1. टेनरियों को स्थानान्तरित करें जिससे गंगा प्रदूषण से बचे
2. सौ वर्ष पूर्व लिया गया संकल्प आज भी अधूरा, गंगा मैली
3. अंग्रेजों ने टेके थे घुटने
गंगा नदी के अस्तित्त्व रक्षा को एक बार फिर सन्तों ने अलख जगाने का मन बनाया है। भले ही समाज संघर्ष-आन्दोलन का खाका गंगा महासभा ने खींचा हो लेकिन असल मकसद गंगा के अस्तित्व रक्षा के लिये हिन्दूवादी शक्तिओं को एक मंच पर लाना है जिससे गंगा की अविरलता एवं निर्मलता के लिये दबाव बनाया जा सके। इसी परिप्रेक्ष्य में सन्त समाज ने अविरल गंगा संघर्ष शताब्दी समारोह एवं अविरल गंगा समझौता शताब्दी समारोह का शुभारम्भ काशी से वर्ष 2014 में किया था समापन हरिद्वार के भीम गौड़ा में 18-19 दिसम्बर 2016 को होना है। नई केन्द्र सरकार आने से ही नहीं प्रारम्भ हुआ गंगा को अविरल और निर्मल बनाने का कार्य, यह संघर्ष सौ वर्ष पूर्व नवम्बर 1914 को प्रारम्भ किया था। अगर गंगा आन्दोलन के अगुआकारों की माने तो गंगा आन्दोलन की पहली मशाल महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने जलाई थी। गंगा नदी कि सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए गंगा महासभा की स्थापना की गई थी। गंगा महासभा ने गंगा नदी को चहुँओर से अधिकार दिलाने को जनान्दोलन किया।
ब्रिटिश हुकूमत को महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के संघर्ष आन्दोलन को स्वीकारना पड़ा। ब्रिटिश हुक़ूमत ने 5 नवम्बर 1914 को स्वीकार किया कि अविरल गंगा एवं निर्मल गंगा पर हिन्दू समाज का मौलिक अधिकार है। लेकिन ब्रिटिश हुक़ूमत ने शासनादेश जारी करने से साफ इंकार कर दिया।
लिहाजा एक बार फिर महामना अपने समर्थकों के साथ आन्दोलन कि राह पर चल दिये। अन्तोगत्वा दो वर्ष के संघर्ष के बाद हिन्दूवादी विचारधारा संग ब्रिटिश हुक़ूमत ने 18-19 दिसम्बर 1916 को लिखित समझौता किया कि भविष्य में गंगा की अविरल धारा के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। गंगा पर किसी तरह का कोई निर्माण हिन्दू समाज की अनुमति के बगैर नहीं किया जाएगा।
लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि आज़ादी के बाद देश की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को मानने वाली सरकारों ने ही नकार दिया।
समाजवादी चिन्तक डॉ. राममनोहर लोहिया ने भी कहा था कि गंगा की निर्मलता एवं अविरलता बनाए रखने को जरूरी है कि समय-समय पर गंगा नदी में खुदाई हो जिससे गंगा नदी कि तलहटी साफ होती रहे लेकिन इस पर भी कोई ध्यान नहीं दिया जिसका दुष्परिणाम सामने है गंगा कहीं-कहीं तो इतनी उथली हो गई है कि गंगा का अस्तित्व तक खोता दिखाई देता है।
गंगा के अस्तित्व को बचाए रखने को जन-आन्दोलन करना होगा भले ही यह आन्दोलन अपना प्रदर्शन सड़कों पर न दिखाई दे लेकिन इस आन्दोलन की सार्थक पहल चलती रहनी चाहिए।
गंगा नदी के अस्तित्त्व रक्षा को एक बार फिर सन्तों ने अलख जगाने का मन बनाया है। भले ही समाज संघर्ष-आन्दोलन का खाका गंगा महासभा ने खींचा हो लेकिन असल मकसद गंगा के अस्तित्व रक्षा के लिये हिन्दूवादी शक्तिओं को एक मंच पर लाना है जिससे गंगा की अविरलता एवं निर्मलता के लिये दबाव बनाया जा सके।
इसी परिप्रेक्ष्य में सन्त समाज ने अविरल गंगा संघर्ष शताब्दी समारोह एवं अविरल गंगा समझौता शताब्दी समारोह का शुभारम्भ काशी से वर्ष 2014 में किया था समापन हरिद्वार के भीम गौड़ा में 18-19 दिसम्बर 2016 को होना है।
