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नदी को अविरल बहने दें
Posted on 12 Jan, 2017 04:15 PM
अपने देश में भी नदियों पर बने बाँधों व बैराजों को लेकर अन्तरर
जल मंथन-3 (Jal Manthan 3)
Posted on 12 Jan, 2017 12:00 PM


जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 13 जनवरी, 2017 को विज्ञान भवन मौलाना आजाद रोड, नई दिल्ली में जल मंथन-3 का आयोजन किया गया है।

water
दिव्य प्रवाह से अनंत तक
Posted on 08 Jan, 2017 02:37 PM
सन 1950 में सेना की नौकरी में लेफ्टिनेंट का पद छोड़ श्री मैलविल डी मैलो ने आकाशवाणी में उद्घोषक की तरह काम प्रारम्भ किया था। अपनी खनकती आवाज और भाषा की समृद्धि के अलावा मन की उदारता और गहराई ने श्री डी मैलो को इतनी ऊँचाई दी कि उनके शब्दों ने रूपों का भी आकार ले लिया था। उस दौर में टेलिविजन नहीं था पर श्री डी मैलो के शब्द उसकी कमी को सहज ही पूरा कर देते थे। गाँधीजी की अंतिम यात्रा का उनके द्व
पुस्तक परिचय - अज्ञान भी ज्ञान है
Posted on 08 Jan, 2017 10:27 AM
यह पुस्तक एक संकलन है। यह संकलन अनुपम मिश्र द्वारा सम्पादित ‘गाँधी मार्ग’ द्वैमासिक पत्रिका में छपे लेखों का सुन्दर नमूना है। शुरुआत विनोबाजी के एक व्याख्यान से होती है। गाँधीजी ने ‘सत्याग्रह’ शब्द पर जोर रखा, विनोबा जी ने ‘सत्याग्रही’ होने के साथ ‘सत्यग्राही’ होने की शर्त भी जोड़ दी। इस संकलन के आलेख दोनों दृष्टियों से खरे हैं, वे ‘सत्याग्रही’ और ‘सत्यग्राही’ दोनों हैं।
अज्ञान भी ज्ञान है
धर्म की देहरी और समय देवता
Posted on 07 Jan, 2017 04:17 PM

भारत इस अर्थ में नियति का चुना हुआ खास देश है कि यहाँ वह प्रयोग सम्भव है जिसकी संभावना गा

अज्ञान भी ज्ञान है
Posted on 07 Jan, 2017 02:03 PM

मुझे आज तक ऐसा एक भी धर्म ग्रंथ नहीं मिला, एक भी आदमी नहीं मिला, जिसने कहा हो कि अज्ञान क

सार्थक जीवन की ‘अनुपम’ मिसाल
Posted on 07 Jan, 2017 12:20 PM
बेंजामिन फ्रेंकलिन ने कहा है- “Either write some thing worth reading or do something worth writing” (अर्थात या तो कुछ ऐसा सार्थक लिखो जो पढ़ा जाये अथवा कुछ ऐसा सार्थक करो जिस पर लिखा जाये।) ‘गाँधी मार्ग’ के कीर्ति शेष सम्पादक अनुपम मिश्र ने उपर्युक्त उक्ति के दोनों छोरों को नितान्त प्रामाणिकता से साधा था। वे मन-वचन-कर्म से गाँधीवादी थे। सादगी उनका स्वभाव था। उच्च विचार उ
अनुपम मिश्र
पुस्तक परिचय : महासागर से मिलने की शिक्षा
Posted on 07 Jan, 2017 11:43 AM
अनपुम मिश्र अपनी शैली में अपने पिता पं.
अनुपम मिश्र
दुनिया का खेला
Posted on 06 Jan, 2017 04:53 PM


मैं उनसे कभी मिल नहीं पाया था। सभा गोष्ठियों में दूर से ही देखता था उन्हें। अपरिचय की एक दीवार थी। यह कोई ऊँची तो नहीं थी पर शायद मेरा अपना संकोच रोके रहा आगे बढ़कर मिलने से।

आज उनकी स्मृति में हम सब यहाँ एकत्र हुए हैं। उन्हें मैं प्रणाम करता हूँ।

अनुपम मिश्र
देश में पर्यावरण की स्थिति और चुनौतियाँ
Posted on 06 Jan, 2017 03:31 PM
हमने भारत की लगभग सभी नदियों को प्रदूषित कर चुके हैं। अब हाला
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