निपटारे का तरीका गलत

प्लास्टिक कचरे के निस्तारण का दिल्ली में सही तरीका प्रयोग नहीं किया जाता है। जो भी यूनिटें लगी हैं वे काफी छोटी हैं, जिससे इसका निस्तारण पूरी तरह नहीं हो पाता है। सबसे ज्यादा परेशानी छोटे-छोटे प्लास्टिक बैग से होती है। मानक से कम वाले ये प्लास्टिक बैग ही मुसीबत की असली जड़ हैं। इससे प्लास्टिक का ऐसा कचरा पैदा होता है जो न तो एकत्र किया जा सकता है और न ही इन्हें जलाने से कुछ लाभ मिलता है। इन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा देना चाहिए। दिल्ली सरकार ने प्रतिबंध लगाया भी लेकिन उस पर प्रभावी ढंग से कार्रवाई न होने से कोई लाभ नहीं मिला।

छोटी-छोटी पन्नी सब्जी और किराने की दुकानों में धड़ल्ले से चल रही हैं। 2011 में प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के लिए नियम भी बनाए गए। लेकिन वह भी फाइलों में ही दबकर रह गए। इसके साथ ही छोटी पन्नी बनाने वाली अवैध इकाइयों को भी बंद करने की कार्रवाई की जानी चाहिए। जब पन्नी बनेगी ही नहीं तो बिकेगी कैसे। इसके साथ ही जितना प्लास्टिक सड़कों, रेल ट्रैक, कचराघरों आदि में फैला पड़ा है, उसको एकत्र करने की भी व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि इनके निस्तारण की व्यवस्था की जा सके।

साथ ही ऐसी इकाईयां भी लगानी होंगी जहां पर कचरे को गलाया जा सके। जैसा कि विदेशों में होता है। विदेशों में निस्तारण न किए जाने वाले प्लास्टिक कचरे का ऊर्जा पैदा करने और सड़क आदि बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।

पॉलीफेरान का खतरा


किसी भी सामान को लाने-ले-जाने में सबसे आसान रूप में प्रयोग में आने वाले प्लास्टिक के कई प्रकार काफी खतरनाक हैं, पॉलीथिन किसी सामान को ले जाने में काफी आरामदायक माध्यम है। इसके गुण इसको और भी बेहतर बनाते हैं।

वहीं पॉलीथिन उत्पादों में शामिल पॉलीफेरान से स्वास्थ्य और वातावरण दोनों को खतरा पहुँचता है। देश के विभिन्न शहरों में 0.21-0.35 किलो/व्यक्ति/प्रतिदिन के हिसाब से प्लास्टिक कचरा निकलता है। यह एक गंभीर स्थिति है।

और भी हैं झोल


प्लास्टिक, प्लास्टिक वेस्ट और प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट में फर्क न जानना। प्रोसेस, प्रोडक्ट और टेक्नोलॉजी के प्रति जागरूकता न होना।

सुरक्षा और क्रियान्वयन का डाटा न होना और मौजूद डाटा को साझा न किया जाना सुरक्षा के उपायों और उनका वातावरण पर प्रभाव पर साइंटफिक स्टडी का अभाव। सख्त नियम कानूनों की कमी। क्रियान्वयन और कम्युनिकेशन के क्लीयर कट चैनल की कमी। दोषी पर भारी जुर्माना और वातावरण को दूषित होने से बचाने वाले को पुरस्कृत किए जाने की परिपाटी का अभाव।

क्या है नियम


मौजूदा समय में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 40 म्यूजी से नीचे के प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। इससे नीचे की क्वालिटी वाली पॉलीथिन पर्यावरण को काफी नुकसान पहुँचाती है। पर इसके आम इस्तेमाल को लेकर एक समस्या है। छोटे दुकानदार जैसे सब्जी और परचून विक्रेता इससे ऊपर की क्वालिटी वाली पॉलीथिन की कीमत चुकाने में असमर्थ हैं। जिसकी वजह से पूर्ण रूप से प्रतिबंध नहीं लग पा रहा और खतरनाक प्लास्टिक कचरे का रोज टनों में उत्पन्न हो रहा है।