शताब्दी समारोह के शंखनाद में कांचीपीठ के शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती, ज्योतिष पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती, माँ गंगा पुनरुद्धार मंत्री सुश्री उमा भारती, काशी शुमेरू पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती, के.एन. गोविन्दाचार्य, महन्त रामेश्वर पूरी, आईआईटी कानपुर प्रो. डॉ. विनोद तारे मौजूद थे। इस एक वर्ष गुजर जाने के बाद भी शंखनाद के बाद की हलचल जो दिखनी चाहिए थी वो नहीं दिख रही है।
कानपूर में गंगा को प्रदूषित करने वाले नाले आज भी यथावत अपनी गन्दगी छोड़ रहे हैं। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने सरकारों के प्रयास का आकलन जब मौके पर जाकर किया तो वह देखकर दंग रह गया स्थितियाँ जस-की-तस थीं आज भी औद्योगिक कचरा टेनरियोंं का गन्दा पानी गंगा में प्रवाहित किया जा रहा है।
जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने जब उत्तर प्रदेश की सरकार से पूछा कि कानपुर स्थित टेनरियोंं तथा अन्य शहरों में प्रदूषित इकाइयों के खिलाफ क्या कार्यवाही अमल में लाई गई है। समुचित जवाब न मिलने की दशा में पीठ ने अधिकारियों से कहा कि सरकार के फैसलों पर आपका कोई अधिकार नहीं है इसलिये सरकार से निर्देश लेकर अवगत कराएँ कि टेनरियोंं को उन स्थानों पर कब स्थानान्तरित कर रहे हैं जहाँ से टेनरियोंं द्वारा गंगा के पानी को प्रदूषित न कर सकें।
पीठ ने उत्तराखण्ड सरकार को भी वो सूची देने के आदेश दिये हैं जो गंगा को प्रदूषित कर रही हैं और सरकार के आदेश को अमल में नहीं ला रही हैं। पीठ ने कहा कि हम स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि अब वो समय आ गया है कि कड़ी कार्यवाही कि जाये। जिसे किसी भी कीमत पर वापिस न लिया जाये।
2. सौ वर्ष पूर्व लिया गया संकल्प आज भी अधूरा, गंगा मैली
3. अंग्रेजों ने टेके थे घुटने
गंगा नदी के अस्तित्त्व रक्षा को एक बार फिर सन्तों ने अलख जगाने का मन बनाया है। भले ही समाज संघर्ष-आन्दोलन का खाका गंगा महासभा ने खींचा हो लेकिन असल मकसद गंगा के अस्तित्व रक्षा के लिये हिन्दूवादी शक्तिओं को एक मंच पर लाना है जिससे गंगा की अविरलता एवं निर्मलता के लिये दबाव बनाया जा सके। इसी परिप्रेक्ष्य में सन्त समाज ने अविरल गंगा संघर्ष शताब्दी समारोह एवं अविरल गंगा समझौता शताब्दी समारोह का शुभारम्भ काशी से वर्ष 2014 में किया था समापन हरिद्वार के भीम गौड़ा में 18-19 दिसम्बर 2016 को होना है। नई केन्द्र सरकार आने से ही नहीं प्रारम्भ हुआ गंगा को अविरल और निर्मल बनाने का कार्य, यह संघर्ष सौ वर्ष पूर्व नवम्बर 1914 को प्रारम्भ किया था। अगर गंगा आन्दोलन के अगुआकारों की माने तो गंगा आन्दोलन की पहली मशाल महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने जलाई थी। गंगा नदी कि सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए गंगा महासभा की स्थापना की गई थी। गंगा महासभा ने गंगा नदी को चहुँओर से अधिकार दिलाने को जनान्दोलन किया।
ब्रिटिश हुकूमत को महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के संघर्ष आन्दोलन को स्वीकारना पड़ा। ब्रिटिश हुक़ूमत ने 5 नवम्बर 1914 को स्वीकार किया कि अविरल गंगा एवं निर्मल गंगा पर हिन्दू समाज का मौलिक अधिकार है। लेकिन ब्रिटिश हुक़ूमत ने शासनादेश जारी करने से साफ इंकार कर दिया।
