इंटरनेशनल नेचुरल डिजास्टर रिडक्शन दिवस, 13 अक्टूबर 2015 पर विशेष
अचानक होने वाले हादसों से जिन्दगी में जो हाहाकार मचता है वो तो है ही, पर ऐसे हादसों का अन्देशा भी उतना ही भयावह होता है। सुरक्षित और निश्चिन्त जीवन के लिये मानव दस हजार साल से लगातार अपने विकास की कोशिश में लगा है। हमने पिछली सदी के आखिरी दशकों में आपदा प्रबन्धन पर ज्यादा गौर करना शुरू कर दिया था।
इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में तो आपदा प्रबन्धन अकादमिक विषय भी बन गया है। अपने नागरिकों को आपदाओं के अन्देशे से मुक्त रखने के लिये विश्व की लगभग सारी सरकारें सतर्क हैं। हम भी हैं। लेकिन अभी विकसित देशों के ज्ञान और प्रौद्योगिकी के सहारे ही हैं। और हम नई पीढ़ी को सिर्फ इस बात के लिये तैयार कर रहे हैं कि आपदा की स्थिति आने पर एक जागरूक नागरिक की तरह उन्हें क्या-क्या करने के लिये तैयार रहना चाहिए।
Posted on 11 Oct, 2015 12:03 PM1. टेनरियों को स्थानान्तरित करें जिससे गंगा प्रदूषण से बचे 2. सौ वर्ष पूर्व लिया गया संकल्प आज भी अधूरा, गंगा मैली 3. अंग्रेजों ने टेके थे घुटने
इंटरनेशनल नेचुरल डिजास्टर रिडक्शन दिवस, 13 अक्टूबर 2015 पर विशेष
सूखा पहले कभी-कभी आता था; अब हर वर्ष आएगा। कहीं-न-कहीं; कम या ज्यादा, पर आएगा अवश्य; यह तय मानिए। यह अब भारत भौगोलिकी के नियमित साथी है। अतः अब इन्हें आपदा कहने की बजाय, वार्षिक क्रम कहना होगा। वजह एक ही है कि सूखा अब आसमान से ज्यादा, हमारे दिमाग में आ चुका है।
हमने धरती का पेट इतना खाली कर दिया है कि औसत से 10-20 फीसदी कम वर्षा में भी अब हम, हमारे कुएँ, हमारे हैण्डपम्प और हमारे खेत हाँफने लगे हैं। उलटबाँसी यह कि निदान के रूप में हम नदियों को तोड़-जोड़-मोड़ रहे हैं। हमारे जल संसाधन मंत्रालय, हमेशा से जल निकासी मंत्रालय की तरह काम करते ही रहे हैं।
Posted on 07 Oct, 2015 12:50 PMवर्ष 1991 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल जनसंख्या की 26 प्रतिशत आबादी अर्थात 21.70 करोड़ जनसंख्या नगरों में निवास करती है। अगर हम सिर्फ पिछले 40 वर्षों की स्थिति पर गौर करें तो पाते हैं कि उस समय कुल जनसंख्या के 12 प्रतिशत लोग ही शहरों में निवास करते थे। लेकिन स्वतन्त्रता के बाद जैसे-जैसे आर्थिक एवं औद्योगिक विकास की गति तीव्र हुई, वैसे-वैसे नगरों की संख्या तथा उनमें निवास करने वाली जनसंख्या दोन