प्लास्टिक से सेहत पर असर


पोलीविनायल क्लोराइड फूड पैकेजिंग, ऑटो अपहोल्सटर, गार्डन हॉज, खिलौने, फ्लोर टाइल्स आदि से कैंसर, जेनेटिक बदलाव, कॉनिक ब्रोंकाइटिस, बहरापन, लिवर डिस्फ़ंक्शन।

थेलेटस (डीईएचपी, डीआईएनपी) इमल्शन पेंट, फुटवियर, बच्चों के उत्पाद, ब्लड बैग, सर्जिकल दस्ताने, प्रयोगशाला के सामान व अन्य मेडिकल डिवाइस-एंडोक्राइन डिस्प्रेशन, अस्थमा, हार्मोनल चेंजेज, स्पर्म काउंट में कमी आदि।

पॉलीकार्बोनेट विद बिस्फेनाल (पानी की बोतल) विशेषज्ञों का मानना है कि बिस्फेनॉल की हल्की डोज भी कैंसर और विभिन्न रोगों का कारण बन सकती है।

पॉलीयूरेथेन फोम (तकिए, गद्दे आदि) ब्रोकाइटिस, त्वचा और नेत्र रोग आदि।

वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से 40 म्यूजी से नीचे के प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगा रखा है।

खतरों से ऐसे निपट रही है दुनिया


विकसित देशों में प्लास्टिक की प्रति व्यक्ति खपत भारत से कहीं ज्यादा है। लेकिन इसके खतरों को भांपते हुए इन देशों ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट की व्यवस्था भी की है।

पर्यावरण केंद्रित तकनीक
उत्सर्जन की निगरानी, हरित तकनीक, कचरे से ईंधन बनाना आदि।

आधुनिक तकनीकों का विनियोग
इसमें टेक्नो, इकोनॉमिक फीजिबिलिटी पर खासतौर पर ध्यान दिया जाता है।

सुरक्षा आधारित तकनीक सुरक्षा, नुकसान और वातावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन और समाधान।

प्लास्टिक वेस्ट का प्रयोग


1. ईंधन
2. सड़कों के निर्माण के लिए

चेतावनी


1. विभिन्न चीजों की पैकेजिंग और आराम से किसी चीज को लाने-ल-जाने का बढ़िया माध्यम होने के कारण प्लास्टिक का हर क्षेत्र में बहुतायत से प्रयोग होता है। पर प्लास्टिक कचरे का सही ढंग से निस्तारण नहीं होने से देशभर में हर मिनट लाखों टन कचरा सेहत और वातावरण दोनों के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है।

2. अगर कचरे निस्तारण की योजनाबद्ध तरीके से व्यवस्था नहीं की गई तो निकट भविष्य में स्थिति बेकाबू हो जाएगी। इसके निस्तारण के लिए कई योजनाएं बनीं। लेकिन लागू नहीं हो पाने की वजह से योजनाएं फाइलों में ही अटक कर रह गईं।

3. पिछले कुछ वर्षों में जहां एक ओर प्लास्टिक का प्रयोग बढ़ा है। वहीं इसके कचरे में भी काफी वृद्धि हुई है। पैकेजिंग को कहीं भी डंप कर दिया जाता है।

कैग ने सुझाए उपाय


1. प्रकार, क्वालिटी, सुरक्षा और क्वालिटी के लिए ठोस डाटा न होने की समस्या को दूर करना।

2. प्लास्टिक कचरे के लिए टेक्निकल बुलेटिन, नीति निर्धारण और क्रियान्वयन की ठोस व्यवस्था। जिससे खतरे की सही स्थिति का आकलन किया जा सके।

3. टेक्नोलॉजी और पॉलिसी रिसर्च के लिए अलग से नियामक तंत्र।

4. रीयल लाइफ सर्वे पर आधारित डाटा तैयार करना।

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