![भूमि सुधार](/sites/default/files/styles/node_lead_image/public/hwp-images/%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%AE%E0%A4%BF%20%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0_5.gif?itok=pkWsHi-8)
प्राकृतिक संसाधनों की लूट व इससे जुड़े भ्रष्टाचार पर रोक लगनी चाहिए। सबसे गरीब परिवारों को जहां जमीन चाहिए वहां इस जमीन पर सफल खेती के लिए छोटी सिंचाई योजनाओं, जल व मिट्टी संरक्षण के कार्यों की भी जरूरत है। साथ ही लघु वन उपज पर आदिवासी अधिकारों को मजबूत करना जरूरी है जिससे वन आधारित आजीविका भी फलती-फूलती रहे।
हाल के समय में निर्धनता उन्मूलन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य गरीबी रेखा की बहस या 'बीपीएल-एपीएल' की बहस आंकड़ेबाजी में भटक गई है। सस्ते अनाज का कार्ड बन जाने जैसे अस्थायी मुद्दे आगे आ रहे हैं जबकि गरीबी हटाने के टिकाऊ उपाय, जैसे भूमिहीनों को कृषि भूमि उपलब्ध करवाने के लिए जरूरी भूमि सुधार जैसे मुद्दे पीछे रह गए हैं। अतः एक बार फिर भूमि-सुधारों को गरीबी उन्मूलन की बहस के केंद्र में लाना जरूरी हो गया है। सबसे गरीब लोगों की भूमि-हकदारी को अहिंसक तौर-तरीकों से प्राप्त करने के लिए एकता परिषद व उसके सहयोगी संगठनों ने देश में जन-सत्याग्रह आरंभ किया है।
इस अभियान के अंतर्गत दो अक्टूबर गांधी जयंती से देश भर में पदयात्राओं का सिलसिला आरंभ किया गया है जिसका अंत लगभग एक वर्ष बाद एक लाख सत्याग्रहियों की ग्वालियर-दिल्ली पदयात्रा के रूप में होगा। चार वर्ष पहले 2007 में इन्हीं संगठनों के 'जनादेश' अभियान के अंतर्गत दिल्ली में 20,000 पदयात्री आए थे। सरकार से तब जो बातचीत हुई थी, उसके आधार पर भूमि-सुधार को आगे ले जाने का महत्वपूर्ण मसौदा तैयार किया था पर सरकार ने इस मसौदे को आगे ले जाने में कोई गंभीरता व मुस्तैदी नहीं दिखाई। दूसरी ओर कॉर्पोरेट क्षेत्र द्वारा बड़ी मात्रा में जमीन प्राप्त करने, आदिवासियों-वनवासियों के वन-अधिकार कानून को सही भावना से लागू न करने जैसी शिकायतें बढ़ती रहीं।
सरकार की इस उपेक्षा को देखते हुए वर्ष 2010 में जन-सत्याग्रह आरंभ किया गया। इसे आगे बढ़ाते हुए राष्ट्रीय स्तर पर पदयात्रा की घोषणा की गई तो सरकार हरकत में आई व उसने अपनी ओर से भूमि-सुधार को आगे ले जाने का मसौदा प्रस्तुत किया। ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने इस बारे में सरकार से जो देरी हुई उस बारे में खेद प्रकट किया है और भविष्य में भूमि सुधार को समुचित महत्व देना स्वीकार किया है। आज भूमिहीन परिवारों में भूमि वितरण को आगे बढ़ाने के साथ प्राकृतिक संसाधनों पर उनकी हकदारी को और व्यापक स्तर पर सुनिश्चित करना जरूरी है।
प्राकृतिक संसाधनों की लूट व इससे जुड़े भ्रष्टाचार पर रोक लगनी चाहिए। सबसे गरीब परिवारों को जहां जमीन चाहिए वहां इस जमीन पर सफल खेती के लिए छोटी सिंचाई योजनाओं, जल व मिट्टी संरक्षण के कार्यों की भी जरूरत है। साथ ही लघु वन उपज पर आदिवासी अधिकारों को मजबूत करना जरूरी है जिससे वन आधारित आजीविका भी फलती-फूलती रहे। जिन नीतियों व कानूनों के कारण विस्थापन व आजीविका का विनाश बढ़ा है उन पर रोक लगनी चाहिए। जन-आधारित ग्रामीण विकास को आर्थिक नियोजन के केंद्र में लाना चाहिए। ग्रामीण विकेंद्रीकरण को उसकी सही भावना के अनुकूल सशक्त करना चाहिए।
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