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प्रलय की ओर दौड़ता सभ्यता रथ
Posted on 27 Dec, 2015 09:18 AM
समूची सभ्यता टैकनॉलॉजी के रथ पर सवार है। विकास का यह रथ तेज और तेज गति से दौड़ लगा रहा है। सभ्यता भी इस दौड़ का अभी तो आनन्द ले रही है, पर साथ ही भावी संकेतों को देखकर अपने अस्तित्व रक्षा के लिये चिन्तातुर भी है।
सफाई अभियान का एकमात्र सूत्र - ‘देवालय से पहले शौचालय’
Posted on 26 Dec, 2015 01:06 PM
संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठकर देखेंगे तो समझ आएगा कि जैसे मन्दिर में जाने से पहले शरीर को शौचालय जाकर साफ-सुथरा रखना हमारी प्राथमिकता होती है वैसे ही देश जैसे मन्दिर को हम गन्दा कैसे रख सकते हैं?
शुभकामना फलीभूत करने के 21 जलवायु संकल्प
Posted on 25 Dec, 2015 03:30 PM

हिन्दी वाटर पोर्टल के आदरणीय पाठकों को ईद, क्रिसमस के साथ-साथ नूतन वर्ष 2016 की शुभकामना।

.शुभकामना है कि आप स्वस्थ जीएँ; मरें, तो सन्तानों को साँसों और प्राणजयी संसाधनों का स्वस्थ-समृद्ध संसार देकर जाएँ। संकल्प करें; नीचे लिखे 21 नुस्खे अपनाएँ; आबोहवा बेहतर बनाएँ; मेरी शुभकामाना को 100 फीसदी सच कर जाएँ।

1. स्वच्छता बढ़ाएँ।
कचरा चाहे, डीजल में हो अथवा हमारे दिमाग में; ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ाने में उसकी भूमिका सर्वविदित है, किन्तु स्वच्छता का मतलब, शौचालय नहीं होता। शौचालय यानी शौच का घर यानी शौच को एक जगह जमा करते जाना। गन्दगी को जमा करने से कहीं स्वच्छता आती है?

सरकारें करती रहीं सूखे पर फैसले का इन्तजार
Posted on 25 Dec, 2015 03:30 PM

केन्द्र और दिल्ली सरकार की टकराहट में एक महत्त्वपूर्ण खबर अखबारों के अन्दर के पृष्ठों में कहीं दबकर रह गई। यह खबर उन आठ सूखा प्रभावित राज्यों से सम्बन्धित थी, जहाँ पीड़ितों के परिवार में भोजन के अभाव में कुपोषण और भूखमरी का खतरा है।

सूखे की चपेट में आधा देश
Posted on 25 Dec, 2015 03:29 PM

इस साल सामान्य से कम बारिश होने के कारण देश के 614 में से 302 जिले सूखे का संकट झेल रहे हैं। इससे पहले 2002 में देश को इससे भी अधिक सूखे को झेलना पड़ा था। तब कुल 383 जिले सूखे की चपेट में आये थे।

सूखे पर सर्वोच्च न्यायालय सख्त, माँगा राहत योजना का ब्यौरा
Posted on 25 Dec, 2015 12:27 PM

सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र व सूखाग्रस्त राज्य सरकारों से कहा है कि वे उसे जल्द-से-जल्द उन उपायों के बारे में बताएँ जो सूखा राहत के लिये अपनाए जा रहे हैं।

सूखा राहत राज बनाम स्वराज
Posted on 25 Dec, 2015 11:58 AM यह बात कई बार दोहराई जा चुकी है कि बाढ़ और सुखाड़ अब असामान्य नहीं, सामान्य क्रम है। बादल, कभी भी-कहीं भी बरसने से इनकार कर सकते हैं। बादल, कम समय में ढेर सारा बरसकर कभी किसी इलाके को डुबो भी सकते हैं। वे चाहें, तो रिमझिम फुहारों से आपको बाहर-भीतर सब तरफ तर भी कर सकते हैं; उनकी मर्जी।

जब इंसान अपनी मर्जी का मालिक हो चला है, तो बादल तो हमेशा से ही आज़ाद और आवारा कहे जाते हैं। वे तो इसके लिये स्वतंत्र हैं ही। भारत सरकार के वर्तमान केन्द्रीय कृषि मंत्री ने जलवायु परिवर्तन के कारण भारतीय खेती पर आसन्न, इस नई तरह के खतरे को लेकर हाल ही में चिन्ता व्यक्त की है।

लब्बोलुआब यह है कि मौसमी अनिश्चितता आगे भी बनी रहेगी; फिलहाल यह सुनिश्चित है। यह भी सुनिश्चित है कि फसल चाहे रबी की हो या खरीफ की; बिन बरसे बदरा की वजह से सूखे का सामना किसी को भी करना पड़ सकता है। यदि यह सब कुछ सुनिश्चित है, तो फिर सूखा राहत की हमारी योजना और तैयारी असल व्यवहार में सुनिश्चित क्यों नहीं?
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