लिहाजा एक बार फिर महामना अपने समर्थकों के साथ आन्दोलन कि राह पर चल दिये। अन्तोगत्वा दो वर्ष के संघर्ष के बाद हिन्दूवादी विचारधारा संग ब्रिटिश हुक़ूमत ने 18-19 दिसम्बर 1916 को लिखित समझौता किया कि भविष्य में गंगा की अविरल धारा के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। गंगा पर किसी तरह का कोई निर्माण हिन्दू समाज की अनुमति के बगैर नहीं किया जाएगा।
लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि आज़ादी के बाद देश की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को मानने वाली सरकारों ने ही नकार दिया।
समाजवादी चिन्तक डॉ. राममनोहर लोहिया ने भी कहा था कि गंगा की निर्मलता एवं अविरलता बनाए रखने को जरूरी है कि समय-समय पर गंगा नदी में खुदाई हो जिससे गंगा नदी कि तलहटी साफ होती रहे लेकिन इस पर भी कोई ध्यान नहीं दिया जिसका दुष्परिणाम सामने है गंगा कहीं-कहीं तो इतनी उथली हो गई है कि गंगा का अस्तित्व तक खोता दिखाई देता है।
गंगा के अस्तित्व को बचाए रखने को जन-आन्दोलन करना होगा भले ही यह आन्दोलन अपना प्रदर्शन सड़कों पर न दिखाई दे लेकिन इस आन्दोलन की सार्थक पहल चलती रहनी चाहिए।
गंगा नदी के अस्तित्त्व रक्षा को एक बार फिर सन्तों ने अलख जगाने का मन बनाया है। भले ही समाज संघर्ष-आन्दोलन का खाका गंगा महासभा ने खींचा हो लेकिन असल मकसद गंगा के अस्तित्व रक्षा के लिये हिन्दूवादी शक्तिओं को एक मंच पर लाना है जिससे गंगा की अविरलता एवं निर्मलता के लिये दबाव बनाया जा सके।
इसी परिप्रेक्ष्य में सन्त समाज ने अविरल गंगा संघर्ष शताब्दी समारोह एवं अविरल गंगा समझौता शताब्दी समारोह का शुभारम्भ काशी से वर्ष 2014 में किया था समापन हरिद्वार के भीम गौड़ा में 18-19 दिसम्बर 2016 को होना है।
शताब्दी समारोह के शंखनाद में कांचीपीठ के शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती, ज्योतिष पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती, माँ गंगा पुनरुद्धार मंत्री सुश्री उमा भारती, काशी शुमेरू पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती, के.एन. गोविन्दाचार्य, महन्त रामेश्वर पूरी, आईआईटी कानपुर प्रो. डॉ. विनोद तारे मौजूद थे। इस एक वर्ष गुजर जाने के बाद भी शंखनाद के बाद की हलचल जो दिखनी चाहिए थी वो नहीं दिख रही है।
कानपूर में गंगा को प्रदूषित करने वाले नाले आज भी यथावत अपनी गन्दगी छोड़ रहे हैं। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने सरकारों के प्रयास का आकलन जब मौके पर जाकर किया तो वह देखकर दंग रह गया स्थितियाँ जस-की-तस थीं आज भी औद्योगिक कचरा टेनरियोंं का गन्दा पानी गंगा में प्रवाहित किया जा रहा है।
जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने जब उत्तर प्रदेश की सरकार से पूछा कि कानपुर स्थित टेनरियोंं तथा अन्य शहरों में प्रदूषित इकाइयों के खिलाफ क्या कार्यवाही अमल में लाई गई है। समुचित जवाब न मिलने की दशा में पीठ ने अधिकारियों से कहा कि सरकार के फैसलों पर आपका कोई अधिकार नहीं है इसलिये सरकार से निर्देश लेकर अवगत कराएँ कि टेनरियोंं को उन स्थानों पर कब स्थानान्तरित कर रहे हैं जहाँ से टेनरियोंं द्वारा गंगा के पानी को प्रदूषित न कर सकें।
पीठ ने उत्तराखण्ड सरकार को भी वो सूची देने के आदेश दिये हैं जो गंगा को प्रदूषित कर रही हैं और सरकार के आदेश को अमल में नहीं ला रही हैं। पीठ ने कहा कि हम स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि अब वो समय आ गया है कि कड़ी कार्यवाही कि जाये। जिसे किसी भी कीमत पर वापिस न लिया जाये।
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Post By: RuralWater