सदानीरा कहे जाने वाले दक्षिणी राज्य कर्नाटक में वर्ष 2013 के फागुन शुरू होने से पहले ही सूखे की आहट सुनाई देने लगी है। कई गांवों में अभी से ठेला गाड़ी या टैंकर से पानी की सप्लाई हो रही है। कोई 7500 गांवों के साथ-साथ बंगलूरू, मंगलौर, मैसूर जैसे शहरों में पानी की राशनिंग शुरू हो गई है।
इसके पिछले साल उत्तरी कर्नाटक में भीषण सूखा पड़ा था। तब बागलकोट, बीजापुर आदि जिलों में अभी तक का सबसे बड़ा जल-संकट सामने आया था। अलमत्ती बांध में जहां 45.691 टीएमसी पानी होता है, सूखे के समय महज 22.737 टीएमसी रह गया था। असल में इस तरह के जल संकट बीते एक दशक में राज्य की स्थाई समस्या बन गए हैं।
यदि नक्शे पर देखें तो कर्नाटक में झील-तालाबों की इतनी बड़ी संख्या है कि यदि वे लबालब हों तो पूरे देश को पानी पिला सकते हैं। यहां के 27481 गांव-कस्बों में 36,672 तालाब हैं जिनकी जल-क्षमता 6,85,000 हजार हेक्टेयर है। बरसात की एक-एक बूंद को अपने में सहेजने वाले इन पारंपरिक जल संरक्षण संसाधनों को पहले तो समाज ने उजाड़ दिया, लेकिन जब सभी आधुनिक तकनीक नाकामयाब हुईं तो उन्हीं झीलों की सलामती के लिए जमीन-आसमान एक किया जा रहा है।
जरा देखें , किस तरह तालाब उजड़ने से कर्नाटक का नूर फीका हो गया, साथ ही जागरूक समाज ने अपनी परंपराओं को संवारने का जब बीड़ा उठाया तो कैसे तेजी से तस्वीर बदली। सेंटर फार लेक कंजरवेशन, इनवायरमेंट एंड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट(ईएमपीआरआई) के एक शोध के मुताबिक बंगलूरू शहर की मौजूदा 81 झीलों में से नौ बुरी तरह दूषित हो गई हैं, 22 के प्रदूषण को अभी ठीक किया जा सकता है और 50 अभी ज्यादा खराब नहीं हुई हैं।
इसके पिछले साल उत्तरी कर्नाटक में भीषण सूखा पड़ा था। तब बागलकोट, बीजापुर आदि जिलों में अभी तक का सबसे बड़ा जल-संकट सामने आया था। अलमत्ती बांध में जहां 45.691 टीएमसी पानी होता है, सूखे के समय महज 22.737 टीएमसी रह गया था। असल में इस तरह के जल संकट बीते एक दशक में राज्य की स्थाई समस्या बन गए हैं।
यदि नक्शे पर देखें तो कर्नाटक में झील-तालाबों की इतनी बड़ी संख्या है कि यदि वे लबालब हों तो पूरे देश को पानी पिला सकते हैं। यहां के 27481 गांव-कस्बों में 36,672 तालाब हैं जिनकी जल-क्षमता 6,85,000 हजार हेक्टेयर है। बरसात की एक-एक बूंद को अपने में सहेजने वाले इन पारंपरिक जल संरक्षण संसाधनों को पहले तो समाज ने उजाड़ दिया, लेकिन जब सभी आधुनिक तकनीक नाकामयाब हुईं तो उन्हीं झीलों की सलामती के लिए जमीन-आसमान एक किया जा रहा है।
जरा देखें , किस तरह तालाब उजड़ने से कर्नाटक का नूर फीका हो गया, साथ ही जागरूक समाज ने अपनी परंपराओं को संवारने का जब बीड़ा उठाया तो कैसे तेजी से तस्वीर बदली। सेंटर फार लेक कंजरवेशन, इनवायरमेंट एंड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट(ईएमपीआरआई) के एक शोध के मुताबिक बंगलूरू शहर की मौजूदा 81 झीलों में से नौ बुरी तरह दूषित हो गई हैं, 22 के प्रदूषण को अभी ठीक किया जा सकता है और 50 अभी ज्यादा खराब नहीं हुई हैं।
Path Alias
/articles/taalaabaon-kao-baisaraanae-sae-raitaa-karanaataka
Post By: Shivendra