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दिल्ली
वजूद पर सवाल
Posted on 19 Feb, 2018 06:43 PMक्या वन विकास निगम वर्तमान में गौण हो गए हैं? क्या उनकी उपयोगिता कम हो रही है? ये ऐसे यक्ष सवाल हैं जिसमें निगम अपने गठन के बाद से ही जूझ रहा है। निगम की कार्यप्रणाली ने जंगल और वनवासियों के बीच दीवार खड़ी कर दी है। इससे दोनों के बीच लगातार संघर्ष तेज होते जा रहे हैं। वनवासी हाशिए पर चले गए हैं। उनकी आर-पार की लड़ाई को देखने और समझने की कोशिश की अनिल अश्विनी शर्मा ने
कीटनाशक - प्रोत्साहन बेहतर या नियमन
Posted on 19 Feb, 2018 03:22 PM
कीटनाशकों को लेकर एक फैसला, पंजाब के कृषि एवं कल्याण विभाग ने बीती 30 जनवरी को लिया; दूसरा फैसला, 06 फरवरी को उत्तर प्रदेश की कैबिनेट ने। उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने कीट रोग नियंत्रण योजना को मंजूरी देते हुए जैविक कीटनाशकों और बीज शोधक रसायनों के उपयोग के खर्च का 75 प्रतिशत तथा लघु-सीमांत किसानों को कृषि रक्षा रसायनों, कृषि रक्षा यंत्रों तथा दाल, तिलहन व अनाजों के घरेलू भण्डार में काम आने वाली बखारों (ड्रमों) पर खर्च का 50 प्रतिशत अनुदान घोषित किया।
सफलता की नई कहानियाँ गढ़ती कृषक महिलाएँ
Posted on 18 Feb, 2018 03:30 PMकृषक महिलाओं के सशक्तिकरण को वर्तमान सरकार ने गम्भीरता से लिया है और माना है कि कृषि विकास की हर योजना में
कावेरी का अपना-अपना पानी
Posted on 17 Feb, 2018 02:49 PM
प्रकृति ने जल से लेकर जंगल तक बिना किसी भेदभाव के अपनी सम्पदा मानव को दे दी थी और साथ ही अधिकार भी कि जो भी प्राकृतिक है वो तुम्हारा है। मनुष्य ने अपनी स्वार्थी प्रवृत्ति के चलते प्राकृतिक जल के बँटवारे कर डाले और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में लोग बरसों से पानी-पानी करते जल का बँटवारा करते आ रहे हैं। महासागरों का बँटवारा हो सकता है तो हमारे देश की कावेरी नदी को बाँटना कोई बड़ी बात नहीं लगती।
लुप्त होतीं हिमालय की जलधाराएँ
Posted on 16 Feb, 2018 05:27 PMसूखती जलधाराएँ समाज में बढ़ती जटिलताओं और उसके समक्ष भविष्य
कितना पानीदार केन्द्रीय बजट (2018-19)
Posted on 16 Feb, 2018 02:14 PMमहाराष्ट्र राज्य की मात्र 20 प्रतिशत कृषि भूमि ही सिंचित क्षेत्र में है। स्पष
हिमयुग के अंतिम वर्षों में मानवीय पलायन में शामिल थीं महिलाएँ
Posted on 15 Feb, 2018 06:31 PMजब से जीवधारियों के जीनोम को पढ़ना और जीन्स को क्रमबद्ध करना सम्भव हुआ है, तब से मानव विकास क्रम के बारे में कई नए खुलासे हो रहे हैं। अब भारतीय शोधकर्ताओं द्वारा जम्मू-कश्मीर में किए गए एक ताजा अध्ययन में पता चला है कि प्लाइस्टोसीन या हिमयुग के अंतिम दौर और उसके बाद भी एक जगह से दूसरी जगह होने वाले मानवीय पलायन पूरी तरह पुरुष प्रधान नहीं थे, बल्कि इसमें महिलाएँ भी शामिल थीं।
अनुपम पर्यावरण
Posted on 04 Feb, 2018 03:20 PMगाँधीजी के पूरे लेखन में कहीं भी पर्यावरण शब्द का इस्तेमाल नहीं है। ये कितनी दिलचस्प बात है कि स्वच्छता से लेकर ‘दाओस समिट’ तक जिस महात्मा गाँधी का जिक्र होता है वह प्रकृति, ग्राम्य-जीवन, कृषि जैसी बातें तो करते हैं लेकिन पर्यावरण शब्द उनके यहाँ नहीं है। दरअसल पर्यावरण की जो नई चिन्ता है वही अपने आप में विरोधाभाषी है। गाँधी चरखा से लेकर स्वराज तक और जीवन से लेकर प्रकृति तक एक ही बात कहते हैं
फुहारों के बीच यायावरी का मजा
Posted on 03 Feb, 2018 11:26 AMक्या कभी मानसून में घूमने का मन बनाया है?