बड़वानी जिला

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आदिवासियों ने खुद खोजा अपना पानी
Posted on 30 Mar, 2018 03:39 PM

जल दिवस की सार्थकता इसी में निहित है कि हम अपने पारम्परिक जल संसाधनों को सहेज सकें तथा प्रकृति की अनमोल नेमत बारिश के पानी को धरती की कोख तक पहुँचाने के लिये प्रयास कर सकें। अपढ़ और कम समझ की माने जाने वाले आमली फलिया के आदिवासियों ने इस बार जल दिवस पर पूरे समाज को यह सन्देश दिया है कि बातों को जब जमीनी हकीकत में अमल किया जाता है तो हालात बदले जा सकते हैं। आमला फलिया ने तो अपना खोया हुआ कुआँ और पानी दोनों ही फिर से ढूँढ लिया है लेकिन देश के हजारों गाँवों में रहने वाले लोगों को अभी अपना पानी ढूँढना होगा।

मध्य प्रदेश के एक आदिवासी गाँव में बीते दस सालों से लोग करीब तीन किमी दूर नदी की रेत में झिरी खोदकर दो से तीन घंटे की मशक्कत के बाद दो घड़े पीने का पानी ला पाते थे। आज वह गाँव पानी के मामले में आत्मनिर्भर बन चुका है। अब उनके ही गाँव के एक कुएँ में साढ़े पाँच फीट से ज्यादा पानी भरा हुआ है। इससे यहाँ के लोगों को प्रदूषित पानी पीने से होने वाली बीमारियों तथा सेहत के नुकसान से भी निजात मिल गई है।

आखिर ऐसा कैसे हुआ कि गाँव में दस सालों से चला आ रहा जल संकट आठ से दस दिनों में दूर हो गया। कौन-सा चमत्कार हुआ कि हालात इतनी तेजी से बदल गए। यह सब सिलसिलेवार तरीके से जानने के लिये चलते हैं आमली फलिया गाँव। कुछ मेहनतकश आदिवासियों ने पसीना बहाकर अपने हिस्से का पानी धरती की कोख से उलीच लिया।
कुआँ
कुपोषण से दूर समाज के लिये संजीवनी है पारम्परिक इलाज
Posted on 01 Dec, 2017 11:26 AM
दुनिया के सभी देशों में कुपोषण की समस्या बढ़ रही है। इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आइएफपीआरआइ) द्वारा जारी ‘ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट’ के मुताबिक, प्रत्येक तीन में से एक व्यक्ति कुपोषण के किसी-न-किसी प्रारूप का शिकार है। कुपोषण के बचाव से मनुष्य के भोजन में पोषक तत्वों की उपलब्धता के लिहाज से मछली आहार का हिस्सा रही है। अपने देश में भले ही आबादी का एक बड़ा हिस्सा शाकाहारी है, लेक
रास नहीं आया पुनर्वास
Posted on 09 Jul, 2017 04:19 PM
नर्मदा नदी पर बन रहे सरदार सरोवर बाँध के पूर्ण होने पर सरकार भले ही जश्न मना रही हो लेकिन इससे उन लोगों के माथे पर फिर से चिन्ता की लकीरें दिखाई दे रही हैं, जो इसकी जद में आ रहे हैं। बाँध को पूर्ण क्षमता (138.68 मीटर) में भरने से बहुत से गाँव और घर जलमग्न हो जाएँगे।
नर्मदा घाटी - लड़ाई तो जीती मगर युद्ध जारी है
Posted on 10 Feb, 2017 10:34 AM
मैदान ही में नहीं होता युद्ध
जगहें बदलती रहतीं
कभी -कभी उफ तक नहीं होती वहाँ
जहाँ घमासान जारी रहता!

चन्द्रकान्त देवताले
स्वर्गीय साथी आशीष मंडलोई की स्मृति में युवा नेतृत्व शिविर
Posted on 10 May, 2013 02:15 PM तारीख : 18, 19, 20 मई, 2013
स्थान : गाँव छोटा बडदा, नर्मदा किनारे, तह-अंजड़, जिला-बड़वनी, मध्य प्रदेश


साथी आशीष मंडलोई की तीसरा स्मृति दिवस 20 मई, 2013 को होगा। आशीष भाई जैसे युवा साथियों ने देशके विभिन्न आंदोलनों में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। नर्मदा आंदोलन के पिछले 28 सालों में कई सारे युवाओं ने गाँव-गाँव को जगाने में, आंदोलन की वैचारिक भूमिका और रणनीति तय करने में, शासन को जनशक्ति के आधार पर चुनौती देने में अपना योगदान दिया है। हमारे साथ जुड़े पहाड़ी एवं मैदानी गाँवों में भी युवा पीढ़ी अब नेतृत्व करने के लिए आगे आती है, तभी और वही आंदोलन का संघर्ष एवं निर्माण का कार्य आगे बढ़ पाता है। चाहे आंदोलन की जीवनशालाएँ हो, चाहे कड़े जल सत्याग्रह, चाहे गांव में या कोर्ट, हर मोर्चे पर युवा कार्यकर्ता और आंदोलनकारियों की जरूरत महसूस होती है।

