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बेंगलूरु शहरी और ग्रामीण जिले
ਖੇਤ ਤੋਂ ਥਾਲੀ ਤੱਕ -ਸਹਿਜਾ ਆਰਗੈਨਿਕਸ ਦੀ ਇੱਕ ਪਹਿਲ
Posted on 28 Jan, 2016 11:26 AMਕਿਸਾਨਾਂ ਦੀ ਬਾਜ਼ਾਰ ਤੱਕ ਸਿੱਧੇ ਪਹੁੰਚ ਉਪਲਬਧ ਕਰਵਾਉਣਾ ਆਰਥਿਕ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਉਂਦਾ ਹੈ|ਕਿਸਾਨ ਬਾਜ਼ਾਰ ਗ੍ਰਾਮੀਣ- ਸ਼ਹਿਰੀ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਅਭਿੰਨ ਅੰਗ ਹਨ ਅਤੇ ਖਪਤਕਾਰਾਂ ਦੇ ਸਿੱਧੇ ਖੇਤ ਤੋਂ ਤਾਜਾ ਉਤਪਾਦ ਲੈਣ ਦੀ ਵਧਦੀ ਦਿਲਚਸਪੀ ਕਰਕੇ ਇਹਨਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧੀ ਵਿੱਚ ਲਗਾਤਾਰ ਵਾਧਾ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ| ਸਹਿਜਾ ਸਮਰੁੱਧਾ, ਕਿਸਾਨਾਂ ਅਤੇ ਖੇਤੀ ਮਾਹਿਰਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਵਾਲੀ ਇੱਕ ਸੰਸਥਾ ਆਪਣੀ ਇੱਕ ਪਹਿਲ ਦੁਆਰਾ ਕਿਸਾਨਾਂ ਅਤੇ ਖਪਤਕਾਰਾਂ ਦਰਮਿਆਨ ਪਾੜੇ ਨੂੰ ਘਟਾਉਣ ਦਾ
बेंगलुरु की कूड़ा कथा
Posted on 14 Dec, 2015 11:38 AMमंडूर गाँव में अब एक जाँच केंद्र इस काम के लिये बनाया जाएगा जो हर क्षेत्र से कूड़ा लेकर आ
हमने पानी में आग लगा ही दी
Posted on 02 Oct, 2015 11:32 AMस्वच्छता दिवस, 02 अक्टूबर 2015 पर विशेष
ओ नई आई बादरी, बरसन लगा संसार, उठिठ् कबीर धाह दे, दाझत है संसार। कबीर
‘‘बादल घिर आये तो लोगों ने सोचा पानी बरसेगा। इससे तपन मिटेगी, प्यास बुझेगी, पृथ्वी सजल होगी, जीवन का दाह मिट जाएगा, किन्तु हुआ ठीक उलटा। यह दूसरे तरह के बादल हैं, इनसे पानी की बूँदे नहीं, अंगारे बरस रहे हैं। संसार जल रहा है। कबीर ऐसे छल-बादल से संसार को बचाने के लिये बेचैन हो उठते हैं।” पानी में आग लगाना एक मुहावरा है और इसे एक अतिशयोक्ति की तरह अंगीकृत भी कर लिया गया। लेकिन विकास की हमारी आधुनिक अवधारणा और उसके क्रियान्वयन ने इस मुहावरे को अब चरितार्थ भी कर दिया है।
पता चला है कि पिछले दिनों कर्नाटक की राजधानी और भारत की कथित सिलिकान वेली, बैंगलुरु (बैंगलोर) की सबसे बड़ी झील, बेल्लांडुर झील में आग लग गई। इस आग की वजह उस झील में फैला असाधारण प्रदूषण था। इतना ही नहीं इस प्रदूषण की वजह से इस झील में जहरीला झाग (फेन) भी निर्मित हो जाता है, जो इसके आस-पास चलने वाले राहगीरों और वाहनों तक को अपनी चपेट में ले लेता है।
कर्नाटक की सिंचाई योजनाओं में छेद ही छेद
Posted on 25 Jun, 2015 12:03 PMपिछले बीस सालों में सरकारी कर्मचारियों और विशेषकर राजस्व विभाग के कर्मचारियों की संख्या में आई
प्रदूषण ने लगाई पानी में आग
Posted on 23 May, 2015 10:45 AMबेलंदूर की घटना बंगलूरू के लिए चेतावनी है कि यदि अब तालाबों पर अतिक्रमण व उनमें गन्दगी घोलना बं
समुद्री चिड़िया ने उजाड़े घरौंदे
Posted on 04 Dec, 2014 01:05 PMशिलान्यास के बाद ही यह परियोजना ठंडे बस्ते में चली गई थी। 1995 मेंबंगलूरू: कैसे कंक्रीट के जंगल लील गए तालाबों को
Posted on 06 Nov, 2014 01:53 PMबीते दो दशकों के दौरान बंगलूरू शहर की कई बड़ी झीलों को पहले दूषित किया गया, फिर उन्हें पाटा गया और उसके बाद उनका इस्तेमाल शहरीकरण के लिए हो गया। इसी का परिणाम है कि थोड़ी-सी बारिश में अब शहर में बाढ़ आ जाती है। वहां का मौसम अब इतना खुशगवार रहता नहीं है। शहर की कुछ ऐसी झीले जो देखते-ही-देखते नए अवतार में आईं।
‘केरे’ का शहर बन गया कंक्रीट का ‘काड़ू’
Posted on 06 Nov, 2014 10:59 AM एक सदी पहले किसी दानवीर द्वारा गढ़े गए कामाक्षी पाल्या तालाब से तोतालाबों को बिसराने से रीता कर्नाटक
Posted on 01 Nov, 2014 01:00 PMसदानीरा कहे जाने वाले दक्षिणी राज्य कर्नाटक में वर्ष 2013 के फागुन शुरू होने से पहले ही सूखे की आहट सुनाई देने लगी है। कई गांवों में अभी से ठेला गाड़ी या टैंकर से पानी की सप्लाई हो रही है। कोई 7500 गांवों के साथ-साथ बंगलूरू, मंगलौर, मैसूर जैसे शहरों में पानी की राशनिंग शुरू हो गई है।कुओं का कायाकल्प
Posted on 29 Oct, 2014 11:34 AM हाल ही में कर्नाटक से सुखद खबर आई है कि वहां कुओं को फिर से पुनर्जीवित किया जा रहा है। बेलगांव शहर में जो कुएं सूख गए थे, गाद या कचरे से पट गए थे उनका नगर निगम और नागरिकों ने मिलकर कायाकल्प कर दिया है। और शहर की करीब आधी आबादी के लिए कुओं से पीने के पानी की आपूर्ति की जा रही है।
बेलगांव में 1995 में जब पीने के पानी का मुख्य स्रोत सूख गया तब वैकल्पिक पानी के स्रोतों की खोज हुई। यहां के वरिष्ठ नागरिक मंच ने कुओं का कायाकल्प करने का सुझाव दिया। इस पर अमल करने से पहले गोवा विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के प्रमुख चाचडी से सलाह मांगी। उन्होंने इसका अध्ययन इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी।