आज का डाक्यूमेंटेशन कल आपको ख्याति दिला सकता है

ट्री इंडिया की टीम के मुताबिक, अभियान से जो ऑब्जर्वेशन सामने आ रहा है, उससे एक ओपन इनफॉर्मेशन सिस्टम तैयार किया जाएगा। इसमें देश भर में मौजूद पेड़ों की विभिन्न प्रजातियों के बारे में जानकारी होगी। माना जाता है कि भारत में करीब 7,500 तरह की प्रजातियों के पेड़ हैं। दावा है कि अभियान पूरा होने तक यह टीम संभवत: हर प्रजाति के पेड़ से जुड़ी जानकारी से लैस एक वेबपेज तैयार कर चुकी होगी। पहली कहानी : रशेल चाको 90 साल की हो चुकी हैं। हाथ कांपते हैं। लेकिन खाना पकाने का उनमें अब भी जुनून है। उनके पति सेना में अफसर थे। अब नहीं रहे। पति के साथ वे लगातार एक से दूसरी जगह घूमती रहीं। जहां गईं, वहां के व्यंजनों के बारे में जानकारी जुटाती रहीं। उन्हें नोट करतीं और जब अगली जगह के लिए ट्रांसफर होता तो इस तरह के दस्तावेज का एक बक्सा भर चुका होता था। उनके पति अक्सर शिकायत करते क्योंकि यह सब सामान उन्हें ढुलवाकर ले जाना पड़ता था। लेकिन इसकी अहमियत वे समझती थीं।

किसी जगह के खास व्यंजनों के बारे में जानते-समझते हुए उन्हें हर तरह के लोगों से मिलने का मौका भी मिला। कई बार सेना की ओर से होने वाली पार्टियों में तो कभी अपने ही स्तर पर। चूंकि उनके पति ज्यादातर सीमावर्ती इलाकों में ही पोस्टेड रहे, इसलिए मनोरंजन के अन्य साधन उन जगहों पर ज्यादा नहीं थे। ऐसे में, सेना के अफसरों की पत्नियां ज्यादातर छोटी-छोटी पार्टियां करतीं थीं। इनमें आपस में जिसके पास जो खाना-खजाना होता था, इस बारे में जो जानकारी होती थी, उसे शेयर करती थीं। इन अनुभवों को उन्होंने सहेज रखा था।

फिर जब उनके पति का देहांत हुआ तो उन्हें एक तरह के खालीपन का अहसास होने लगा। इस मोड़ पर उनकी बेटी गीता ने उन्हें रास्ता दिखाया। उन्हें प्रोत्साहित किया कि वे अपने जुनून को कोई दिशा दें। उन्हें बात जंच गई और उन्होंने खाना बनाने से संबंधित जुटाए गए हर नुस्खे को एक आकार देना शुरू कर दिया। यह मशक्कत एक किताब की शक्ल में सामने आई। इसका टाइटल रखा गया, 'मदर्स रेसिपी'। यह किताब उन महिलाओं के लिए एक उपहार है, जिनकी खाना बनाने में रुचि कुछ कम है।

किताब की कीमत 310 रुपए रखी गई है। इस किताब में 10 सेक्शन हैं। इनमें 300 से ज्यादा व्यंजनों की जानकारी है। उन्होंने यह सब सीखने के लिए बहुत मेहनत की है। बचपन से ही मां को देख-देखकर काफी कुछ सीखा। लेकिन उनके मुताबिक, आजकल की महिलाओं में अब खाना पकाने को लेकर वह दिलचस्पी नहीं रही। ऐसे में उनकी किताब नई पीढ़ी का उत्साह बढ़ाएगी। उन्हें इस दिशा में प्रेरित करेगी। इसके जरिए वे पकाने की कला की गहराई को समझेंगी तो उन्हें एक अलग तरह के आनंद की अनूभूति होगी।

दूसरी कहानी : प्रकृति और पर्यावरण के लिए काम करने वालों में शुमार होते हैं रवि वैद्यनाथन। उन्होंने 22 अप्रैल को सोशल साइट के अपने अकाउंट पर एक तस्वीर पोस्ट की। मुंबई के मुलुंड इलाके में मौजूद इकलौते बाओबाब के पेड़ की यह तस्वीर थी। इसके नीचे उन्होंने लिखा कि इस पेड़ को वे पिछले 50 साल से देख रहे हैं। तब वे स्कूल में पढ़ते थे और पौधा छोटा था। अब ढाई मीटर दायरे के तने वाला भारी-भरकम पेड़ हो चुका है। यह तस्वीर रातों-रात लोगों की जिज्ञासा का विषय बन गई। लोग इस पर चर्चा करने लगे।

बाओबाब का पेड़दरअसल, इंडिया बायोडायवर्सिटी पोर्टल अभियान चला रहा है। इसका नाम है, 'ट्री इंडिया'। मकसद? लोगों को जागरूक करना। ताकि लोग अपने आस-पास के पेड़ों के बारे में जानें-समझें। उनकी अहमियत को पहचानें। इस अभियान के तहत अब तक 3,500 एंट्री मिल चुकी हैं। इनमें एक वैद्यनाथन की भी एंट्री है। जो एंट्रीज अब तक आई हैं, उनमें 680 प्रजातियों के पेड़ सामने आए हैं। करीब 400 तो बेंगलुरू से ही। हालांकि शुरुआत मुंबई से हुई है। इन एंट्रीज में आम, पीपल, गुलमोहर आदि जैसी कुछ कॉमन प्रजातियां भी हैं।

ट्री इंडिया की टीम के मुताबिक, अभियान से जो ऑब्जर्वेशन सामने आ रहा है, उससे एक ओपन इनफॉर्मेशन सिस्टम तैयार किया जाएगा। इसमें देश भर में मौजूद पेड़ों की विभिन्न प्रजातियों के बारे में जानकारी होगी। माना जाता है कि भारत में करीब 7,500 तरह की प्रजातियों के पेड़ हैं। दावा है कि अभियान पूरा होने तक यह टीम संभवत: हर प्रजाति के पेड़ से जुड़ी जानकारी से लैस एक वेबपेज तैयार कर चुकी होगी।

फंडा: बेहतर है कि आप जिंदगी में जो देखें या करें, उससे संबंधित दस्तावेज तैयार करते जाएं। क्या मालूम जिंदगी में कब यह दस्तावेज काम आ जाए। आपके लिए पैसे और ख्याति का जरिया बन जाए।

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