यही हकीकत.....शहरी ग़रीबों के घर बचाओं-घर बनाओ आंदोलन, वांग-मराठवाडी, टाटा या लावासा के विरोध के आंदोलन.......जैसे हमारे हर स्थानीय तथा राष्ट्रीय संगठन व आंदोलन की है।
गलत आधारों पर तैयार मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजना
Posted on 20 Feb, 2013 11:38 AM

पानी का निजीकरण कर निवासियों पर बोझ साबित होगी

जनप्रतिनिधियों द्वारा जनविरोध
Posted on 04 Oct, 2012 03:44 PM जिसके पास थाली है,
हर भूखा आदमी,
उसके लिए, सबसे भद्दी
गाली है
- धूमिल

जीवन न्यौछावर को तैयार जनसमूह
Posted on 06 Jul, 2012 05:06 PM ‘ओंकारेश्वर तीर्थ अलौकिक है। भगवान शंकर की कृपा से यह देवस्थान के तुल्य है। यहां जो अन्नदान, तप, पूजा करते अथवा मृत्यु को प्राप्त होते हैं, उनका शिवलोक में निवास होता है।’
- स्कंद पुराण रेवा खंड अ – 22

ओंकारेश्वर के आधुनिक बदसूरत मंदिर की ओर जब भी ध्यान आता है तो एकाएक मन में विचार उठने लगने लगता है कि क्या हम अपने देश की संस्कृति के साथ इतना घटिया व्यवहार भी कर सकते हैं? पूरे देश की धार्मिक व सांस्कृतिक भावनाएं ओंकारेश्वर से जुड़ी हैं और नर्मदा नदी उस आस्था का अभिन्न अंग है। पूरे देश से लोग यहां आते हैं और बिना विरोध जताए ‘पवित्र’ दर्शन कर लौट भी जाते हैं। हमारे नीति निर्माता देश के पवित्रतम स्थानों में से एक को एक बदबूदार नाले में बदलकर चैन की नींद कैसे सो सकते हैं?

ओंकारेश्वर एक अनूठा तीर्थ है। बारह ज्योतिर्लिंगों में इसकी गणना होती है। इसकी एक और विशेषता यह है कि यहां एक नहीं दो ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर एवं अमलेश्वर हैं। लेकिन द्वादश (बारह) ज्योतिर्लिंगों की गणना करते समय इन्हें एक ही गिना जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों के नाम वाले श्लोकों में इसे ‘ओंकारममलेश्वरम’ कहा गया है। ये दोनों मंदिर नर्मदा नदी के आर-पार बने हुए है, जिन्हें एक पैदल पुल आपस में जोड़ता है।
नर्मदा को प्रदूषित करते बांध
Posted on 07 Nov, 2011 10:24 AM

नर्मदा नदी पर बन रहे एवं बन चुके बांधों के कारण प्रदूषण रहित यह नदी अब दिनों-दिन प्रदूषित होती जा रही है। अवैध रेत खनन से इस इलाके का दलदलीकरण भी बढ़ेगा जो कि स्थानीय पर्यावरण के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है। इन्हीं खदानों के माध्यम से नर्मदा नदी का पानी धीरे-धीरे आगे बढ़ेगा और जमीन का दलदलीकरण प्रारम्भ हो जायेगा। इसका असर जल्दी दिखाई नहीं देगा लेकिन जब परिणाम सामने आएगें तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। विकास की अवधारणा विनाश को आमत्रंण दे चुकी है। संभलने का वक्त अभी गुजरा नहीं है।

देश में विकास की अवधारणा को लेकर सालों से बहस जारी है। नदियों के प्रवाह को बांधों से रोकने, नहरों से सिंचाई करने और बिजली उत्पादन की छोटी-बड़ी सैकड़ों-हजारों परियोजनाओं के निर्माण से होने वाले असरों को आम आदमी समझ रहा है लेकिन देश के नीति निर्माताओं को अभी लगता है इसकी कोई परवाह नहीं है। देश भर में नदियों पर बनने वाले बांध और नहर परियोजनाओं के परिणाम आम लोगों के लिए कभी भी सुखद नहीं रहे हैं। इन परियोजनाओं से लाभ से अधिक नुकसान हुआ है। इसका ताजा उदाहरण सरदार सरोवर परियोजना में देखने को मिल रहा है। यह परियोजना नर्मदा नदी पर बनी हुई देश की विशालतम बांध परियोजनाओं में से एक है। विगत 10 सालों में इस परियोजना के कारण सैकड़ों किलोमीटर के इलाके में नर्मदा नदी का प्रवाह थम गया है। पानी रुकने के दुष्परिणाम सामने दिखाई देने लगे हैं। मानसून के अलावा भी लगभग पूरे साल नर्मदा का पानी कुछ स्थानों पर प्रदूषित दिखाई पड़ता है।
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