पानी का निजीकरण: छोटे नगरों की बारी

इतनी बड़ी योजना के लिए प्रदेश शासन के पास कोई आर्थिक संसाधन उपलब्ध नहीं है। चूँकि इस योजना के लिए विश्व बैंक से कर्ज लिया जाना प्रस्तावित है इसीलिए विश्व बैंक को खुश करने हेतु योजना की शर्तों में पानी के निजीकरण को बढ़ावा दिया जाना शामिल किया गया। केन्द्र सरकार समर्थित छोटे और मझौले शहरों की अधोसंरचना विकास योजना में तो जलप्रदाय का निजीकरण करने हेतु निकायों को 7 वर्ष की समय सीमा दी गई है लेकिन मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजना की शर्तों के अनुसार एक लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगरीय निकायों को अपनी जलप्रदाय योजना पीपीपी के तहत निजी कंपनियों को सौंपना आवश्यक कर दिया गया है। मध्य प्रदेश के नगरों में जलप्रदाय तंत्र के निजीकरण के सरकारी प्रयास निर्बाध रूप से जारी है। पहले केन्द्र सरकार समर्थित ‘‘छोटे और मझौले शहरों की अधोसंरचना विकास योजना’’ के तहत प्रदेश के 47 नगरों में यह प्रयास किया गया। अपने जीवन में पानी का निजीकरण नहीं करने की सार्वजनिक घोषणा करने वाले मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चैहान अब ‘‘मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजना’’ के नाम पर पूरे प्रदेश में पानी का निजीकरण करने की तैयारी में है। कमजोर तबकों की जल सुरक्षा खतरे में पड़ना निश्चित है।अगले 10 वर्षों में प्रदेश के संपूर्ण नगरीय निकायों में मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजना लागू की जाने की योजना है। प्रथम चरण के जिन 37 नगरों में यह योजना क्रियांवित की जानी है उनमें बड़वानी भी शामिल है। इसके तहत नगरीय निकायों को योजना लागत की 20 से 30 प्रतिशत राशि का अनुदान उपलब्ध करवाया जाएगा। स्थानीय निकायों को दिए जाने वाले अनुदान की व्यवस्था विश्व बैंक से 38 करोड़ डॉलर (करीब 2 हजार करोड़ रुपए) का कर्ज लेकर की जाएगी। शेष के लिए नगरीय निकायों को हुडको से 11.25 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर पर कर्ज लेना होगा जिसकी गारंटी राज्य शासन देगी। कर्ज चुकता करने की ज़िम्मेदारी राज्य सरकार और स्थानीय निकायों की क्रमशः 75 प्रतिशत और 25 प्रतिशत होगी। पिछले वर्ष केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय जलनीति का नया प्रारूप जारी किया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तक इस योजना का विरोध कर रहा है। वहीं राज्य सरकार भी केन्द्र सरकार पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के समक्ष घुटने टेकने का आरोप लगाती रही है। लेकिन प्रदेश सरकार तो मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजना के लिए विश्व बैंक के समक्ष दण्डवत हो गई है और कर्ज मिलने की होड़ में औरों से आगे निकल गई।

इतनी बड़ी योजना के लिए प्रदेश शासन के पास कोई आर्थिक संसाधन उपलब्ध नहीं है। चूँकि इस योजना के लिए विश्व बैंक से कर्ज लिया जाना प्रस्तावित है इसीलिए विश्व बैंक को खुश करने हेतु योजना की शर्तों में पानी के निजीकरण को बढ़ावा दिया जाना शामिल किया गया। केन्द्र सरकार समर्थित छोटे और मझौले शहरों की अधोसंरचना विकास योजना में तो जलप्रदाय का निजीकरण करने हेतु निकायों को 7 वर्ष की समय सीमा दी गई है लेकिन मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजना की शर्तों के अनुसार एक लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगरीय निकायों को अपनी जलप्रदाय योजना पीपीपी के तहत निजी कंपनियों को सौंपना आवश्यक कर दिया गया है। यदि 20 किमी के दायरे में एक से अधिक नगरनिकाय आते हैं तो वहाँ समूह योजना की शर्त रखी गई है ताकि निजीकरण को संभव बनाया जा सके। मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजना स्वीकार करने वाले नगरीय निकायों को चरणबद्ध एवं समयबद्ध तरीके से आर्थिक सुधार (उदारीकरण और निजीकरण) की प्रक्रिया जारी रखना होगी और सभी नल कनेक्शनों पर मीटर लगाना आवश्यक होगा। आर्थिक सुधार नहीं करने वाले निकायों की अनुदान तथा कर्ज में कमी कर उन्हें दण्डित भी किया जाएगा।

