अरबिंद मोहन

अरबिंद मोहन
वह किताब रामचरित मानस नहीं है, लेकिन दो लाख छप चुकी है
Posted on 25 Oct, 2011 03:23 PM

हिंदी भाषी परिवारों का आकार देखते हुए दो लाख की संख्या का भी बड़ा मतलब नहीं होना चाहिए लेकिन जब बात हिंदी किताब की बिक्री की हो तो यह सचमुच में यह आंकड़ा बहुत बड़ा है। एक जमाने में गुलशन नंदा जैसों के उपन्यास वगैरह की बिक्री के दावों को छोड़ दें तो आज के हिंदी प्रकाशन व्यवसाय के लिए दो हजार प्रतियों का बिकना भी किताब का सुपरहिट होना है। अब इसे अनुपम मिश्र और गांधी शांति प्रतिष्ठान का स्वभाव मानना चाहिए कि वे अपनी किताब आज भी खरे हैं तालाब की छपाई दो लाख पार करने पर न कोई शोर मचा रहे हैं, न विज्ञापन कर रहे हैं। अगर इस अवसर का अपना व्यावसायिक लाभ या कोई पुरस्कार वगैरह पाने की उम्मीद होती तो यह काम जरूरी होता लेकिन अनुपम मिश्र न तो पुरस्कारों की होड़ में हैं, न थे और न ही गांधी शांति प्रतिष्ठान किताब से कमाई को बढ़ाना चाहता है।

×