भोपाल जिला

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सीजीनेट स्वर और आदिवासी स्वर को लोंगो की जरूरत
Posted on 24 Apr, 2014 01:53 PM आप सभी सीजीनेट स्वर और आदिवासी स्वर के प्रयोग के बारे में जानते ही हैं जहां हम लोग मोबाइल फोन पर एक सामुदायिक रेडियो बनाने का प्रयोग कर रहे हैं |

इस रेडियो में दूर दराज़ के इलाके में रहने वाले साथी ही अपने मोबाइल फोन से अपनी बात, अपने गीत रिकार्ड करते हैं | उन्ही सन्देश और गीतों को और साथी एडिट होने के बाद अपने अपने मोबाइल फोन पर सुनते हैं |

सीजीनेट स्वर (cgnetswara.org) में साथी हिन्दी में और आदिवासी स्वर (adivasiswara.org) में गोंडी भाषा में संदेश और गीत रिकार्ड करते हैं |सीजीनेट स्वर पर आप 08050068000 पर सन्देश रिकार्ड कर और सुन सकते हैं | आदिवासी स्वर का नंबर 07411079272 है |

इसी तरह स्वास्थय स्वर के प्रयोग में आप दूर दराज़ के जंगली इलाकों में रहने वाले पारंपरिक वैद्यों के ज्ञान को 07961907775/08602008111 पर एक मिस्ड काल देकर सुन सकते हैं | आप अपनी स्वास्थय की समस्याएँ भी रिकार्ड कर सकते हैं जिस पर ये वरिष्ठ वैद्य साथी अपनी राय देते हैं |

पानी के निजीकरण पर राष्‍ट्रीय बैठक
Posted on 25 Nov, 2013 02:28 PM
भोपाल – 11 एवं 12 दिसंबर 2013

हमें आपको यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है कि मंथन अध्‍ययन केन्‍द्र जल क्षेत्र में सुधार संबंधी गतिविधियो पर जन पहल मध्‍यप्रदेश और पानी के निजीकरण विरोधी राष्‍ट्रीय प्‍लेटफार्म (National Platform Against Water Privatisation के साथ मिलकर आगामी 11 एवं 12 दिसंबर 2013 को भोपाल में एक राष्‍ट्रीय बैठक आयोजित कर रहा हैं।
शौचालय कम कर सकता है शिशु एवं बाल मृत्यु दर
Posted on 25 Nov, 2013 08:32 AM

19 नवंबर 2013, भोपाल। शौचालय नहीं होने से महिलाओं को अक्सर असुरक्षा से गुजरना पड़ता है। आंकड़ों के अनुसार महिलाओं के खिलाफ गंभीर अपराध एवं बलात्कार की घटनाएं अक्सर शौच के लिए बाहर जाने के समय होती है। जिन राज्यों में खुलेमें शौच करने वालों की संख्या ज्यादा है, वहां कुपोषण एवं शिशु और बाल मृत्यु दर भी ज्यादा है, इसलिए कुपोषण एवं शिशु और बाल मृत्यु दर कम करने के लिए खुले में शौच की आदतों को छोड़ना प

sanitation
उत्पाद नहीं, जीने का जरूरी संसाधन है पानी
Posted on 11 Dec, 2012 02:26 PM भोपाल। पानी एवं स्वच्छता एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। स्वच्छ पेयजल एवं स्वच्छता के अभाव में गुणवत्तापूर्ण जीवन का अधिकार सुनिश्चित नहीं हो सकता। सभी व्यक्तियों के लिए बिना किसी कीमत के न्यूनतम पानी उपलब्ध हो सके, इसके लिए विभिन्न संस्थाओं एवं संगठनों को संयुक्त रूप अभियान चलाने की जरूरत है। पानी की उपलब्धता को मानवाधिकार का मुद्दा बनाने की जरूरत है। साथ ही स्वच्छता (सेनिटेशन) को बढ़ावा देकर पानी को प्रदूषित होने से बचाने के साथ-साथ लोगों को बीमारियों से बचाने की जरूरत है।
विस्थापन पर राष्ट्रीय संवाद
Posted on 10 Oct, 2012 02:20 PM आजादी के बाद और उसके पहले बने बड़े बांधों से उपजी विभीषिका से हम सभी वाकिफ हैं। इन बड़े बांधों के बनने से कितने लोग विस्थापित हैं, इसका कोई एक आंकड़ा सरकार के पास आज तक नहीं है हाँ, बांधों का आंकड़ा है, थोडा बहुत सिंचाई का भी है पर शायद लोग उतना महत्व नहीं रखते हैं, इसलिए लोगों की गिनती नहीं है? पर्यावरणविद वाल्टर फर्नांडीज के मुताबिक़ देश में केवल बांधों से लगभग 3 करोड़ से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं। हास्यास्पद यह भी है कि सरकारी ढर्रे और नुमाइंदों ने लोगों की गणना करना उचित नहीं समझा और सरकार के पास भी यही आंकड़ा है।

विस्थापन अब केवल बड़े बांधों का ही परिणाम नहीं रहा। रोज-रोज नए-नए उगते अभ्यारण्य/नॅशनल पार्क और बेतरतीब तरीके से पर्यटन स्थलों से होने वाला विस्थापन अब एक आम बात होती जा रही है। सिंगूर, पास्को, कुडूनकुलम के साथ-साथ देश के अन्य विकास के इन नए प्रतिमानों और इनके लिए चलायी गयी प्रक्रियाओं ने विकास बनाम विनाश की बहस को और मुखर कर दिया है।
राष्ट्रीय मीडिया चौपाल-2012
Posted on 23 Jul, 2012 08:11 AM