इन योजनाओं के डीपीआर निर्माण में निजी सलाहकारों के शामिल होने के कारण योजना लागतें अनाप-शनाप बढ़ रही है। लागत बढ़ाने हेतु वे स्थानीय जलस्रोतों की उपेक्षा करने के साथ ही झूठे आधार भी गढ़ते हैं। अनावश्यक बढ़ाई गई लागत का फायदा हित संबंध से जुड़े अन्य पक्षों को भी मिलता है। इसीलिए कहीं ऐसा सुनने में नहीं आया कि योजना लागत बढ़ने पर कहीं सवाल उठाए गए हों। योजना की शर्त के अनुसार लागत का 70 से 80 प्रतिशत तक कर्ज लेना पड़ेगा जो कई नगरनिकायों के सालाना बजट से अधिक होगा। 6 करोड़ के बजट वाली बड़वानी नगरपालिका को योजना के लिए 14.93 करोड़ रु. का कर्ज लेना पड़ेगा जिसमें से 4 करोड़ की सूद समेत भरपाई नगरपालिका को करनी होगी। नगरपालिका को कर्ज अदायगी हेतु हर साल करीब 40 लाख रूपए अतिरिक्त जुटाने होंगे जो सिर्फ जलदरें बढ़ाकर ही जुटाए जा सकते हैं।

गलत आधारों की योजना


बड़वानी की जलप्रदाय योजना के डीपीआर निर्माण तथा निर्माण कार्यों पर निगरानी का ठेका प्रदेश में एक हजार करोड़ की योजनाओं की कंसल्टेंसी करने वाली भोपाल की सलाहकारी फर्म ‘वास्तुशिल्पी प्रोजेक्ट एंड कंसलटेंट्स प्रा॰ लिमिटेड’ को एक संदिग्ध निविदा प्रक्रिया के तहत दिया गया है। कंसलटेंसी फर्म ने नगर में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता अत्यंत कम, भण्डारण क्षमता की कमी, लीकेज ज्यादा, सावर्जनिक नलों की अधिकता आदि असत्य एवं आधारहीन तथ्य प्रस्तुत कर अनावश्यक योजना को उचित ठहराने का प्रयास किया है। लेकिन नगरपालिका के ही आँकड़े दर्शाते हैं कि यहाँ नगर की जरूरत से करीब 4 गुना अधिक क्षमता का जलप्रदाय तंत्र उपलब्ध हैं। पिछले 10 वर्षों में यहाँ कभी जलसंकट नहीं हुआ। नगर की जरूरत का दुगना पानी भण्डार करने हेतु ओवरहेड टंकियाँ उपलब्ध है। जलप्रदाय तंत्र का अधिकांश हिस्सा केवल 4 वर्ष पुराना और बहुत अच्छी हालत में है। जलप्रदाय की वसूली दर 79 प्रतिशत है। इसके बावजूद हर 7 परिवारों के बीच मात्र एक सावर्जनिक नल है।

लागत बढ़ाने के तरीके


घरेलू जलप्रदाय की गणना केन्द्रीय लोक स्वास्थ्य एवं पर्यावरणीय अभियांत्रिकी संगठन के दिशानिर्देशों के तहत की जाती है। लेकिन, सलाहकार योजनाओं की लागत बढ़ाने हेतु गलत तरीके से उच्चतम मानकों को उपयोग करते हैं। मूँदी, उन्हेल, बाबई, भीकनगाँव जैसे ग्रामीणनुमा नगरीय निकायों हेतु भी सीपीएचईईओ के दिशा-निर्देशों का हवाला देकर 135 लीटर/ व्यक्ति/दिन (एलपीसीडी) के हिसाब से गणना की गई है। जबकि संगठन के दिशानिर्देशों के अनुसार भूमिगत मलनिकास प्रणालीविहीन बसाहटों में कनेक्शनधारियों और सार्वजनिक नलों पर निर्भर परिवारों के लिए जलप्रदाय का मानक क्रमशः 70 और 40 एलपीसीडी ही है। बड़वानी सहित प्रदेश के अन्य नगरीय निकायों के लिए 135 एलपीसीडी के उच्च मानक का उपयोग सिर्फ योजना की लागत बढ़ाने के लिए किया गया है। 135 एलपीसीडी का मानक उन बसाहटों के लिए हैं जहाँ भूमिगत मलनिकास प्रणाली मौजूद होती है। बड़े शहरों में मलनिकास प्रणाली को अवरूद्ध होने से बचाने हेतु जलप्रदाय के मानक ऊँचे रखे जाते हैं।

गलत आधारों पर तैयार और पूरी तरह से अनावश्यक 19.90 करोड़ लागत की बड़वानी की योजना का शिलान्यास मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चैहान द्वारा 14 फरवरी 2013 को किया जा चुका है। छोटे और मझौले शहरों की अधोसंरचना विकास योजना डीपीआर साढ़े तीन वर्षों में भी पूरा नहीं करवा पाने वाली बड़वानी नगरपालिका ने आश्चर्यजनक उत्साह दिखाते इस योजना का डीपीआर मात्र द¨ सप्ताह में तैयार करवा लिया था। हालांकि अपार उत्साह का एक कारण इसका बड़ा बजट भी रहा है, लेकिन, इस संगठित लूट का ख़ामियाज़ा तो अंततः आम आदमी को ही भुगतना पड़ेगा।

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