या-क्या नहीं किया हमने उन शब्दों से पीछा छुड़ाने के लिए। तब तो हम गुलाम थे। फिर भी हमने गुलामी की जंजीरों को तोड़ने की कोशिश के साथ ही अपने को दुनिया की चालू परिभाषा के हिसाब से आधुनिक बनाने का भी रास्ता पकड़ने के लिए परिश्रम शुरू कर दिया था। आजाद होने के बाद तो इस कोशिश में हमने पंख ही लगा दिए थे। हमने पंख खोले पर शायद आंखें मूंद लीं। हम उड़ चले तेजी से, पर हमने दिशा नहीं देखी।

अब एक लंबी उड़ान शायद पूरी हो चली है और हमें वे सब शब्द याद आने लगे हैं, जिनसे हम पीछा छुड़ा कर उड़ चले थे। अभी हम जमीन पर उतरे भी नहीं हैं लेकिन हम तड़पने लगे हैं, अपनी जड़ों को तलाशने।

यों जड़ें तलाशना, जड़ों की याद अनायास आना कोई बुरी बात नहीं है। लेकिन इस प्रयास और याद से पहले हमें इससे मिलते-जुलते एक शब्द की तरफ भी कुछ ध्यान देना होगा। यह शब्द है- जड़ता। जड़ों की तरफ मुड़ने से पहले हमें अपनी जड़ता की तरफ भी देखना होगा, झांकना होगा। यह जड़ता आधुनिक है।
Book cover Anupam Mishra
फोन पर बताएं पानी की कहानी
Posted on 13 May, 2013 03:32 PM

गर्मी की व्यवस्था


एजी और मुख्यमंत्री से भी कर सकेंगे लोग शिकायत
24 घंटे में से 17 घंटे खुली रहेगी हेल्पलाइन

नहीं संभले तो तरसेंगे बूंद-बूंद के लिए
Posted on 13 May, 2013 11:45 AM केंद्रीय भूजल बोर्ड की मानें तो दिल्ली की ज़मीन सूख चुकी है। समय रहते नहीं चेते तो गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। दिल्ली के 93 फीसद इलाके का भूजल खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है।
मेघ बीजन
Posted on 12 May, 2013 01:00 PM मेघ बीजन का उपयोग केवल वर्षा कराने के लिए ही नहीं किया जाता है, ब
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