 

स्तंभ लेखकों, ब्लॉगर्स, वेब संचालकों और सोशल मीडिया के संचारकों का जमावड़ा
विज्ञान और विकास के लोकव्यापीकरण में न्यू मीडिया की भूमिका पर होगी बहस

दिनांक : 12 अगस्त 2012
स्थान : विज्ञान भवन, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद - भोपाल (मध्यप्रदेश)
संपर्क : अनिल सौमित्र, स्पंदन फीचर्स, +919425008648


भोपाल। इक्कीसवीं सदी देश में सूचना क्रांति लेकर आई है। समूचा समाज इसमें हिस्सेदार है। स्तंभ लेखक, ब्लॉगर और वेब संचालक सभी नई और पुरानी मीडिया में अपना-अपना योगदान दे रहे हैं। नया मीडिया अब इतना विस्तार पा चुका है कि इसकी शक्ति अपार हो चुकी है। आने वाले दिनों और सालों में यह और अधिक ताकतवर होगा।

नये मीडिया के बढ़ते प्रभाव के दायरे को आंकने और इस पर आसन्न संकट को भांपने के साथ ही इसके लिए विशेष मुद्दों (एजेंडे) का निर्धारण भी आवश्यक है। इन्हीं विषयों को केन्द्रित कर भोपाल में एक दिवसीय ‘‘राष्ट्रीय मीडिया चौपाल-2012’’ का आयोजन किया जा रहा है। इस मीडिया चौपाल का थीम होगा – ‘‘विकास की बात, विज्ञान के साथ : नये मीडिया की भूमिका’’। स्पंदन संस्था के सहयोग से मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद द्वारा आयोजित इस राष्ट्रीय मीडिया चौपाल में देशभर के स्तंभकार, ब्लॉगर्स, वेब संचालकों के साथ ही न्यू मीडिया के साथ कार्यरत संचारक हिस्सेदारी करेंगे।

Media Chaupal
खनन माफिया खोद रहे हैं मध्य प्रदेश
Posted on 28 Oct, 2011 11:16 AM

प्रदेश की जीवनरेखा नर्मदा नदी के किनारे जंगलों का बेरहमी से कत्लेआम हुआ है। वन माफिया सरेआम बुध

आज भी शेष है भोपाल में जहर
Posted on 09 Dec, 2010 12:59 PM भोपाल गैस त्रासदी के २५ साल बाद भी यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के जहरीले रसायन भोपाल की जमीन और पानी को बुरी तरह प्रदूषित कर रहे हैं । फैक्ट्री से तीन किमी दूर तक जमीन के अंदर पानी में जहरीले रसायनिक तत्त्व मौजूद हैं जिनका उत्पादन यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री में होता था । इनकी मात्रा पानी में निर्धारित भारतीय मानकों से ४० गुना अधिक पाई गई है । फैक्ट्री परिसर में सतही जल के पानी में कीटनाशकों का मिश
संदर्भ राजस्थान: पानी के रास्ते में खड़े हम
Posted on 21 Sep, 2010 02:41 PM मौसम को जानने वाले हमें बताएंगे कि 15-20 वर्षो में एक बार पानी का ज्यादा होना या ज्यादा बरसना प्रकृति के कलेंडर का सहज अंग है। थोड़ी-सी नई पढ़ाई कर चुके, पढ़-लिख गए हम लोग अपने कंप्यूटर, अपने उपग्रह और संवेदनशील मौसम प्रणाली पर इतना ज्यादा भरोसा रखने लगते हैं कि हमें बाकी बातें सूझती ही नहीं हैं। वरूण देवता ने इस बार देश के बहुत-से हिस्से पर और खासकर कम बारिश वाले प्रदेश राजस्थान पर भरपूर कृपा की है। जो विशेषज्ञ मौसम और पानी के अध्ययन से जुड़े हैं, वो हमें बेहतर बता पाएंगे कि इस बार कोई 16 बरस बाद बहुत अच्छी वर्षा हुई है।

हमारे कलेंडर में और प्रकृति के कलेंडर में बहुत अंतर होता है। इस अंतर को न समझ पाने के कारण किसी साल बरसात में हम खुश होते हैं, तो किसी साल बहुत उदास हो जाते हैं। लेकिन प्रकृति ऎसा नहीं सोचती। उसके लिए चार महीने की बरसात एक वर्ष के शेष आठ महीने के हजारों-लाखों छोटी-छोटी बातों पर निर्भर करती है। प्रकृति को इन सब बातों का गुणा-भाग करके अपना फैसला लेना होता है। प्रकृति को ऎसा नहीं लगता, लेकिन हमे जरूर लगता है कि अरे, इस साल पानी कम गिरा या फिर, लो इस साल तो हद से ज्यादा पानी बरस गया।

water rajasthan
किसानों के लिए मददगार साबित हो सकता है ये सायनोबैक्टेरिया
Posted on 17 Sep, 2010 01:54 PM विज्ञान के क्षेत्र में रोज नई-नई खोज हो रही है। हमें यह जानकर खुशी होती है कि वैज्ञानिक खोज हमारे जीवन को ज्यादा सुगम, सहज बनाने के साथ-साथ प्रगति में भी सहयोगी होते हैं। वैज्ञानिक के रूप में बहुत ही कम महिलाओं को हम जानते हैं, पर कुछ ऐसी महिला वैज्ञानिक हैं जिनके काम की बदौलत अलग-अलग क्षेत्रों में नए रहोस्याद्घाटन हो रहे हैं। विज्ञान की दुनिया में सायनोबैक्टेरियोलॉजिस्ट के नाम से अपनी पहचान कायम
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