श्यामसुंदर दुबे

श्यामसुंदर दुबे
लोक में अवर्षा के कारण
Posted on 16 Mar, 2011 11:37 AM

हमारे देश में चल रहे वानकीकरण जैसे आयोजनों के माध्यम से इस तथ्य से ग्रामीण जनों को अवगत कराया जा रहा है कि अच्छी वर्षा अच्छे वनों पर निर्भर करती है।

‘रामचरितमानस’ में गोस्वामी तुलसीदास ने कलियुग-वर्णन के अंतर्गत कलियुग में बार-बार अकाल पड़ने की चर्चा की है। ‘कलि बारहिं बार अकाल परै। बिनु अन्न प्रजा बहु लोग मरे।’ अकाल की स्थिति में अन्न का उत्पादन संभव नहीं है। पानी है तो अन्न है। ‘गीता’ में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है, “अन्नाद् भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्न संभवः” अन्न से प्राणियों का पालन होता है, और अन्न बादलों से संभव होता है। जब बादलों से जल नहीं बरसता है- तब अकाल की स्थिति बनती है। अकाल का शाब्दिक अर्थ होता है- समय का निषेध। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में समय की धारणा बादलों से ही निर्मित होती है। फसल जब अच्छी होती है, तब काल सुकाल बन जाता है, और फसल तो तभी अच्छी आयेगी, जब बादल खूब बरसेंगे।
लोक में वर्षा-विचार
Posted on 16 Mar, 2011 12:09 PM
नौतपा आये और चले गये। रोहिणी नक्षत्र में सूर्य जिन नौ दिनों में परिभ्रमण करता है समान्यतः यही नो तपा के नौ दिन होते हैं। गांव से अक्सर लोग आते रहते हैं। खेती-किसानी की चर्चा ही उनकी चिन्ता के केंद्र में रहती है। विगत तीन वर्षों से वर्षा की जो अनियमितता इधर निर्मित हुई है, उसने गांव का हुलिया और अधिक दीनहीन बनाया है। गांव से आने वाला प्रत्येक व्यक्ति वर्षा की भविष्यवाणी में उलझा-पुलझा अपनी आशंका का
लोक में अवर्षा निवारण के उपाय
Posted on 16 Mar, 2011 12:06 PM

जल-वर्षा की कामना से संबंधित प्रायः सभी टोने-टोटके और लोक-विश्वास आधिदैविक शक्तियों पर किये जा

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