गलत आधारों पर तैयार मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजना

पानी का निजीकरण कर निवासियों पर बोझ साबित होगी


योजना के लागू होने से बड़वानी में जलप्रदाय का संचालन खर्च 68 लाख सालाना से बढ़कर 1 करोड़ 43 लाख हो जाएगा। इसकी वसूली के लिए जल दरें बढ़ानी होगी। योजना हेतु 4 करोड़ के कर्ज की जरूरत होगी, जिसकी अदायगी के लिए 40 लाख रूपए अतिरिक्त जुटाने होंगे। इस योजना के प्रति बड़वानी नगरपालिका द्वारा दिखाया गया उत्साह आश्चर्यजनक है। नगरपालिका ने मात्र 2 सप्ताह में डीपीआर तैयार करवा कर इसकी तकनीकी और प्रशासकीय स्वीकृतियाँ भी प्राप्त कर ली है। अपने जीवन में पानी का निजीकरण नहीं होने देने की घोषणा करने वाले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चैहान ने आज ‘‘मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजना'’ के तहत बड़वानी की पेयजल योजना का शिलान्यास किया। यह वही योजना है जिसके तहत बड़वानी सहित प्रदेश के 37 नगरों में पानी के निजीकरण का प्रयास जारी है। योजना की शर्त में निजीकरण शामिल होने के कारण इससे प्रदेश की पेयजल व्यवस्था में बड़े बदलाव संभावित हैं।

उल्लेखनीय है कि मंथन अध्ययन केन्द्र द्वारा ''मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजना'' का अध्ययन कर एक रिपोर्ट तैयार की गई है। रिपोर्ट में योजना के संभावित प्रभावों का विस्तार से उल्लेख है। योजना के लिए प्रदेश शासन द्वारा कर्ज विश्व बैंक से लिया जाना प्रस्तावित है इसीलिए योजना में निजीकरण को बढ़ावा दिया जाना शामिल किया गया है। एक लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगरीय निकायों को अपनी जलप्रदाय योजनाओं का पीपीपी के तहत निजीकरण करना आवश्यक होगा। निकायों को चरणबद्ध एवं समयबद्ध तरीके से आर्थिक सुधार (उदारीकरण और निजीकरण) की प्रक्रिया जारी रखनी होगी। निकायों द्वारा आर्थिक सुधार नहीं किए जाने पर राज्य से मिलने वाले अनुदान और कर्ज को कम कर दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त संपत्ति कर की वसूली भी 85% तक बढ़ानी होगी तथा सभी कनेक्शनों पर मीटर लगाना आवश्यक होगा।

बड़वानी में भी 19.90 करोड़ की ''मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजना” जलप्रदाय योजना तैयार की गई है। इस योजना को उचित साबित करने हेतु गलत तथ्यों का सहारा लिया गया है। डीपीआर में शहर में कम जल उपलब्धता, भंडारण क्षमता की कमी, लीकेज ज्यादा होना, सार्वजनिक नलों की अधिकता, जल संकट के कारण निवासियों का आक्रोश आदि समस्याएँ गिनाई गई है। जबकि इसके विपरीत बड़वानी का पेयजल तंत्र नगर की जरूरत से 4 गुना अधिक क्षमता का है। योजना का बजट बढ़ाने हेतु 135 लीटर/व्यक्ति/दिन (एलपीसीडी) के आधार पर जरूरत की गणना की गई है। जबकि बड़वानी जैसे भूमिगत मलनिकास प्रणाली विहीन कस्बों में कनेक्शनधारियों के लिए जलप्रदाय का मानक 70 एलपीसीडी और सार्वजनिक नलों पर निर्भर परिवारों के लिए 40 एलपीसीडी ही है। सलाहकारों का मेहनताना योजना लागत के आधार पर तय होता है अत: उनका प्रयास लागत बढ़ाने का रहता है। आश्चर्यजनक है कि लागत बढ़ने का अन्य संबंधित पक्ष भी विरोध नहीं करते हैं लेकिन अंतत: इसका ख़ामियाज़ा आम जनता को भुगतना पड़ता है।

योजना के लागू होने से बड़वानी में जलप्रदाय का संचालन खर्च 68 लाख सालाना से बढ़कर 1 करोड़ 43 लाख हो जाएगा। इसकी वसूली के लिए जल दरें बढ़ानी होगी। योजना हेतु 4 करोड़ के कर्ज की जरूरत होगी, जिसकी अदायगी के लिए 40 लाख रूपए अतिरिक्त जुटाने होंगे। इस योजना के प्रति बड़वानी नगरपालिका द्वारा दिखाया गया उत्साह आश्चर्यजनक है। नगरपालिका ने मात्र 2 सप्ताह में डीपीआर तैयार करवा कर इसकी तकनीकी और प्रशासकीय स्वीकृतियाँ भी प्राप्त कर ली है। योजना के प्रति अपार उत्साह का एक कारण इसका बड़ा बजट भी है। बड़वानी का जलप्रदाय तंत्र 1 करोड़ 54 लाख लीटर/दिन क्षमता का है जबकि बड़वानी की जरूरत 33 लाख लीटर/दिन है। जरूरत से 4 गुना उपलब्धता के बावजूद जल संकट का हौवा खड़ा अनावश्‍यक और महँगी योजना प्रारंभ की जा रही है।

‘‘मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजना'’ संबंधी अध्‍ययन का प्रकाशित संस्‍करण एवं संक्षिप्‍त नोट यहां से डाउनलोड किया जा सकता है।

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